चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का एक बार फिर तेजी से ध्रुवीकरण हो रहा है। प्रदेश की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 86 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, जिनमें 51 मुस्लिम प्रभाव वाली सीटें हैं। इन सीटों पर राजग या ‘इंडिया’ किसे फायदा मिलेगा, इसपर स्थिति साफ होने के लिए मतदाताओं को और 10 दिन का इंतजार करना होगा।

राजग ने 2020 में 70 फीसद मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। लेकिन, एआइएमआइएम, जन सुराज पार्टी समेत दूसरे दलों की सेंधमारी के बावजूद, गठबंधन के प्रमुख घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस, इस वर्ग को साधने में मिलने वाली कामयाबी की सियासी समीकरण तय करने में अहम भूमिका रहेगी।

सीमांचल पूरी तरह से मुस्लिम बाहुल्य

बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 17.7 फीसद है। आबादी के मुताबिक हिस्सेदारी की मांग से राजनीतिक दलों की भी कोशिश इस वर्ग को साधने की है। बिहार के सात जिलों (किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, पश्चिम चंपारण और सीतामढ़ी) में विधानसभा की 51 सीटें हैं। इन जिलों में मुस्लिम आबादी 20 फीसद से 68 फीसद तक है। हालांकि प्रदेश में किशनगंज, एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला है, जहां मुसलमानों की आबादी करीब 68 फीसद है।

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यह आंकड़ा, कटिहार में 45 फीसद, अररिया में 43 फीसद जबकि पूर्णिया में 38 फीसद है। शेष तीन जिलों में मुसलमानों की आबादी करीब 22 फीसद है। 2020 के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 51 मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों में से 35 यानी 70 फीसद सीट पर जीत दर्ज की थी। इससे पहले 2015 के चुनाव में भाजपा और उसके प्रमुख सहयोगी जनता दल (एकी) के अलग अलग चुनाव लड़ने की वजह से प्रदर्शन गिर गया था।

2010 में एनडीए ने जीती थी ज्यादातर सीटें

इससे पहले 2010 के विधानसभा चुनाव में भी राजग ने अधिक सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि इस बार राजग में भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव में नहीं उतारा, जबकि महागठबंधन या इससे अलग दलों ने मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार हैं। इनमें एआइएमआइएम, राजद, कांग्रेस समेत कमोबेश कई दलों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

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अनुग्रह नारायण सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा, इस बार ज्यादातर मुस्लिम मतदाता सोच समझकर वोट करने के मूड में हैं। सरकारी योजनाओं के लाभार्थी अपने हिसाब से वोट तय करेंगे, मुस्लिम महिलाओं का ‘वोटिंग पैटर्न’ हवा के रुख के साथ अब नहीं रहा है। हालांकि, टिकट न मिलने से नाराज कुछ उम्मीदवार, दूसरे दलों के साथ हैं। जिन दलों ने जीत की संभावना को देखने के बाद उम्मीदवारों का चयन किया है, उनके जीतने की प्रबल संभावना है।