Lok Sabha Election 2019: स्वाद, स्वच्छता और सियासत, इन दिनों यही इंदौर का दूसरी पहचान है। ‘स्वाद की नगरी’ के नाम मशहूर इंदौर में एक अरसे से स्वच्छता के प्रति भी अलग ही जुनून देखने को मिला है। मिनी मुंबई, मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी जैसे उपनामों से मशहूर इंदौर में इस बार सियासत का तड़का भी थोड़ा अलग है। तीन दशकों से यहां के लोगों ने न पार्टी बदली न सांसद। 30 साल बाद इंदौर वालों को नया सांसद मिलने जा रहा है। 1989 के बाद से लगातार आठ बार यहां ताई के नाम से मशहूर सुमित्रा महाजन चुनाव जीती हैं। मौजूदा लोकसभा में तो वे स्पीकर भी हैं। इस बार ताई मैदान में नहीं हैं बीजेपी ने उनकी जगह इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) के अध्यक्ष रहे शंकर लालवानी को मैदान में उतारा है, कांग्रेस पहले ही अपने पुराने दिग्गज पंकज संघवी के नाम का ऐलान कर चुकी है। ताई मैदान में नहीं हैं ऐसे में इस बार जीत चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस की बदलाव तो तय है। बहरहाल इंदौर की जनता से जानते हैं ‘स्वाद की नगरी’ में इस बार क्या है सियासत की रेसिपी…
ताई के जाने का कितना असरः शहर में टैक्सी चलाने वाले मोहित कर्णिक का मानना है, ‘सुमित्रा महाजन से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव है। वे लंबे समय से लोगों के साथ हर मोर्चे पर खड़ी नजर आई हैं। उनका क्षेत्र में खासा वर्चस्व है। ऐसे में उनके चुनाव नहीं लड़ने से बीजेपी को थोड़ा नुकसान तो उठाना पड़ेगा। हालांकि बीजेपी अभी भी यहां मजबूत है।’ कांग्रेस समर्थक राकेश चतुर्वेदी भी ताई के जाने को बीजेपी के लिए नुकसान बता रहे हैं। उनका मानना है कि कई कार्यकर्ता ऐसे हैं जो सिर्फ ताई की वजह से बीजेपी से जुड़े थे। राकेश कहते हैं, ‘भले ही प्रत्यक्ष तौर पर ताई ने खुद नाम वापस लिया है लेकिन सब जानते हैं कि उनका टिकट काटा गया है। लगातार आठ बार जीतने वाले सांसद और मौजूदा लोकसभा स्पीकर को हटाना बताता है कि बीजेपी को अपने पुराने गढ़ में भी जीत का भरोसा नहीं है।’ हालांकि अधिकांश लोग चुनाव को सीधे मोदी बनाम राहुल देख रहे हैं, उन्हें स्थानीय प्रत्याशी से बहुत ज्यादा सरोकार नहीं है।
स्वच्छता अभियान सबसे पसंदीदा कामः स्वच्छता सर्वे में टॉप करने की हैट्रिक लगा चुके इंदौर के लोग सबसे पहले स्वच्छ शहर के नाम पर गर्व का अनुभव करते हैं। लोग मोदी सरकार की इस मुहिम से खुश हैं और कहते हैं कि इस मुहिम ने स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता तो बढ़ाई है। साथ ही इससे शहर को एक और नहीं पहचान मिली है। नगर निगम, विधानसभा और लोकसभा तक की सीटों में यहां बीजेपी का ही दबदबा है। ऐसे में स्वच्छता अभियान का श्रेय पूरी तरह से बीजेपी और पीएम मोदी को देते हुए यहां के लोगों ने मोदी सरकार को इस मोर्चे पर सफल बताया है।
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आधी रात को लगा सियासी तड़काः रात के करीब 1 बजे जब हम राजवाड़ा के नजदीक सर्राफा मार्केट पहुंचे तो यहां अलग ही माहौल देखने को मिला। लजीज व्यंजनों की खुशबू के साथ-साथ देर रात के बावजूद यहां सियासत पर भी चटखारे लिए जा रहे हैं। युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक कई लोगों की जुबान पर बीजेपी बनाम कांग्रेस की बहस थी। यहीं पर फायर पान के लिए मशहूर बाबाश्री पान भंडार के संचालक नीरज सोलंकी से भी हमने इंदौर का सियासी हाल जानने की कोशिश की। नीरज कहते हैं कि माहौल एक बार बीजेपी के ही पक्ष में है।’ सुमित्रा महाजन के चुनाव नहीं लड़ने पर वे कहते हैं कि प्रत्याशी बदलने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा वो मोदी सरकार के काम पर वोट देंगे। यानी सीधे-सीधे वे प्रधानमंत्री चयन की लड़ाई मान रहे हैं। नीरज की दुकान के आसपास राजनीति में दिलचस्पी लेने वालों का मजमा लगा था। लोग अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति तक के मसलों पर राय रख रहे हैं।
