मध्य प्रदेश का सिंगरौली चर्चा में बना हुआ है। यहां पर हाईवे का निर्माण कार्य चल रहा था और यह जिले के 33 गांवों से होकर गुजरेगा। कुछ समय पहले यहां पर हरे भरे खेत दिखाई दे रहे थे लेकिन अब अचानक पूरा दृश्य बादल गया है। प्रस्तावित हाईवे पर लगभग 2,500 नए घर अचानक बन गए हैं। कृषि भूमि पर घर बनाने से ज़मीन के भुगतान की तुलना में मुआवज़ा काफी बढ़ जाता है।

हालांकि खेतों में बनने वाली नए घर की दीवारें केवल 4 फुट ऊंचे हैं, जो बच्चों के लिए भी बहुत छोटी होती हैं। घर के ऊपर टिन की छत है। इसे अब स्थानीय स्तर पर ‘मुआवजा उद्योग’ कहा जा रहा है। इन घरों का निर्माण कथित तौर पर स्थानीय अधिकारियों और दलालों की मिलीभगत से किया जा रहा है, जिन्हें नए निर्माण या भूमि सौदों पर प्रतिबंध के बावजूद कटौती का बड़ा हिस्सा मिलेगा। मार्च में एक सर्वेक्षण के बाद मुआवजे के लिए क्षेत्र निर्धारित किए गए। प्रशासन ने अब कहा है कि नए मकानों के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा।

चितरंगी और दुधमानिया क्षेत्रों के गांवों के ड्रोन फुटेज से हाईवे के रास्ते में बने घरों का पता चलता है, जिसका 70 किमी हिस्सा जिले से होकर गुजरेगा। निवासियों का कहना है कि दलालों ने स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों की भागीदारी के साथ निर्माण को अंजाम दिया है। भूमि अधिग्रहण मार्च में शुरू हुआ और प्रशासन ने नए निर्माण और भूमि लेनदेन पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन उसके बाद निर्माण की गति तेज हो गई।

स्थानीय निवासी संकठा सिंह चौहान ने कहा, “जैसे ही लोगों को मुआवज़े की जानकारी मिली, एक-दो महीने के भीतर मकानों का निर्माण शुरू हो गया। लगभग एक महीने में यहां 2,500 से अधिक मकान बन गए। इनमें से अधिकतर मकान सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से बनाए गए हैं, जैसे कि राजस्व विभाग के लोग।”

हाईवे के लिए सर्वे से पहले सड़क के रास्ते की जमीन 8,000 रुपये प्रति डिसमिल (435.6 वर्ग फीट या एकड़ का सौवां हिस्सा) बिक रही थी, जो अब 80,000 रुपये तक पहुंच गई है। एक अधिकारी ने कहा, “जमीन का मुआवजा अलग-अलग होता है, लेकिन अगर जमीन पर कोई घर बना है और कोई वहां रहता है, तो पुनर्वास पैकेज प्रदान किया जाना चाहिए। इसमें परिवार के एक सदस्य को नौकरी देना और कहीं और घर प्रदान करना शामिल है। इसके अतिरिक्त अगर ज़मीन पर हैंडपंप, बोरवेल या पेड़ हैं तो इनमें से प्रत्येक के लिए अलग-अलग मुआवज़ा दिया जाता है।”