मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आजादी के अमृत महोत्सव के तहत भोपाल के एक स्कूल में बच्चों से मुलाकात की और उनसे अपने जीवन के तमाम रहस्यों पर बात की। इस दौरान उन्होंने बताया कि कैसे मजदूरों के लिए संघर्ष करने के चलते लट्ठ से जमकर पीटा गया था। दरअसल एक छात्रा ने उनसे पूछा कि क्या वे जब विद्यार्थी थे, तभी से राजनीति में हैं या बाद में आए हैं। और इसकी प्रेरणा उनको कहां से मिली?
इस पर शिवराज सिंह चौहान ने बड़ी रोचक बात बताई।
उन्होंने बच्चों को बताया कि जब वे गांव की सरकारी स्कूल में छठवीं, सातवीं में पढ़ रहे थे, तो उस जमाने में बैठने के लिए घर से ही एक पट्टी ले जाते थे। बस्ता लटकाते थे और सबसे पहले स्कूल पहुंचकर गुरुजी के पैरों पर सिर रखकर बोलते थे- प्रणाम गुरुजी।
कहा कि “स्कूलों में हर शनिवार को बालसभा होती थी। इस बालसभा में गुरुजी राम चरित मानस की चौपाई पढ़वाते थे और उसका अर्थ बताते थे। उस समय गांव में दो वर्ग होते थे- किसान और मजदूर। किसान के खेत में मजदूर मजदूरी करते थे। उस समय पढ़ाई का इतना प्रचलन नहीं था। लेकिन राम चरित मानस से मुझे कुछ करने की प्रेरणा मिली।”
बच्चों के स्कूल नहीं आने से मन में पीड़ा होती थी
मुख्यमंत्री ने कहा कि “स्कूलों में काफी बच्चे नहीं आते थे, तो मेरे मन में पीड़ा होती थी कि इनको तो सुबह से ही खेतों पर काम करने जाना पड़ता है और अपनी गाय, बैल, भैंस लेकर जंगल में चराने ले जाना पड़ता था। तो मुझे यह लगता था कि इनको भी पढ़ने का मौका मिलना चाहिए। कुछ न कुछ तो होना चाहिए।”
कोड़े में पांच किलो अनाज आता था और पाई में ढाई किलो के आसपास अनाज आता था
उन्होंने कहा, “जब मै सातवीं में पढ़ता था, तो मैं भोपाल चला आया। मुझे लगा कि यह गलत है और उन बच्चों के लिए कुछ न कुछ होना चाहिए। आंदोलन करना चाहिए। उस समय पैसे की जगह मजदूरी नाम कर देते थे। एक बर्तन होता था, जिसे पाई और कोड़ा बोलते थे। कोड़े में पांच किलो अनाज आता था और पाई में ढाई किलो के आसपास अनाज आता था। तो ढाई पाई अनाज दिया जाता था मजदूरी के लिए, पैसे नहीं दिए जाते थे।”
कहा, “मैंने एक दिन मजदूरों को बुलाया और कहा कि यह अन्याय है। दिन भर काम करते हो और ढाई पाई मजदूरी मिलती है। वे बोले हम क्या कर सकते हैं, मैंने कहा कि आंदोलन करो कि पांच पाई लेंगे, वे बोले कि इससे क्या होगा तो मैंने कहा कि किसान तो काम तुमसे ही कराएगा। नहीं करोगे तो मजबूर होकर देंगे।”
वे बोले, “चलो जुलूस निकालते हैं। उस समय बिजली नहीं थी। पेट्रोमैक्स में मिंटल लगाकर मिट्टी के तेल से चलाते थे। एक मजदूर उसको सिर पर रखी और सब लोग साथ में चले और नारा लगा रहे थे कि ढाई पाइ नहीं पांच पाई लेंगे, नहीं तो काम बंद करेंगे। जब जुलूस मेरे घर के सामने से गुजरी तो हमारे चाचा जी जो किसान थे, वे लट्ठ लेकर निकले, मैं तुम्हें देता हूं पांच पाई।” कहा कि उनको देखते ही बाकी मजदूर तो पेट्रोमैक्स फेंककर भाग गए, मैं पकड़ लिया गया। पकड़ने के बाद तो तुम्हारे मामा जी की वो धुनाई हुई कि आज तक याद है।