‘लोग मोदी को देखकर वोट देंगे’: मोहित बताते हैं कि शिवराज के जाने से जो नुकसान हुआ है वो हर कोई मुंह पर नहीं बोल रहा लेकिन दिल से सब मानते हैं। मोहित हंसते हुए कहते हैं, ‘लोग ठोकर खाकर ठाकुर बनते हैं। लोग सोचते हैं कि कोई नया आकर उनकी जिंदगी बेहतर करेगा। लेकिन इस बार यह गलत साबित हुआ है। इस बार नहीं लगता कि जनता फिर से ये गलती करेगी। शिवराज जी की तरफ से देखेंगे तो बीजेपी को फायदा होगा, ताई का टिकट कटने से लोगों के अंदर गुस्सा है इससे थोड़ा नुकसान होगा। लेकिन मिलाजुला कर स्थिति बीजेपी के पक्ष में है। लोग मोदी जी को देखकर वोट देंगे।’
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मोदी से खुश लेकिन रोजगार बड़ा सवालः आईटी सेक्टर में काम करने वाले अंशुल उदिया बताते हैं, ‘जीएसटी और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने से काले कारोबार पर काफी हद तक लगाम लगी है, इससे इंदौर के बाजार को आगे जाकर प्रोग्रेस करने में मदद मिलेगी। नोटबंदी का बड़ा असर ज्यादा पैसे वालों पर पड़ा है, आम आदमी को इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, शुरुआत में थोड़ी परेशानी जरूर हुई थी।’ हालांकि रोजगार के मोर्चे पर वे यह बात मानते हैं कि मोदी सरकार ने अपेक्षाओं के मुताबिक काम नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने दावे किए, कोशिशों का जिक्र हुआ लेकिन जमीन पर असर नहीं देखने को मिला।’
कैंडिडेट की जंग में ऐसा है दोनों का हालः बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस बार कैंडिडेट को रिपीट नहीं किया है। कांग्रेस ने अमीर कारोबारी पंकज संघवी को मैदान में उतारा है तो बीजेपी ने आईडीए के पूर्व प्रमुख शंकर लालवानी को मौका दिया है।
शंकर लालवानी (बीजेपी): इंदौर के लिए लालवानी नया चेहरा नहीं हैं। 1993 में इंदौर-4 का बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद 1996 में वे अपने ही भाई को हराकर बीजेपी के टिकट पर पार्षद बने। डॉ उमाशशि शर्मा के महापौर कार्यकाल में वे सभापति भी रहे। तीन बार पार्षद रहे लालवानी को बाद में बीजेपी ने नगर निगम अध्यक्ष भी बनाया। इसी के साथ-साथ उन्हें इंदौर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष भी बनाया गया। लालवानी से पहले इंदौर से कैलाश विजयवर्गीय को दावेदार माना जा रहा था लेकिन उन्होंने पहले ही खुद को रेस से बाहर कर लिया।
पंकज संघवी (कांग्रेस): लालवानी के मुकाबले में कांग्रेस की तरफ से पंकज संघवी मैदान में हैं। हालांकि संघवी ने अब तक कोई भी बड़ा चुनाव नहीं जीता है। 1983 में वे पहली बार पार्षद का चुनाव जीते थे। 1998 में कांग्रेस ने उन्हें सुमित्रा महाजन के खिलाफ लोकसभा चुनाव का टिकट दिया था, लेकिन वे 49 हजार 852 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए। 2009 में वे महापौर का चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी के कृष्णमुरारी मोघे से करीब 4 हजार वोटों के अंतर से हार गए। 2013 में उन्हें कांग्रेस ने इंदौर-5 से विधानसभा चुनाव में उतारा लेकिन इस चुनाव में भी वे 12,500 वोटों के अंतर से हार गए।
विधानसभा में लगी थी गढ़ में सेंधः इंदौर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से 5 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 3 जबकि बीजेपी ने 5 सीटें जीती थीं। उल्लेखनीय है कि 2013 में हुए विधानसभा चुनाव इनमें से सिर्फ एक सीट कांग्रेस को मिली थी। जीती गई अधिकांश सीटों पर भी जीत का अंतर पहले के मुकाबले कम देखा गया।
– देपालपुर (2013 में बीजेपी, 2018 में कांग्रेस)
– इंदौर 1 (2013 में बीजेपी, 2018 में कांग्रेस)
– इंदौर 2 (2013 में बीजेपी, 2018 में बीजेपी)
– इंदौर 3 (2013 में बीजेपी, 2018 में बीजेपी)
– इंदौर 4 (2013 में बीजेपी, 2018 में बीजेपी)
– इंदौर 5 (2013 में बीजेपी, 2018 में बीजेपी)
– राऊ (2013 में कांग्रेस, 2018 में कांग्रेस)
– सांवेर (2013 में बीजेपी, 2018 में कांग्रेस)