प्रोजेक्ट चीता के तहत मोदी सरकार ने पिछले साल नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को भारत लाने का काम किया था। उन चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। लेकिन अब नामीबिया के वैज्ञानिक मानते हैं कि कूनो नेशनल पार्क में जगह कम है और चीते ज्यादा जो आगे जाकर परेशानी का सबब बन सकता है।

असल में गुरुवार को Conservation Science and Practice के नाम से एक जर्नल छपा है जिसमें नामीबिया के वैज्ञानिकों ने भारत के प्रोजेक्ट चीता की नीयत को तो सही माना है, लेकिन कुछ कमियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। उन्हीं कमियों में सबसे बड़ी परेशानी कूनो नेशनल पार्क में जरूरत से ज्यादा छोड़े गए चीतों को लेकर है। रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि जब चीतों को घूमने के लिए ज्यादा जगह नहीं मिलेगी तो वे पास के दूसरे गांवों में घुस सकते हैं, उस स्थिति में संघर्ष की स्थिति बन सकती है। बड़ी बात ये है कि कूनो नेशनल पार्क से जुड़े कुल 169 छोटे गांव हैं, ऐसे में चीतों के लिए जगह की कमी उन गांवों की परेशानी बढ़ा सकती है।

कूनो में चीतों को क्या समस्या, रिपोर्ट में क्या लिखा?

अब भारत में बैठे जानकार इस समस्या के दो समाधान देखते हैं, पहला तो ये कि चीतों को दूसरी जगह भेजा जाए, वहीं एक समाधान ये भी है कि चीतों को बाड़ो में पकड़कर रखा जाए। लेकिन ऐसी स्थिति में सरकार की योजना को चोट पहुंचती है क्योंकि सपना देखा गया है कि भारत में चीतों को भी उनका खुला स्थान दिया जाए। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट पर नजर बनाए रखने के लिए जिस कमेटी का गठन किया है, उनके हेड एमके रंजीत सिंह बताते हैं कि ये सही बात है कि चीतों को ज्यादा जगह की जरूरत है। मैं खुद तीन ऐसी जगहों का लगातार जिक्र कर रहा हूं, जहां चीतों को छोड़ा जा सकता है। कूनो के क्षेत्र को बढ़ाने की बात मैंने कही है।

इसी प्रोजेक्ट के एक मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर वाय वी झाला ने भी इस बात पर जोर दिया है कि ये बात सही है कि अभी दूसरी जगह नहीं मिल रही है, वहीं निवेश की भी कमी है। ऐसे में रिपोर्ट में जो बताया गया है, वो वास्तविक स्थिति है, लेकिन मैं साफ करना चाहता हूं कि कूनो की वहन क्षमता का अनुमान शिकार की उपलब्धता से किया जा रहा है। अब तर्क जरूर ये दिया गया है, लेकिन नामीबिया के जानकार मानते हैं कि किसी भी जगह की वहन क्षमता को सीधे-सीधे शिकार की उपलब्धता से जोड़ना गलत है।

अफ्रीका से अलग भारत में स्थिति, चीतों के लिए मुश्किल?

यहां ये समझना भी जरूरी है कि भारत की स्थिति दक्षिण अफ्रीका से काफी अलग है। वहां पर चीतों के लिए काफी बड़ा इलाका मौजूद है, 100 वर्ग किलोमीटर में एक से भी कम चीता रहता है। अभी के लिए कूनो नेशनल पार्क में जानकारों के बीच इस बात पर सहमति बन रही है कि कम से कम 12 चीतों को किसी दूसरी जगह पर शिफ्ट किया जाए, लेकिन कब तक ऐसा होगा, ये स्पष्ट नहीं। वैसे नामीबिया के वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि कूनो में कितनी जगह है, इसे लेकर स्पष्टता की कमी रही, वहीं ये भी समझा गया कि अगर शाकाहारियों को कूनो में बढ़ा दिया जाएगा तो उससे ज्यादा चीते वहां रह पाएंगे। लेकिन खाने की उपलब्धता को सीधे-सीधे चीतों से जोड़ देना गलत है।

जानकारी के लिए बता दें कि कूनो नेशनल पार्क में 44 में से 17 किलोमीटर ऐसा इलाका है जहां फेंसिंग नहीं है। ऐसे में अगर नामीबिया से तीन और चीते कूनो में आते हैं, तो उनका वहां से बाहर जाने का खतरा ज्यादा बढ़ जाएगा। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए Serengeti Cheetah Project को हेड करने वालीं डॉक्टर सारा दुरंत कहती हैं कि चीतों का जो ये व्यवहार है, ये सबसे पहले 1980 में Serengeti में भी देखने को मिला था।