उद्धव ठाकरे से बागी हुए विधायक उदय सामंत की कार पर हमले के मामले में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के मुताबिक शिवसेना की पुणे शहर इकाई के अध्यक्ष और चार अन्य को गिरफ्तार किया गया है। पुणे के पुलिस कमिश्नर अमिताभ गुप्ता का कहना है कि शिवसेना की शहर इकाई के अध्यक्ष संजय मोरे सामंत की कार पर हमले के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में शामिल हैं। मोरे उद्धव ठाकरे का बेहद करीबी है।

मामले के मुताबिक मंगलवार रात करीब नौ बजे कटराज इलाके में एक सिग्नल पर अज्ञात लोगों ने सामंत की कार पर हमला किया था। सामंत के वाहन को घेरने की कोशिश कर रही भीड़ का एक वीडियो और नारेबाजी करते हुए सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद पुलिस 15 से अधिक लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। हमला तब किया गया जब विधायक सामंत मुख्यमंत्री शिंदे के कार्यक्रमों में शामिल होने यहां आए थे।

उदय सामंत ने बुधवार को अपने ट्वीट में कहा कि अगर आप मुझे गद्दार कहें तो कोई बात नहीं। मुझे गाली भी दें तो भी कोई बात नहीं। मेरे माता पिता को भी अपशब्द कहें तो भी वो कोई जवाब नहीं देते लेकिन क्या आप मुझे जान से मार देंगे, क्योंकि मैंने अपनी विचारधारा बदल ली है। उनका कहना था कि वो शांत हैं लेकिन बेसहारा नहीं। समय ही इन सब बातों का जवाब देगा। मेरे सब्र का इम्तिहान न लें कहकर उन्होंने लिखा- जय महाराष्ट्र।

बीजेपी की गोद में बैठे थे एकनाथ शिंदे

उधर शिवसेना किसकी, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से कहा गया कि शिंदे और उनकी टीम ढाई साल तक सरकार में रहे। तब उन्हें MVA गठबंधन से दिक्कत नहीं थी। लेकिन अचानक ही उन्हें कहीं से ज्ञान प्राप्त हुआ और वो महाराष्ट्र से निकलकर बीजेपी की गोद में जा बैठे। ये दिखाता है कि उनके पास पार्टी कैडर का समर्थन नहीं था।

उद्धव ठाकरे की ओर से कपिल सिब्बल ने बहस की शुरुआत की। सीजेआई एनवी रमना ने पूछा कि वो जानना चाहते हैं कि अगर दो तिहाई लोग किसी राजनीतिक दल से अलग होते हैं तो क्या उन्हें नई पार्टी का गठन करना होगा? सीजेआई ने कहा कि क्या नए ग्रुप को चुनाव आयोग के समक्ष रजिस्टर करना होगा या स्पीकर के पास जाना होगा या उन्हें दूसरी पार्टी में शामिल होना होगा?

ठाकरे ग्रुप की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर वो नई पार्टी बनाते हैं तो उन्हें चुनाव आयोग के समक्ष पंजीकरण कराना होगा। लेकिन किसी अन्य पार्टी में विलय होने पर पंजीकरण नहीं कराना होगा। मुद्दा संतुलन का भी है। 1/3 अभी भी पार्टी में शेष हैं। 2/3 यह नहीं कह सकते कि हम ही पार्टी हैं।

एक नाथ शिंदे गुट की तरफ से हरीश साल्वे ने बहस शुरू की। साल्वे ने कहा कि दलबदल विरोधी कानून उस नेता के लिए नहीं है जो अपनी ही पार्टी के सदस्यों का विश्वास खो चुका है और वो किसी तरह उन्हें बंद करके सत्ता में रखना चाहता है। दल बदल कानून इस मामले में लागू नहीं होता। ये तब होगा जब वो पार्टी से अलग होते हैं। इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। ये एंटी पार्टी नहीं इंट्रा पार्टी मामला है।