महाराष्ट्र में सियासी संकट छाया हुआ है और सरकार खतरे में है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब महाराष्ट्र में सियासी संकट मंडरा रहा है। वर्तमान में सरकार के लिए संकटमोचक माने जा रहे शरद पवार ने सन 1978 में महाराष्ट्र में उस समय अपनी ही पार्टी कांग्रेस की सरकार को गिरा दिया था। कांग्रेस की वसंतदादा पाटील की सरकार को उन्होंने गिरा दिया था और उसके बाद वे खुद मुख्यमंत्री बन गए थे।

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शरद पवार कांग्रेस के 38 विधायकों के साथ अलग गुट बनाकर बागी हो गए थे और उन्होंने सरकार बना ली थी। उस दौरान विधायक रहे और शरद पवार के साथ बागी हुए विधायक कृष्णराव भेगड़े ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उस पूरे किस्से के बारे में बताया। कृष्णराव भेगड़े ने कहा कि यह पवार, गोविंदराव आदिक और प्रतापराव भोसले जैसे लोग थे जो उस समय विद्रोह में सबसे आगे थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “आज शिवसेना में फूट हिंदुत्व के मुद्दे पर लगती है। साथ ही बागी शिवसैनिक एनसीपी द्वारा अपमानजनक व्यवहार का मुद्दा उठा रहे है।”

भेगड़े ने बताया, “1978 में विद्रोहियों ने सरकार से अलग होने का फैसला करने का मुख्य कारण उनके साथ किया गया अपमानजनक व्यवहार था। उपमुख्यमंत्री नासिकराव तिरपुड़े, जो कांग्रेस (आई) से थे, उन्होंने मुख्यमंत्री पाटिल, शरद पवार और उनके गुरु यशवंतराव चव्हाण की खुले तौर पर आलोचना की। तिरपुडे ऐसी बातें कह रहे थे जो पवार और उनके करीबी सहयोगियों को अच्छी नहीं लगीं। पवार वसंतदादा पाटिल समूह में मंत्री थे।”

कृष्ण राव भेगड़े ने याद करते हुए बताया, “जब विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा था, उस समय शरद पवार 18 जुलाई, 1978 को राज्यपाल के पास गए और अपने 38 विधायकों के एक नए समूह के गठन के संबंध में एक पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने अन्य दलों के समर्थन के संबंध में एक पत्र और विधायक दल के नेता के रूप में अपने चुनाव के संबंध में एक अन्य पत्र भी प्रस्तुत किया। इसके बाद राज्यपाल ने पवार को मुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए आमंत्रित किया। विधानसभा सत्र चल रहा था, तब भी पवार ने पद की शपथ ली।”

पूर्व विधायक कृष्ण राव भेगड़े ने बताया, “पवार के नेतृत्व वाली (प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट) गठबंधन सरकार लंबे समय तक नहीं चली। 1980 में सत्ता में लौटने के बाद इंदिरा गांधी ने इसे हटा दिया था। मेरी जानकारी के अनुसार उन्होंने पवार को कांग्रेस में शामिल होने के लिए कहा था। उन्होंने मना कर दिया और अगले दिन उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।”

कृष्ण राव भेगड़े ने बताया,”उस समय पवार ने उनसे संपर्क नहीं किया था, लेकिन उनके करीबी सहयोगियों ने उन्हें एक अलग समूह बनाने और ‘हमारी अपनी’ सरकार बनाने की आवश्यकता के बारे में आश्वस्त किया था। मुझे याद नहीं है कि पवार मुझसे या अन्य विधायकों से मिले थे। हमें आम तौर पर संबोधित किया जाता था। शरद पवार के करीबी हमारे संपर्क में रहे थे।”