महाराष्ट्र में सुरक्षा की मांग को लेकर चल रही डॉक्टरों कीहड़ताल के समर्थन में दिल्ली के करीब 40 हजार रेजीडेंट डॉक्टर भी गुरुवार को हड़ताल पर रहे। संकाय सदस्यों ने ओपीडी में काम किया, बावजूद इसके पूरे दिन मरीज हलकान होते रहे। करीब 60 फीसद आॅपरेशन टालने पड़े। सफदरजंग के डॉक्टरों ने हड़ताल के समर्थन में काली पट्टी बांधकर काम किया। चूंकि चिकित्सा पेशे में हड़ताल की अदालती मनाही है, लिहाजा हड़ताल सामूहिक अवकाश के नाम से की गई। इसका अस्पताल में मिला-जुला असर रहा। इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने डॉक्टरों से अपील की है कि वे काम पर लौट आएं। साथ ही राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे डॉक्टरों को सुरक्षा मुहैया कराएं। उधर दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने प्रेस कांफे्रंस कर डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग की। अस्पतालों के अधिकतम कामों का जिम्मा उठाने वाले रेजिडेंट डॉक्टरों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग को लेकर चल रही हड़ताल के चार दिन बीतने पर केंद्र सरकार ने राज्यों को डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फौरन कदम उठाने के निर्देश दिए। जेपी नड्डा ने ट्वीट के जरिए कहा कि डॉक्टरों क ी सुरक्षा क ो लेकर काफी चिंतित हूं। मैं राज्य सरकारों से आग्रह करता हूं कि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फौरन कदम उठाएं। साथ ही उन्होंने मरीजों की देखभाल प्रभावित न होने देने की डॉक्टरों से भी अपील की। उन्होंने कहा कि वे अपनी बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराते रहें ताकि कोई परेशानी ना हो।
मरीज के परिजनों और डॉक्टरों के बीच आए दिन होने वाली मारपीट व हमले के खिलाफ सुरक्षा की मांग को लेकर दिल्ली में भी डॉक्टरों को क ई बार अश्वासन दिए गए। लेकिन अबकी बार डॉक्टर ठोस कार्रवाई के बाद ही काम करेंगे। ऐसा कई डॉक्टर यूनियनों ने कहा। लेकिन फेडरेशन आॅफ डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) के अध्यक्ष डॉ पंकज सोलंकी के मुताबिक, सफदरजंग के डॉक्टर हमारे साथ हंै।

लिहाजा काला फीता बांधकर काम करने के फैसले का स्वागत करते हैं। दिल्ली सरकार के 39 अस्पतालों के डॉक्टरों ने हड़ताल में शामिल रहने का फैसला किया और हर अस्पताल की रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने अपने ही स्तर पर अस्पतालों में ही रहकर विरोध प्रदर्शन किए। सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक काम न करने का फैसला हुआ था। इसके बाद की रणनीति को लेकर डॉक्टरों ने गुरुवार देर शाम तक बैठकें कीं। एम्स रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ विजय ने कहा कि हम महाराष्ट्र ही नहीं, देश के हर डॉक्टर की सुरक्षा की मांग करते हैं। कठिन परिस्थितियों में भी हम काम करते हैं, पर कोई भी गुस्से में आकर डॉक्टरों को ही निशाना बनाता है। कहीं संसाधन की कमी से तो कहीं काम के बोझ के चलते भी अगर किसी मरीज के इलाज में देरी हो जाए तो वह सीधे डॉक्टर को ही कसूरवार मान बैठता है। आखिर क्यों? सरकार संसाधनों को बढ़ाने के बारे में भी सोचे। इमरजंसी सेवाओं के अलावा आमतौर से रेजीडेंट डॉक्टरों ने कहीं कोई काम नहीं किया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में तमाम छोटे आॅपरेशन तो किए गए। लेकिन बड़े आॅपरेशन ज्यादा नहीं हो पाए। हालांकि यहां संकाय सदस्य ओपीडी मे बैठे, लेकिन मरीजों को अपनी बारी आने का काफी देर तक इंतजार करना पड़ा, क्योंकि डॉक्टर अकेले थे, उनके सहयोगी नहीं थे। मरीजों व तीमारदारों के बीच झगड़े के मसले पर हुई हड़ताल के बावजूद मरीजों का रुख हड़ताल के दिन भी सहयोगात्मक ही नजर आ रहा था। बारी का इंतजार सुबह नौ बजे से कर रही एक मरीज क ी परिजन आयशा ने परेशानी के बाबत पूछने पर कहा- देख तो रहे हैं बड़े डॉक्टर, अब वे अकेले हैं तो समय तो लगेगा ही।