आदर्श गुप्ता 

लड़कियों के लिए चंबल की आबोहवा 100 साल बाद भी नहीं बदली है। आज भी यहां के लोग लड़कियों को जन्म नहीं लेने दे रहे हैं। इस जिले के लिंगानुपात के आंकड़े तो यही कहानी कहते हैं। वर्ष 1911 की जनगणना में यहां प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 846 लड़कियां थीं तो 2011 की जनगणना में यह संख्या 840 ही पाई गई। केवल 1901 में शहरी इलाके की गणना में 1000 लड़कों पर मुरैना के गजट में 1007 तो जनगणना के दस्तावेज में यह संख्या 961 दर्ज है। जो भी सही हो लेकिन 1901 से 1911 तक यहां लड़कियों-लड़कों के संख्या लगभग बराबर थी।

मध्य प्रदेश सरकार भी इस इलाके में घटते लिंगानुपात से चिंतित है। वह तमाम उपाय करके इस अनुपात को 952 पर पहुंचाना चाहती है लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। जिले के महिला सशक्तिकरण अधिकारी की 2016 की एक रिपोर्ट बताती है कि जिले के कुल आबाद गांवों में से 30 प्रतिशत से ज्यादा में आज भी लड़कियों को मारने का सिलसिला जारी है। इससे इन गांवों का लिंगानुपात 700 से भी नीचे चला गया है। अपनी इस रिपोर्ट के बाद विभाग ने अब तक इस स्थिति को सुधारने की कोई कोशिश नहीं की है। वह दीवारों पर नारे लिखकर इस समस्या को हल करना चाहता है। और तो और राज्य का महिला आयोग भी पगड़ी बांधे औरतों की हुंकार रैली निकाल कर इस समस्या को खत्म करने का सपना देख रहा है।

यह भी एक सच्चाई है कि जिले में पीसीपीएनडीटी एक्ट पूरी सख्ती से लागू है। फिर भी नेशनल हेल्थ सर्वे 2012 की रिपोर्ट में 70 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं न केवल अल्ट्रासांउड करवा रहीं थीं बल्कि वे निजी नर्सिंग होम में सुरक्षित गर्भपात भी करा रही थीं। जन्म के बाद बेटियों को मारने के लिए बदनाम चंबल के इस इलाके में अल्ट्रासांउड मशीन आने के बाद तो उनका जन्म लेना भी मुश्किल हो गया।इसका नतीजा यह निकला कि 1991 में यह अनुपात 808 पर पहुंच गया। तब सरकार के कान खड़े हुए लेकिन 2001 में वह आंकड़े को 822 तक ही पहुंचा पाई। 2011 में यह 840 पर पहुंच गया। लेकिन 2016 में महिला बाल विकास विभाग ने जिले के सभी 760 गांवों का सर्वे कराया तो इनमें 273 गांव ऐसे निकले जिनमें लड़कों के मुकाबले लड़कियों का अनुपात 700 से भी नीचे मिला। कुछ गांवों में तो वह 600 से भी कम था। तमाम निगरानी और नियंत्रणों के बाद भी यह स्थिति चिंता पैदा करती है।

नेशनल हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक तोमरधार के अम्बाह और दिमनी के कुल 46 गांवों का ही लिंगानुपात 700 से कम मिला जबकि मुरैना के 85 और सिकरवारी जौरा कैलारस सबलगढ़ के 93 गांवों की स्थिति तोमरधार से ज्यादा खराब पाई गई। आदिवासियों की आबादी बाला पहाड़गढ़ का इलाका भी राजपूतों की इस बीमारी का शिकार हो गया। वहां के 49 गांवों का लिंगानुपात खतरनाक स्थिति में पाया गया। पहाड़गढ़ के एक गांव बंधराय में तो 1000 लड़कों पर मात्र 568 लड़कियां ही मिलीं। 700 से कम लिंगानुपात वाले गांवों की अच्छी खासी संख्या का मिलना बताता है कि तमाम प्रयासों के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है।  नेशनल हेल्थ सर्वे 2012 के आंकड़ों के अनुसार 15 से 49 साल तक की गर्भवती महिलाओं में से 70 फीसद ने गर्भपात से पहले अल्ट्रासांउड कराया था। इसके बाद इन 70 फीसद महिलाओं में से 74.6 फीसद महिलाओं ने निजी नर्सिंग होम में प्रशिक्षित लोगों से अपना गभर्पात कराया। बाकी प्रसव या गर्भपात घरों में या अप्रशिक्षित लोगों से कराए गए। जैसे तैसे जन्म लेने में सफल रहने वाली लड़कियों का जीवन चार साल में खत्म होने के सबूत भी नेशनल हेल्थ सर्वे के आंकड़ों में मिले।\रिपोर्ट बताती है कि जिले में प्रति एक हजार लड़कों पर 855 लड़कियों के जन्म लेने के बाद 2012 में 0 से 4 साल की जीवित लड़कियों की गिनती की गई तो उनकी संख्या 793 पर जाकर रुक गई। 855 की जगह 793 रह जाना यह बताता है कि 62 लड़कियां या तो मर गर्इं या मार दी गईं।