साठ के दशक में दो बार मप्र के मुख्यमंत्री रहे द्वारका प्रसाद मिश्र की बुद्धिमत्ता का लोहा इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक सभी मानते थे। उन्होंने इंदिरा को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की थी। यहां तक कि राजीव गांधी ने उनके कहने पर वोट डालने की उम्र 18 साल की थी।
उनका जन्म 5 अगस्त, 1901 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव के पढरी गांव में हुआ था। वह मोतीलाल नेहरू के बेहद करीबी माने जाते थे। उनके सानिध्य में ही उनका राजनीतिक सफर 1926 में शुरू हो गया था। उनकी बुद्धिमत्ता का लोहा कई बार माना गया। अलबत्ता उस समय सभी उनके कायल हो गए जब उन्होंने इंदिरा गांधी को पीएम बनने में मदद की। मिश्रा ने अपनी किताब ‘पोस्ट नेहरू इरा’ में लिखा है कि जैसे ही शास्त्री जी की ताशकंद में मौत की खबर आई, एक बार फिर से रात साढे ग्यारह बजे गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया।
इंदिरा के मना करने पर भी प्रणब लड़े चुनाव
लंदन से बुलाकर बनाया था राजस्थान का सीएम
इस बार ना गुलजारी लाल नंदा पीएम की पोस्ट छोड़ना चाहते थे और ना ही इंदिरा गांधी। इंदिरा ने अगली सुबह एमपी के सीएम द्वारका प्रसाद मिश्रा को फोन किया। उनके पास गुलजारी लाल नंदा का भी फोन आया। दोनों ही पीएम बनना चाहते थे। दोनों उनसे समर्थन और सलाह दोनों चाहते थे। किताब में जिक्र है कि उन्हीं की सलाह पर इंदिरा ने जानबूझकर पीएम पद की अपनी उम्मीदवारी में देरी की। मिश्रा ने इस दौरान कुछ चीफ मिनिस्टर्स से मीटिंग की और उन्हें इंदिरा के समर्थन के लिए राजी किया।
उस समय के ज्यादातर नेता नहीं चाहते थे कि मोरारजी पीएम बनें, क्योंकि उनको कंट्रोल करना किसी के बस में नहीं था। इंदिरा सबको गूंगी गुडिया लगती थीं। 1972 तक वो इंदिरा गांधी के राजनीतिक सलाहाकार के तौर पर काम करते रहे। संजय गांधी के युग में इंदिरा और मिश्र के रास्ते अलग हो गए। मिश्र ने संजय गांधी के बारे में अपनी किताब में भी लिखा।
उन्होंने लिखा- मैं अब किसे अपना नेता मानता- संजय गांधी को? मोतीलाल नेहरू के साथ मैं काम कर चुका था और उन्हें अपना पहला नेता मानता था। वहां से संजय गांधी तक गिरकर नीचे आना मुझे समझ नहीं आया। एक वक्त था जब महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू को नेताओं का प्रिंस कहा करते थे और आज संजय गांधी दिल्ली की धमाचौकड़ी के प्रिंस कहे जाते हैं। इन सब घटनाओं ने ही ही मुझे इंदिरा को नमस्ते कहने के लिए मजबूर कर दिया। 1988 में दिल्ली में उनका निधन हुआ।