Jharkhand News: एक महिला ने जिसने 2016 में रांची के फैमिली कोर्ट में अपने पति से मानसिक प्रताड़ना और क्रूरता के चलते तलाक की अर्जी दी थी। इसको लेकर महिला ने 12 लाख की एलिमनी के साथ ही अपने बेटे के भरण पोषण के लिए 8000 रुपये प्रतिमाह की मांग की थी। इसके जवाब में महिला के पति ने कोर्ट नें अर्जी दी और बताया कि वो बेरोजगार है लेकिन इस शख्स का भेद खुला तो सभी के होश उड़ गए।
इस मामले में महिला याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में कहा गया कि शादी के कुछ सालों के भीतर ही उसे कथित तौर पर क्रूरता और घरेलू दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, साथ ही दहेज के लिए नकदी और एक एसयूवी की मांग भी की गई। 2012 में, दंपति को एक बेटा हुआ, जिसे बाद में ऑटिज्म का पता चला। महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति ने उससे बातचीत बंद कर दी और उसे या बच्चे को सहारा देने से इनकार कर दिया था।
शख्स ने बोला बेरोजगारी का झूठ
पति ने पारिवारिक अदालत की कार्यवाही के दौरान दावा किया था कि वह बेरोजगार है। वहीं महिला ने इसको लेकर एक आरटीआई दायर की जिसके हलफनामा बताता है कि वह बेरोजगार नहीं था बल्कि वह मुंबई में एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और वित्त वर्ष 2022-23 में उसकी सकल वार्षिक आय 27 लाख रुपये थी। इसके चलते उसे सभी कटौतियों के बाद लगभग 2.3 लाख रुपये प्रति माह मिलते हैं।
‘धंधा बंद करके छोड़ना पड़ेगा अमेरिका’, दुनिया के सबसे अमीर शख्स को डोनाल्ड ट्रंप ने दे दी इतनी बड़ी धमकी
महिला के वकील ने क्या कहा?
महिला के वकील ने कहा कि पति के झूठे हलफनामे में आय न होने का दावा करने के बावजूद आरटीआई के जवाब से पता चला कि वह 2.31 लाख रुपये प्रति माह कमा रहा था। इसके आधार पर, हमने उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने पहले के जिला न्यायालय के आदेश को संशोधित किया और कुल 90,000 रुपये का मासिक भरण-पोषण के लिए – 50,000 रुपये पत्नी को और 40,000 रुपये ऑटिस्टिक बच्चे को दिए जाएं।
‘वो धर्म के विरोधी नहीं, बल्कि मजबूरी उनसे करवा रही…’, बृजभूषण सिंह ने की अखिलेश यादव की तारीफ
हाई कोर्ट ने जताई हैरानी
उच्च न्यायालय ने हैरानी जताई कि पारिवारिक न्यायालय ने बिना किसी अतिरिक्त सत्यापन के पति के इस दावे को स्वीकार कर लिया कि वह बेरोजगार है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि पत्नी रांची में अतिथि शिक्षिका थी लेकिन इसे नियमित रोजगार नहीं माना जा सकता, खासकर तब जब वह ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे की पूर्णकालिक देखभाल कर रही थी। न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायमूर्ति राजेश कुमार की खंडपीठ ने कहा कि नाबालिग बच्चा जो कि 75% बौद्धिक विकलांगता से पीड़ित है, उसे लंबे समय तक विशेष देखभाल और चिकित्सा की आवश्यकता है।
अदालत ने बच्चे के कल्याण में सक्रिय रुचि लेने में पिता की कथित विफलता को गंभीरता से लिया और टिप्पणी की कि पत्नी का परित्याग एक बात है, लेकिन एक ऑटिस्टिक बच्चे का परित्याग न केवल नैतिक विफलता है, बल्कि एक कानूनी चूक भी है। इसके चलते झारखंड हाई कोर्ट ने महिला और उसके ऑटिस्टिक बेटे को हर महीने 90,000 रुपये देने का फैसला सुनाया। इसमें महिला को 50000 रुपये एलिमनी और 40000 हजार रुपये बीमार बच्चे की देखभाल के लिए दिए जाएंगे।
पसमांदा को लेकर सपा ने कसी कमर, 2027 को ध्यान में रखकर अभियान चलाने की तैयारी
खोल दिए गए सलाल डैम के गेट, भयंकर तरीके से पाकिस्तान की तरफ जा रहा पानी, देखिए VIDEO