महाराष्ट्र की 48 सीटें लोकसभा में किसी का भी गेम बना भी सकती हैं और बिगाड़ भी सकती हैं। 2014 के बाद से इस राज्य ने लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी के प्रति विशेष प्यार दिखाया है। उसने एक तरफ से यहां सूपड़ा साफ भी किया और इसी वजह से उसकी लोकसभा टैली भी बढ़ी है। अब नंबर गेम अपनी जगह, लेकिन महाराष्ट्र की सियासत उससे ज्यादा जटिल है। नेताओं की बयानबाजी इस राज्य की सियासत को जरूर दिलचस्प बनाती है, लेकिन अगर जमीनी हकीकत को समझना है तो यहां की राजनीति की ABCD पता होनी चाहिए।
इस ABCD में महाराष्ट्र में कितनी सीटें से लेकर कितनी पार्टियों तक, कितनी जातियों से लेकर कितने मुद्दे तक, सब शामिल है। यानी कि अगर इन बेसिक प्वाइंट्स का ज्ञान ले लिया गया तो इस लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की राजनीति को आपसे बेहतर कोई दूसरा नहीं समझ पाएगा।
महाराष्ट्र में कितनी सीटें, कितने हिस्से?
महाराष्ट्र से लोकसभा की कुल 48 सीटें निकलती हैं। राजनीति की समझ रखने वाले महाराष्ट्र को हर बार सियासी रूप से पांच हिस्सों में बांटते हैं- कोंकण, पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठावाडा और उत्तर महाराष्ट्र।
कोंकण– महाराष्ट्र का कोंकण इलाका शहरी माना जाता है, यहां पर मुंबई-ठाणे जैसे इलाके आते हैं। यहां पर क्योंकि अरबन वोटर ज्यादा प्रभावी रहता है, ऐसे में बीजेपी की पकड़ भी इसी इलाके में सबसे ज्यादा मजबूत रही है। एक जमाने में जब शिवसेना के साथ बीजेपी का गठबंंधन था, तो इस कोंकण इलाके में एक तरह से क्लीप स्वीप किया जाता था। इस इलाके की खास बात ये है कि यहां पर मुस्लिम मतदाता 18 से 20 फीसदी बैठते हैं। इस समीकरण की वजह से ही कोंकण में कुछ सीटों पर ओवैसी की पार्टी, सपा और एमएनएस का दबदबा भी दिख जाता है। इस क्षेत्र में पढ़े लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है, ऐसे में यहां की सियासत के मुद्दे भी कुछ मॉर्डन दिखाई पड़ते हैं।
पश्चिमी महाराष्ट्र– महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले शरद पवार का ये इलाका गढ़ माना जाता है। कोंकण की तरह इस क्षेत्र में भी शहरी आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। इस इलाके की खासियत ये है कि यहां ज्यादातर जो भी चीनी-दूध की फैक्ट्रियां हैं, उन पर एनसीपी के करीबियों का कंट्रोल है। इसी वजह से यहां एनसीपी का ज्यादा दबदबा देखने को मिलता है। पश्चिमी महाराष्ट्र में मराठा समुदाय सबसे ज्यादा है, इसके बाद धंगर समाज के लोग आते हैं। यहां के जो तीन जिले हैं- सोलापुर, सतारा और सांगली, वहां सूखे की एक बड़ी समस्या रहती है और उसी के इर्द-गिर्द वहां की राजनीति भी चलती है।
विदर्भ– महाराष्ट्र की जब भी बात की जाती है, वहां पर किसानों की आत्महत्या का मुद्दा हर बार उठाया जाता है। ये मुद्दा इसी विदर्भ क्षेत्र की वजह से सुर्खियों में रहता है क्योंकि यहां पर सबसे ज्यादा किसानों द्वारा आत्महत्या की जाती है। इस इलाके को महाराष्ट्र का सबसे कम विकसित क्षेत्र भी कहा जा सकता है राज्य की सबसे अधिक गरीबी भी यहां देखने को मिलती है। एक जमाने में विदर्भ कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है, पांच दशक तक जो उसका दबदबा रहा, उसमें इस विदर्भ की बड़ी भूमिका थी। लेकिन 2014 के बाद से बीजेपी की यहां जबरदस्त सेंधमारी हुई है और काफी हद तक ये इलाका भगवा हो चुका है। अभी भी बिजली और बेरोजगारी विदर्भ के सबसे बड़े मुद्दे बने हुए हैं।
मराठावाडा– आठ जिलों वाला मराठावाडा भी महाराष्ट्र की राजनीति में अहम योगदान रखता है। एक समय पश्चिमी महाराष्ट्र की तरह मराठावाडा में भी पवार की पार्टी का पूरा दबदबा था। लेकिन समय के साथ यहां पर बीजेपी ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई है। मराठावाडा में मराठा, मुस्लिम, ओबीसी और धंगर समुदाय की सबसे सक्रिय भूमिका रहती है। ये वर्ग ही इस क्षेत्र में हार-जीत तय करने का काम करते हैं। विदर्भ की तरह यहां भी सूखा एक बड़ी समस्या है और किसानों की आत्महत्याओं के मामले में भी यहां के आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले रहते हैं।
उत्तर महाराष्ट्र– प्याज और संतरे की खेती करने वाला ये इलाका किसानों के इर्द-गिर्द अपनी राजनीति रखता है। मराठा, आदिवासी और पाटिल समाज इस इलाके में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। छगन भुजबल, एकनाथ खडसे जैसे कई कद्दावर नेता यहां की राजनीति को डॉमिनेट करते हैं।
