प्रशासनिक अफसरों पर अक्सर राजनीतिक एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगते रहते हैं। कई अफसर कुछ खास मंत्रियों या सरकारों के पक्ष में सक्रियता भी दिखाते हैं। ऐसी ही एक घटना पर मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए शासन को उनको पद से हटाने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि वह इस पद के लायक नहीं हैं।
दरअसल मध्य प्रदेश के पन्ना की गुन्नौर जिला पंचायत चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस प्रत्याशी परमानंद शर्मा को 13 वोट और भाजपा उम्मीदवार रामशिरोमणि मिश्रा को 12 वोट मिले थे। इस पर कांग्रेस नेता परमानंद शर्मा एक वोट से निर्वाचित घोषित कर दिए गए। और उनको उपाध्यक्ष की जीत का सर्टिफिकेट भी दे दिया गया।
बाद में भाजपा नेता रामशिरोमणि मिश्रा ने एक वोट के बैलेट पेपर पर स्याही बीच में लगी होने के चलते कलेक्टर के पास अपील की। इस पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा ने वोट निरस्त कर दोनों को 12-12 वोट घोषित कर अगले दिन पर्ची उठवाकर जीत हार तय करने का फैसला किया। इस प्रक्रिया में राम शिरोमणि मिश्रा को सफलता मिली तो उन्हें उपाध्यक्ष घोषित कर दिया गया।
इस परिणाम को अस्वीकार करते हुए कांग्रेस नेता परमानंद शर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इसको चुनौती दे दी। परमानंद शर्मा ने आरोप लगाया कि जिला कलेक्टर संजय मिश्रा ने उन्हें सुनवाई का मौका दिए बिना चुनाव परिणाम को रद्द करते हुए एक पक्षीय आदेश पारित किया। उनका कहना था, “फैसला लेने से पहले उन्हें हमारी बात भी सुननी चाहिए थी।”
इसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाई और कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “वह एक राजनीतिक एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। वह कलेक्टर बनने के लायक नहीं है, उन्हें कलेक्टर के रूप में पद से हटा दिया जाना चाहिए।” न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने यह भी कहा कि अधिकारी को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की कोई परवाह नहीं है।