कांग्रेस की ट्रेड यूनियन विंग इंटक के सत्र में राहुल ने शनिवार को कहा, प्रधानमंत्री भारतीय मजदूरों को बेईमान, कामचोर मानते हैं और यह सोचते हैं कि उनसे केवल डंडे के बल पर काम कराया जा सकता है। इसलिए श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है, जिससे श्रमिक उनके सामने घुटने टेकें। अगर आप गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में बनाए जा रहे नए कानूनों को देखें तो आप पाएंगे कि मोदी ने श्रमिकों पर एक बड़ा हमला शुरू  कर दिया है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि वे श्रम संबंधित कानूनों को जानबूझकर कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे श्रमिकों में असंतोष पैदा हो रहा है। यह आरोप लगाते हुए कि मोदी ने श्रमिकों पर बड़ा हमला शुरू कर दिया है, राहुल ने कहा कि वे उनकी लड़ाई उसी तरह लड़ेंगे जैसे कांग्रेस ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर किसानों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने कांग्रेस की ट्रेड यूनियन विंग इंटक के 31वें पूर्ण सत्र में कहा, ‘जैसे हमने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, उसी तरह हम मजदूरों के हक के लिए लड़ेंगे और उनके साथ खड़े होंगे और एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे। हम भाजपा, मोदी और आरएसएस से लड़ेंगे’।

राहुल ने कहा कि हालांकि वे भारत को चीन से अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए इसे वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के प्रधानमंत्री के विचार से सहमत हैं, लेकिन यह सहमति यहीं खत्म हो जाती है। उन्होंने दावा किया कि ऐसा इस वजह से है कि प्रधानमंत्री भारतीय मजदूरों को ‘बेईमान, कामचोर मानते हैं और यह सोचते हैं कि उनसे केवल डंडे के बल पर काम कराया जा सकता है’। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि इसलिए श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है, जिससे कि श्रमिक उनके सामने घुटने टेकें। उन्होंने कहा, ‘अगर आप गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में बन रहे नए कानूनों को देखें तो पाएंगे कि मोदी ने श्रमिकों पर बड़ा हमला शुरू कर दिया है’।

कांग्रेस उपाध्यक्ष ने दावा किया कि प्रधानमंत्री महसूस करते हैं कि श्रम कानूनों को कमजोर करने और श्रमिकों को अनुशासित करने की जरूरत है, जिससे कि उन्हें काम करने के लिए मजबूर किया जा सके। मोदी महसूस करते हैं कि ‘रखने और निकाल देने की’ नीति और यूनियनों को कमजोर करने से मजदूरों से काम कराया जा सकेगा।
राहुल ने कहा, ‘मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि हमारे श्रमिक कामचोर या अनुशासनहीन हैं। हमारा श्रमिक डरा हुआ है। वह अपने भविष्य को लेकर, अपने बच्चों के भविष्य को लेकर डरा हुआ है। मजदूर इस बात को सोचकर डरा हुआ है कि आज उसके पास जो काम है, वह कल रहेगा या नहीं। क्या कल उसके लिए फैक्टरी गेट खुलेगा’।

इस बात पर जोर देते हुए कि सरकार को श्रमिकों और उद्योग के बीच ‘न्यायाधीश’ बनना चाहिए, न कि उद्योग का ‘वकील’, राहुल ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री श्रमिकों के मन से डर निकालने में सफल रहे तो भारत जल्द ही चीन से आगे निकल जाएगा।
लोगों को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि राजग सरकार की श्रम विरोधी और नीरस आर्थिक नीतियों के कारण श्रमिकों का असंतोष देश में दो सितंबर को हुई एक दिन की आम हड़ताल से स्पष्ट झलका।

मोदी सरकार पर राहुल ने तब हमला बोला जब इंटक प्रमुख जी संजीव रेड्डी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह श्रमिकों के हितों पर विभिन्न तरह से वार कर रही है। रेड्डी ने कहा कि सरकार प्रमाणन के लिए सभी दस्तावेज जमा करने के बावजूद 3.31 करोड़ सदस्यों वाले इंटक को देश के सबसे बड़े ट्रेड यूनियन संगठन के रूप में मान्यता नहीं दे रही है।

इसके अलावा उच्च सदन में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) संशोधन विधेयक विनियोग कानून निरसन विधेयक और बाल श्रम संरक्षण व नियमन संशोधन विधेयक को भी लिया जाना है। लोकसभा में अगले हफ्ते जो गैर विधायी कार्य लिए जा सकते हैं उनमें देश में सूखे की स्थिति, मूल्य वृद्धि और पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबधों पर चर्चा शामिल है। राज्यसभा में नेपाल की स्थिति और भारत नेपाल संबंधों और मूल्य वृद्धि पर चर्चा हो सकती है। शुक्रवार को किए गए फैसले के मुताबिक, नेपाल की स्थिति पर चर्चा को ध्यानाकर्षण से अल्पकालिक चर्चा में बदल दिया गया है।

मनमोहन ने कहा, ‘सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि 2022 तक हमें कम से कम 50 करोड़ कुशल कामगारों की जरूरत होगी। मौजूदा रफ्तार को देखें तो हम लक्ष्य की दिशा में मामूली सफलता हासिल कर पाएंगे’। उन्होंने यह भी कहा, औद्योगिक विवाद, हड़ताल और तालाबंदी अशांति के समाधान के सर्वश्रेष्ठ साधन नहीं हैं।

हमें त्रिपक्षीय प्रक्रिया-कामगारों, उद्योग और सरकार के सभी भागीदारों को शामिल कर शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए औद्योगिक समस्याओं के समाधान की मौजूदा स्थिति को विस्तारित करना चाहिए’। उन्होंने कहा कि ट्रेड यूनियन आंदोलन को इस बात से अवगत होना होगा कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार कमजोर हैं और रोजगार अवसरों का विस्तार अपर्याप्त है और सार्वजनिक उपक्रमों को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है।