भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस बात को ले कर सकते में है कि आखिर क्यों उत्तर प्रदेश के दलितों ने लोकसभा चुनाव में पार्टी से दूरी बना ली? भाजपा से दूरी बनाने का वाजिब कारण अब तक पार्टी आलाकमान ढ़ूढ़ नहीं पाया है। पार्टी इस सच को स्वीकार करती है कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में उसे वोट नहीं दिया। लेकिन वह यह नहीं पचा पा रही है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही कि प्रदेश का दलित सपा में चले गए। कांग्रेस के साथ होने की वजह से सपा को इसका लाभ मिला, यह बात भी भाजपा के गले के नीचे नहीं उतर रही है।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दरम्यान पार्टी को मिली शिकस्त के कारण तलाशने में जुटा भाजपा आलाकमान चुनाव परिणाम आने के एक महीने बीत जाने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है कि दलितों का भाजपा के प्रति मोह भंग होने की वजह से पार्टी को 27 सीटों के भारी नुुकसान से बावस्ता होना पड़ा। लेकिन दलितों ने भाजपा का साथ आखिर छोड़ा क्यों? इस बात का उत्तर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को खोजे नहीं मिल रहा है। सिर्फ दस साल के भीतर उत्तर प्रदेश के दलित मतदाता की नाराजगी भाजपा से किस कदर हुई, इसकी बानगी देखिए। प्रदेश के दलितों को यह निर्णय लेना पड़ा कि वे समाजवादी पार्टी को वोट देंगे। लेकिन उन्हें किसी भी कीमत पर भारतीय जनता पार्टी स्वीकार नहीं है। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी तक का साथ छोड़ दिया। दलितों की भाजपा के प्रति इस गुस्से की वजह क्या है? इसका उत्तर भाजपा आलाकमान को नहीं मिल पा रहा है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, दरअस्ल कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन का सीधा लाभ समाजवादी पार्टी को दलितों के मिले वोट की शक्ल में हुआ। दलितों ने सपा को वोट इसलिए दिया क्योंकि वह इंडिया गठबंधन को जिताना चाहते थे। इसलिए जहां कांग्रेस के प्रत्याशी नहीं थे, वहां उन्होंने दूसरे दलों को अपना वोट देने की बजाय समाजवादी पार्टी को दिया। इसकी वजह से समाजवादी पार्टी प्रदेश की 37 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर पाने में कामयाब रही। हालांकि भाजपा दलितों के वोट ना मिलने की वजह यह बताती है कि संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के संदेश की वजह से दलितों ने भाजपा से दूरी बनाई। लेकिन यदि ऐसा होता तो इसका असर दूसरे प्रदेशों में भी दिखना चाहिए था।
अभी तक भाजपा आलाकमान इस सच को गले के नीचे नहीं उतार पा रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी आरक्षित 17 सीटें भाजपा ने जीतीं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 आरक्षित सीटों की जगह भाजपा को 14 सीटों पर जीत हासिल हुई। उसे इन 17 आरक्षित सीटों में से पांच साल के भीतर तीन सीटों का नुकसान हुआ। यही नुकसान 2024के लोकसभा चुनाव में बढ़ गया और भाजपा को इन 17 आरक्षित सीटों में से सिर्फ 8 पर जीत हासिल हुई। यानी दस साल में उसे नौ सीटों का सीधा नुकसान झोलना पड़ा। यह इस बात का संकेत भी है कि 2019 से ही दलितों का मोह भाजपा से भंग होना शुरू हो चुका था। इस बाबत समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं, भाजपा का झूठ जनता के बीच बहुत दिनों तक ठहरा नहीं।