जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पड़ने वाले कई प्रभावों से राज्य के बच्चे भी अछूते नहीं है। पिछले साल 5 अगस्त के बाद राज्य में बंदी के बाद कोरोना वायरस महामारी ने बच्चों की स्कूली शिक्षा को पिछले एक साल में बुरी तरह प्रभावित किया है।
राज्य में बच्चों के मनोरोगी होने की खबरें सामने आई हैं। बाल मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाविदों की तरफ से बच्चों की मानसिक स्थिति को लेकर चेतावनी दी गई है। इन लोगों का मानना है कि संघर्ष, राज्य के नागरिकों की तरफ से विरोध प्रदर्शन के कारण बच्चों पर दबाव बढ़ा है और उनमें चिंता का स्तर बढ़ गया है। द न्यू ह्यूमैनिटेरियन की रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर के बच्चों की मेंटल हेल्थ को लेकर स्टडी जारी है।
हालांकि 2006 के रिसर्च के बाद तीन से 16 वर्ष की आयु के बीच 100 बच्चों के समूह में अभिघातजन्य तनाव विकार या पीटीएसडी का लेवल काफी हाई था। IMHANS और एक्शनिड द्वारा 2016 के एक स्टडी में यह अनुमान लगाया गया था कि राज्य में हर 10 में एक लोग मानसिक विकार से ग्रस्त थे। इसमें व्यस्क भी शामिल थे। यह मानसिक विकार चिंता या अवसाद से लेकर पीटीएसडी तक था।
रिपोर्ट में श्रीनगर में आईएमएचएएनएस द्वारा संचालित चाइल्ड गाइडेंस एंड वेलनेस सेंटर की काउंसलर फरहाना यासीन कहती हैं कि संघर्ष के कारण तालाबंदी में बढ़ोतरी और महामारी बच्चों के बीच मनोवैज्ञानिक समस्याओं को बढ़ा रही है। यह कश्मीर का पहली ऐसा वैलनेस सेंटर है जो बच्चों और किशोरों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं और परामर्श प्रदान करता है।
सेंटर का कहना है कि 124 बच्चों को वेलनेस सेंटर भेजा गया है। सेंटर का दावा है कि 800 बच्चों की काउंसलिंग की गई है। हाल ही में, दिल्ली के एक समूह द्वारा संकलित एक नवंबर की रिपोर्ट जिसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल थे, में एक मनोचिकित्सक ने सुझाव दिया था कि अगस्त लॉकडाउन के कारण हुए व्यवधान का बच्चों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
केंद्र सरकार की तरफ से अनुच्छेद 370 को खत्म करने की घोषणा के बाद से राज्य में पिछले साल अगस्त में स्कूल बंद हो गए थे। सरकार ने राज्य के विशेष दर्जे को खत्म कर पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया था। हालांकि, इस साल फरवरी में कक्षाएं आंशिक रूप से शुरू हुईं लेकिन एक महीने बाद ही कोरोना महामारी के कारण अनिश्चित समय के लिए फिर से इन्हें बंद कर दिया गया।
कश्मीर का सबसे बड़ा शहर श्रीनगर में मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (IMHANS) में चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइकाइट्रिस्ट डॉ. सैयद कर्रर कहते हैं कि औपचारिक स्कूली शिक्षा में बार-बार व्यवधान, सामाजिक अवसरों को सीमित करने और अनियमित कार्यक्रम बच्चों में अवसाद और व्यवहार से जुड़ी समस्याओं को बढ़ा रहे हैं।
कर्रार कहते हैं कि बच्चों के दिनचर्या बाधित हो गई है और परिवारों के लिए अपने बच्चों के साथ जुड़ने में कई बार मुश्किलें पेश आती हैं। बच्चे लंबे समय से अपने घरों ही सीमित हैं।