बिहार विधानसभा के चुनावी समर में मोकामा विधानसभा क्षेत्र सर्वाधिक चर्चित सीट बन गया है। जनसुराज पार्टी के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या के बाद से यह क्षेत्र और संवेदनशील हो गया है। इस बार इस सीट पर दो अपराधिक छवि वाले नेता कथित ‘छोटे सरकार’ बनाम ‘दादा’ के बीच कांटे की टक्कर है। 25 साल बाद दोनों बाहुबलियों के परिवार के सदस्य एक बार फिर आमने-सामने हैं।

ज्ञात रहे कि आपराधिक छवि वाले दबंग प्रवृत्ति के लोगों के लिए बाहुबली शब्द प्रचलित हो गया है। यह सीट कड़ी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और बदले की कहानी का गवाह रहा है। समर्थक की हत्या के बाद तेजी से बदल रहे समीकरण को देखते हुए सियासी पुनर्वास की इस जंग में जीत को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है।

मोकामा विधानसभा चुनाव में इस बार जनता दल यू के उम्मीदवार अनंत सिंह का मुकाबला पूर्व सांसद सूरजभान की पत्नी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) उम्मीदवार वीणा देवी से है। 2000 के बाद दोनों परिवारों के बीच हो रहा यह मुकाबला, कई मायनों में अहम माना जा रहा है।

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जनता दल यू प्रत्याशी अनंत सिंह को कथित ‘छोटे सरकार’ के नाम से जाना जाता है, जो 2005 से लगातार इस सीट से जीत दर्ज करते रहे। लेकिन 2022 में अवैध गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के एक मामले में दोष साबित होने की वजह से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। इसके बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी नीलम देवी ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट पर मोकामा सीट पर जीत दर्ज हासिल की। 2020 में हुए चुनाव में अनंत सिंह राजद के टिकट पर ही जीते थे।

हालांकि, पटना उच्च न्यायालय द्वारा मामले में बरी किए जाने के बाद अनंत सिंह ने खुद चुनाव लड़ने का फैसला लिया। दूसरी तरफ, समर्थकों के बीच ‘दादा’ के नाम से पुकारे जाने वाले सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी राजद के टिकट पर मोकामा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं।सूरजभान सिंह, अयोग्य होने की वजह से खुद चुनाव नहीं लड़ सकते। इससे पहले सूरजभान सिंह ने 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मोकामा सीट से अपनी सियासी पारी शुरू की थी। इस सीट पर उन्होंने अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह को हराया था।

अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह समर्थकों के बीच ‘बड़े सरकार’ के तौर पर लोकप्रिय थे। दिलीप सिंह राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री भी बने थे। माना जाता है कि उस वर्ष त्रिशंकु विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद नीतीश कुमार की सरकार बनाने में सूरजभान सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई।

इस वजह से ही सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के करीबी बन गए। वर्ष 2004 में सूरज भान सिंह ने विधानसभा सीट छोड़ दी और रामविलास पासवान द्वारा गठित लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर बलिया लोकसभा सीट चुनाव से सांसद बने। इसी दौरान अनंत सिंह ने राजनीति में उतरने का निर्णय लिया और 2005 में विधानसभा चुनाव में उतरे। इस दौरान वह फरवरी और अक्तूबर में हुए चुनावों में जदयू उम्मीदवार के तौर पर जीते।

मोकामा में छह नवंबर को मतदान

माना जाता है कि उन्होंने स्थानीय ताकतवर नेता के रूप में नीतीश कुमार का विश्वास हासिल किया। अनंत सिंह अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी के अपने गढ़ में वापसी करने की चुनौती को खास तवज्जों नहीं दे रहे हैं और उन्होंने हाल ही में कहा, वह (सूरज भान) हमेशा अस्थिर मानसिकता के रहे हैं। उनकी सियासी पारी देखिए, मोकामा छोड़कर बलिया के सांसद बने, फिर उनकी पत्नी (2014) मुंगेर से सांसद बनीं और पांच साल बाद उनके भाई नवादा से सांसद बने।

अनंत सिंह ने हाल ही में ‘बाहुबली’ शब्द पर आपत्ति जताते हुए दावा किया, यह मीडिया की गढ़ी हुई परिभाषा है। मैं लोगों के आशीर्वाद और नीतीश कुमार के सुशासन के बल पर जीतूंगा। दूसरी तरफ लंबे अंतराल के बाद दोबारा चुनावी समर में लौटे सूरज भान सिंह और उनके परिवार को विश्वास है कि इस बार परिवर्तन की बयार चलेगी।

वीणा देवी ने हाल ही में कहा, अनंत सिंह को बात करना ही नहीं आता, ऐसे व्यक्ति से क्या उम्मीद करें कि वह सदन में क्षेत्र की समस्याओं को उठा सकेंगे। मेरे पास संसद का अनुभव है, जहां मैं सात विधानसभा क्षेत्रों की आवाज उठाती रही हूं। मोकामा सीट पर हमेशा भूमिहार समुदाय का प्रतिनिधित्व रहा, लेकिन जब दिलीप सिंह (1990 ) ने अपने बल पर राजनीति करने का फैसला लिया, तब से यह सीट एक ‘बाहुबली’ की पहचान के साथ जुड़ गई है। मोकामा विधानसभा सीट पर आठ उम्मीदवार चुनावी मैदान में है, जहां पहले चरण में छह नवंबर को मतदान होगा।

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