भारत सरकार और रेल मंत्रालय ने लॉकडाउन 3.0 की घोषणा के वक्त ही ऐलान किया था कि प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए स्पेशल ट्रेनों और बसों की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि, सरकार की तैयारियां प्रवासियों की संख्या के मुकाबले अब कमजोर दिख रही हैं। इंतजामों के बावजूद हजारों की संख्या में मजदूर पैदल या साइकिल से ही घर लौटने को मजबूर है। ऐसी ही कहानी है बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले एक श्रमिक बृज किशोर की। किशोर का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से अब उसे घर से मंगाए गए पैसों से गुजारा करना पड़ रहा है। घर जाने के लिए 12 दिन पहले रजिस्ट्रेशन कराने के बावजूद रेलवे स्टेशन पहुंचने पर पुलिस डंडे मारती है और ट्रेन पर चढ़ाने के पैसे मांगती है।

कई अन्य मजदूरों की तरह ही पंजाब के फगवाड़ा में फंसा 21 साल का किशोर भी दूसरों की तरह खुद को असहाय ही महसूस कर रहा है। इस डर के चलते अब तक वह भोजपुर जिले के बथानी तोला गांव जाने के लिए 150 किलोमीटर का सफर भी तय कर चुका है। हालांकि, उसका 1500 किलोमीटर का सफर अभी बाकी है और साथ में है सिर्फ एक साइकिल।

अमृतसर की एक धागा फैक्ट्री में काम कर चुका किशोर फिलहाल घर पहुंचने वाले 29 मजदूरों के समूह का हिस्सा है। यह सभी लोग साइकिल से सफर कर अपने घर पहुंचना चाहते हैं। किशोर के मुताबिक, “मैंने अपने पिता से 1000 रुपए उधार लिए। इसमें 800 रुपए मैंने सेकंड हैंड साइकिल खरीदने में लगा दिए। मैं पिछले तीन दिन से साइकिल चला रहा हूं और अभी गांव तक पहुंचने में 12 और दिन लगेंगे। हमारे पैर बुरी तरह सूज गए हैं। पता नहीं हम घर पहुंच पाएंगे या रास्ते में ही मर जाएंगे।”

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किशोर के साथ फगवाड़ा तक का सफर तय कर चुके संतोष कुमार का कहना है कि श्रमिक ट्रेन सेवा शुरू की गई है, लेकिन हमारे जिले से प्रवासियों को पहुंचाने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। हम रोज ट्रेन का पता करने के लिए 10 किलोमीटर पैदल ही डीसी ऑफिस जाते थे, लेकिन पुलिस हमें वापस भेज देती थी। इसके बाद हमने पैदल ही घर जाने का फैसला किया है।

गौरतलब है कि पंजाब में जालंधर और अमृतसर जिले से पिछले करीब एक हफ्ते से श्रमिक ट्रेनें चल रही हैं। इसके बावजूद दोआबा और माझा क्षेत्र के कई प्रवासी बड़ी संख्या में यूपी, बिहार और झारखंड के लिए साइकिलों पर ही निकल रहे हैं। जालंधर के करतारपुर से लेकर फगवाड़ा तक सड़कों पर हर तरफ प्रवासी मजदूर नजर आते हैं। ऐसे ही घर लौट रहे राम निवासन नाम के एक व्यक्ति ने कहा, “कोई हमें साफ-साफ कुछ बता ही नहीं रहा, कब तक बिना किसी जानकारी के बैठ सकते हैं। कोई हमारी मदद नहीं कर रहा, तो हम साइकिल से ही घरों के लिए निकल पड़े।”

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