Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव 2019 में मायावती भाजपा के खिलाफ लड़ रही मुख्य पार्टियों के साथ गठबंधन में भले हों लेकिन वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रही हैं।सपा और रालोद के साथ गठबंधन के बाद भी चुनाव नहीं लड़ना इस ओर की इशारा करतेा है कि वह चुनाव में अपना पूरा ध्यान रणनीति और राजनीतिक सूझबूझ के पर ध्यान लगाने की फिराक में हैं। मायावती चार बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं। 1989 में बिजनौर से और उसके बाद 1998, 1999, और 2004 में अकबरपुर से। वह तीन बार राज्यसभा में भी जा चुकी हैं। 1994, 2004 और 2012 में राज्यसभा जाने के बाद बिना कार्यकाल पूरा हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। और ऐसा वह अपने तीनो कार्यकाल के दौरान करती आई हैं। 1985 में मायावती पहली बार बिजनौर में मीरा कुमार और राम विलास पासवान के खिलाफ उपचुनाव लड़ा था जहां उन्हें मीरा कुमार ने हराया था। लेकिन 4 साल बाद ही उन्होंने उस सीट से जीत हासिल की और लोकसभा पहुंची।
1991 में राम मंदिर के मसले के उभार के समय मायावती चुनाव हार गईं और बीजेपी को सीट मिली। अगर मायावती ने आगामी लोकसभा चुनाव लड़ती तो बीजेपी उन्हें उनकी सीट तक ही समेटने की कोशिश करती।ऐसे में रालोद और सपा के साथ मिलकर चुनवी तैयारियों पर ध्यान नहीं जाता। यह उनके लिए अनुकूल साबित नहीं होता इसलिए मायावती ने ऐसा किया। चुनाव लड़ना मायावती के लिए हितकर नहीं था ऐसे में तब जब 2014 में उनको वॉशआउट करने वालो के खिलाफ उनकी पार्टी चुनाव लड़ रही है। बसपा 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और मायावती इन सीटों पर ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करेंगी। ज्यादा सीट जीतने से बसपा किंगमेकर के रुप में भी सामने आ सकती है। वहीं , अगर ऐसा नहीं होता है तो वह और उनकी पार्टी दोनों की लुटिया डूब जाएगी।
2012 में हार के के बाद से बसपा के सामने अपनी कटती जमीन बचाने का चुनौती भी है।2014 में भी पार्टी को एक भी सीटें नहीं मिली जबकि विधानसभा सीट पर बसपा को 403 में से सिर्फ 19 सीटें ही मिली थी। यह चुनाव करो या मरो का है। ऐसे में वह लोकसभा चुनाव में गोरखपुर, फूलपूर और कैराना उपचुनाव के परिणाम दोहराना चाहेगी। इसके अलावा मध्य प्रदेश , उत्तराखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा ,आंध्र प्रदेश और तेलंगाना और में भी मायावती ने गठबंधन किया है ऐसे में उन्हें वहां की रणनीति भी संभालनी होगी।
वहीं नाम ना बताने की शर्त पर एक बीएसपी लीडर का कहना है कि मायावती की तैयारी 2022 विधासभा चुनाव को लेकर है। अगर वह आने वाले चुनावों में किसी आरक्षित सीट से लड़तीं, तो वह निश्चित रूप से सपा, रालोद और कांग्रेस के समर्थन से जीत हासिल कर लेती, लेकिन मायावती 2022 में किसी का दबाव नहीं चाहती हैं। 2022 में जब वह मुख्यमंत्री पद के लिए अलग-अलग पार्टियों के साथ बैठेंगी तो उनपर किसी को कोई दायित्व नहीं होना चाहिए।अखिलेश यादव ने भी कन्नौज की सीट पत्नी डिंपल यादव को दे दी। अगर अखिलेश चुनाव छोड़ देते हैं और मायावती लड़ती तो जीत भी जाती लेकिन 2022 में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए महागठबंधन के सामने अखिलेश यादव बड़े दावेदार हनते ऐसे में मायावती ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। दोनों नेताओं की पहली नजर राज्य की ही कुर्सी पर है।
वहीं बीजेपी के एक नेता का कहना है कि मायावती का चुनाव लड़ने से इंकार कर देना इस बात का सबूत है कि वह प्रधानमंत्री की रेस में नहीं है जिसका मतलब है कि भाजपा के सामने सिर्फ कांग्रेस खड़ी है। और मायावती लगातार कांग्रेस पर हमला करती आ रही हैं। ऐसे में मोदी के अलावा वोटर के पास कोई और विकल्प नजर नहीं आता है।