बिहार का मखाना अब सिर्फ एक कृषि उत्पाद नहीं रहा, बल्कि यह राज्य की पहचान, संस्कृति और राजनीति का प्रतीक बन चुका है। स्वाद, पौष्टिकता और औषधीय गुणों के कारण मखाने ने देश से लेकर विदेश तक में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। इस पहचान के पीछे राज्य के लाखों किसानों और मजदूरों की मेहनत छिपी है, जिनके जीवन पर आने वाले विधानसभा चुनावों का सीधा असर पड़ता है। राज्य के पूर्णिया, कटिहार, दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, किशनगंज और सीतामढ़ी जिले में बड़े पैमाने पर मखाने की खेती और प्रसंस्करण होता है। इन जिलों की कुल 66 यानी एक चौथाई से अधिक विधानसभा सीटें हैं।
66 में से 48 सीटें NDA ने जीती थी
वर्ष 2020 के चुनाव में इनमें से 48 सीटें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने जीती थीं। यही वजह है कि इस बार भी मखाना बेल्ट की सीटें सभी राजनीतिक दलों की रणनीति के केंद्र में हैं। एक अनुमान के अनुसार तीन लाख से अधिक किसान और मजदूर इस उद्योग से जुड़े हैं। मखाना उद्योग में अति पिछड़ी जातियों, विशेषकर मल्लाह समुदाय की अहम भूमिका मानी जाती है। यह समुदाय मखाने की भूनाई और पापिंग इकाइयों पर बड़ा नियंत्रण रखता है।
मखाना मल्लाहों की आजीविका और पहचान
मखाना मल्लाहों की आजीविका और पहचान दोनों से जुड़ा हुआ है। इसलिए इस बार चुनावी समीकरणों में मल्लाह वोट निर्णायक शक्ति माने जा रहे हैं। सत्ता में शामिल NDA और विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही इस समूह को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। महागठबंधन ने इस दिशा में पहल करते हुए विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के नेता मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। सहनी की पार्टी का आधार इसी समुदाय में गहराई तक फैला है।
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दूसरी ओर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) भी मखाना किसानों के मुद्दों पर मुखर हो चुकी हैं। इसी क्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान कटिहार का दौरा किया, जहां उन्होंने मखाना किसानों से सीधे संवाद किया। राहुल गांधी ने खेतों और तालाबों में उतरकर मखाने की खेती की पारंपरिक तकनीक देखी और किसानों की समस्याएं सुनीं—मूल्य निर्धारण की असमानता, बिचौलियों का नियंत्रण और बाजार तक पहुंच की कठिनाइयों पर चर्चा हुई। इसके बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, “आपका सुपर फूड मखाना, बिहार के किसानों के खून-पसीने का उत्पाद है। बिक्री हजारों रुपये किलो होती है, लेकिन आमदनी कौड़ियों में। पूरा मुनाफा बिचौलियों का है।”
बिहार दुनिया के 90 फीसद मखाने का उत्पादन करता है- राहुल
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि बिहार दुनिया के 90 फीसद मखाने का उत्पादन करता है, लेकिन मेहनत करने वाले किसानों-मजदूरों को इसका एक फीसद लाभ भी नहीं मिलता। उन्होंने मखाना उद्योग में व्याप्त आर्थिक असमानता को सामाजिक न्याय के मुद्दे से जोड़ते हुए कहा कि पूरी मेहनत 99 फीसद बहुजनों की है और फायदा केवल एक फीसद बिचौलियों का। कांग्रेस महागठबंधन अब इस मुद्दे को ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सामाजिक बराबरी से जोड़कर प्रचार में ला रही है।
मखाना बिहार का गौरव- पीएम मोदी
वहीं, सत्तारूढ़ NDA ने मखाने को ‘लोकल से ग्लोबल’ ब्रांड बनाने की दिशा में खुद को किसानों का सहयोगी बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में एक चुनावी सभा के दौरान मखाना किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘मखाने की पहुंच अब देश के दूर-दराज के बाजारों से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक है, और यह बिहार का गौरव है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में काम कर रही है, जिसके तहत ‘मखाना बोर्ड’ के गठन की प्रक्रिया तेज की गई है। इस बोर्ड का उद्देश्य खेती, प्रसंस्करण और निर्यात से जुड़े किसानों को बेहतर बाजार और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है। मोदी ने भरोसा दिलाया कि आने वाले दिनों में मखाना उद्योग से जुड़े हर परिवार की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
राज्य की अर्थव्यवस्था में मखाना उद्योग का वार्षिक कारोबार लगभग 3,000 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। इसे ‘बिहार का सफेद सोना’ भी कहा जाता है। दरभंगा और मधुबनी में यह पारंपरिक रूप से पूजा-अर्चना का हिस्सा है, वहीं सहरसा और सुपौल जिलों में यह हजारों परिवारों की जीविका का आधार है। हालांकि किसानों को अभी भी बाजार मूल्य, परिवहन, निर्यात और प्रसंस्करण में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बिहार के इस मखाना बेल्ट की राजनीतिक महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि यहां की सामाजिक संरचना में अति पिछड़े और दलित-बहुजन समुदायों की हिस्सेदारी बड़ी है। यही वह वर्ग है जो पिछले दो चुनावों से सत्ता के समीकरण निर्धारित कर रहा है।
