मनोज कुमार मिश्र

यह साबित हो चुका है कि आधी कारों को हर रोज सड़क पर आने से रोकने से दिल्ली में वायु प्रदूषण में ज्यादा कमी नहीं आने वाली है। फिर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की हालत ऐसी नहीं है कि दिल्ली सरकार निजी कारों के सम-विषम का फिर प्रयोग कर सके। दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) और सरकार के अधीन चलने वाली बसों के अलावा अभी स्कूल बसों को सड़कों पर आने नहीं दिया गया है। दिल्ली की जीवन रेखा मेट्रो रेल को तमाम एहतियात के तहत चलाया जा रहा है।

कोरोना से बचाव के लिए अधिक संख्या में लोग अपने वाहनों का उपयोग कर रहे हैं। जाहिर है इससे सड़कों पर भीड़ दिखने लगी है और सामान्य दिनों से उलट उन इलाकों में भी दिन में ही जाम लगने लगा है जहां पहले यह नहीं लगता था। इस जाम के कारण प्रदूषण ज्यादा हो जाता है और बीच सड़क पर सांस लेना कठिन होने लगा है।

केजरीवाल सरकार ने 2016 में दो बार और 2019 में एक बार 25 लाख कारों को सम-विषम के आधार पर चलाया यानी एक दिन सम नंबर की कारें और दूसरे दिन विषम नंबर की कारें चलाई गईं। इस का कुछ लाभ हुआ लेकिन बेहतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था न होने से उस दौरान लोगों को काफी परेशानी हुई। इस बार दिल्ली सरकार लाल बत्ती पर गाड़ियों के इंजन बंद करवाने का अभियान चलाया जा रहा है।

पहले अवैध औद्यौगिक इलाके, एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले ट्रक-बस आदि के चलते भी दिल्ली और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना) में प्रदूषण बढ़ाने का कारण माने जाते थे। वैसे अभी भी अवैध उद्योग हैं, भले उनकी संख्या कम हुई है। दिल्ली सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए किसी भी नई उत्पादन इकाई को लाइसेंस देने पर पावंदी लगा दी है। दिल्ली के चारों ओर ईस्टर्न पेरिफेरियल और वेस्टर्न पेरिफेरियल सड़क बन जाने से दिल्ली होकर एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले ट्रकों का दिल्ली के भीतर आना कम हुआ है।

देश के सड़क परिवहन ने कुछ साल पहले दावा किया था कि उनका मंत्रालय दिल्ली के लिए 50 हजार करोड़ की परियोजना पर काम कर रहा है। दो साल में दिल्ली में वायु प्रदूषण काफी कम हो जाएगा। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) समेत अनेक अदालतों ने दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए बार-बार कड़े आदेश दिए हैं। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की एक बड़ी वजह पराली जलाना भी माना जाता है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसान खेत खाली करके दूसरी फसल लगाने के लिए खेत खाली करने के लिए खेत में बचे फसलों के अवशेष को जलाते हैं, जिसका धुआं दिल्ली पर छा जाता है।

अदालती आदेश के बाद सरकारों ने पराली न जलाने और उसका दूसरा बेहतर उपयोग करवाने के प्रयास शुरू किए हैं। इसी तरह से एनजीटी ने दस साल पुराने व्यवसायिक वाहनों पर रोक लगा दी। उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल पुराने डीजल वाहनों पर स्थायी बंदिश लगा दी थी। बावजूद इसके इस बार प्रदूषण कम होता नहीं दिख रहा है। दिल्ली में पहले भी सारे व्यवसायिक वाहनों को अदालती आदेश से सीएनजी पर चलाया जा रहा है। हालात एक दिन में खराब नहीं हुए हैं। कुप्रबंधन और सरकारी लापरवाही ने दिल्ली के हालात बदतर बना दिए और सुधार के आसार दिख ही नहीं रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 1998 को आदेश दिया कि दिल्ली में चलने वाले सभी बसों को धीरे-धीरे सीएनजी पर लाया जाए। इसकी तारीख 31 मार्ट 2001 तय की गई। सरकारें एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालती रहीं तो अप्रैल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा सख्त आदेश दिए। उसके बाद सीएनजी पर बसों और व्यवसायिक वाहनों को लाने की प्रक्रिया तेज हुई। कायदे में 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में मिले पैसों से दिल्ली की सड़कों पर बसें दिखने लगीं।

दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में 11 हजार बसें चलाने का हलफनामा दे रखा है लेकिन अब तो 2010 की बसें भी सड़कों पर से हटने लगी बसों की संख्या गिनती की रह गई हैं। दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की तादाद एक करोड़ से ज्यादा है। लाखों वाहन एनसीआर के दूसरे राज्यों में पंजीकृत हैं जो हर रोज दिल्ली में चलते हैं। इसलिए कोई भी योजना पूरे एनसीआर के लिए बनाने के बाद ही प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है। प्रदूषण के संकट के स्थायी समाधान के लिए दिल्ली को केंद्र सरकार और पड़ोसी राज्यों का सक्रिय सहयोग जरूरी है।