महाराष्ट्र की प्रमुख जातियां-धर्म
महाराष्ट्र में भी दूसरे राज्यों की तरह जातियों का अहम रोल है। यहां भी विकास के साथ-साथ जातियों का ध्यान रखना जरूरी रहता है। हर पार्टी के अपने दांव-पेंच हैं, लेकिन जातियों का वोट हासिस करने की कवायद दिख जाती है। इसी बात से समझा जा सकता है कि महाराष्ट्र की सियासत में जातियों का क्या योगदान है।
मुस्लिम– महाराष्ट्र में मुस्लिम सियासत काफी अहम मानी जाती है। राज्य में इनकी आबादी 11.24 करोड़ है, यानी कि 11.54 प्रतिशत के करीब बैठते हैं। उत्तरी कोंकण, खानदेश, मराठवाड़ा और पश्चिमी विदर्भ कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर मुस्लिम वोट ही हार जीत में निर्णायक भूमिका निभाता है। मुंबई की कुछ सीटों पर भी मुस्लिम वोट एक्स फैक्टर साबित होता है। कांग्रेस और एनसीपी के बीच में ही मुस्लिम वोट बंटता आ रहा है।
मराठा- मराठा राजनीति तो महाराष्ट्र के डीएनए में मानी जाती है। सबसे ज्यादा सियासत भी इसी मराठा समुदाय के इर्द-गिर्द होती दिख जाती है। राज्य में कुल 30 से 33 फीसदी के करीब मराठा समुदाय के लोग हैं। लोकसभा की जो कुल 48 सीटें हैं, वहां भी 20 से 22 सीटों पर ये मराठा वोट ही निर्णायक साबित होता है। यहां भी मराठावाडा वाला क्षेत्र पूरी तरह मराठाओं की सियासत पर निर्भर दिखता है। राज्य के जो कुल 20 सीएम रहे हैं, वहां भी 12 मराठा समुदाय से आते हैं।
दलित– महाराष्ट्र में 10.5 फीसदी दलित आबादी है, वहां भी विदर्भ में सबसे ज्यादा 23 प्रतिशत इनकी संख्या बैठती है। लोकसभा की कुल 15 ऐसी सीटें हैं जहां पर दलित वोट्स ही मायने रखते हैं। राज्य की सियासत दलितों की आवाज उठाने वाली सबसे पहली पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) रही है। इसी पार्टी के 50 से ज्यादा टुकड़े हो चुके हैं और सभी अलग-अलग दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रकाश आंबेडकर से लेकर रामदास अठावले कुछ चर्चित नाम हैं।
महाराष्ट्र के प्रमुख चेहरे
महाराष्ट्र की राजनीति सिर्फ जातियों के दम पर जिंदा नहीं है, इस राज्य ने कई ऐसे नेता दिए हैं जिन्होंने ना सिर्फ महाराष्ट्र की राजनीति पर अपना असर डाला, बल्कि समय-समय पर देश की सियासत पर भी अपना प्रभाव छोड़ा। आज भी राज्य के कई ऐसे नेता मौजूद हैं जिनके चेहरे के दम पर वोट डाले जाते हैं।
शरद पवार– चार बार राज्य के मुख्यमंत्री बन चुके शरद पवार पिछले 60 सालों से महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय चल रहे हैं। सबसे युवा सीएम का तमगा भी उन्ही के पास है जब 1978 में उनकी सबसे पहले ताजपोशी की गई थी। इसके बाद सरकार किसी की भी रहे, पवार फैक्टर हर बार निर्णयाक साबित हुआ है। आज भी यहां की सियासत में अगर कुछ बड़ा होता है तो उसमें पवार की भूमिका मायने रखती है।
देवेंद्र फडणवीस– बीजेपी का महाराष्ट्र में वर्तमान में सबसे बड़ा चेहरा माने वाले फडणवीस राज्य में पहली बार 2014 में मुख्यमंत्री बनाए गए थे। संघ के करीबी माने जाने वाले फडणवीस को उनकी सियासी सूझबूझ के लिए जाना जाता है। 90 के दशक में उन्होंने राजनीति में एंट्री की थी और फिर 1997 में नागपुर के मेयर भी बने थे। 2013 में वे बीजेपी महाराष्ट्र के अध्यक्ष बने और फिर अगले साल ही सीएम कुर्सी पर विराजमान हो गए। वर्तमान में वे डिप्टी सीएम के पद पर आसीन हैं।
उद्धव ठाकरे- महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस समय सियासत में मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन उनके बिना वर्तमान में राज्य की राजनीति के बारे में सोचना भी गलत है। उन्हें एक तरफ फिर अपने गुट को जमीन पर मजबूत करना है, वहीं दूसरी तरफ हिंदुत्व पर भी नए सिरे से फिर राजनीति करनी है। साल 2022 में राजनीति में कदम रखने वाले उद्धव एक साल के अंदर में ही शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए गए थे। लेकिन वर्तमान में वे किसी भी पार्टी के साथ नहीं हैं, उनकी खुद की शिवसेना अब एकनाथ शिंदे की हो चुकी है।
प्रकाश आंबेडकर- किसानों, दलितों और ओबीसी की राजनीति करने वाले प्रकाश आंबेडकर भी महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा का विषय बने रहते हैं। वे भारीपा बहुजन महासंघ (बीबीएम) का नेतृत्व करते हैं और कई आंदोलनों में उन्होंने हिस्सा लेने का काम किया है। वर्तमान में प्रकाश का विपक्षी दलों के साथ गठबंधन चल रहा है, वे इंडिया अलायंस का भी हिस्सा हैं।