Bihar Assembly Elections में वामपंथी दलों का बीते कुछ समय में बुरा हाल ही रहा है। तीन चुनाव की बात करें, तो भाकपा, माकपा और भाकपा माले (तीन पार्टियों) कुल 13 सीटें ही हासिल कर पाईं। तीनों मिलकर भी बीते तीन विस चुनाव में अपने विधायकों का आंकड़ा दहाई अंक तक नहीं पहुंचा सके।
साल 2005 में भाकपा माले लड़ी 85 सीट पर, मगर जीती सिर्फ 5। सीपीएम लड़ी 10 सीट पर, लेकिन हासिल हुई महज एक सीट। सीपीआई लड़ी थी 35 पर, पर उसे केवल तीन सीटों पर ही जीत नसीब हुई।
2010 की बात करें, तो माले 104 सीट पर लड़ी थी, लेकिन इस वह खाता खोलने में भी कामयाब न हो सकी। सीपीएम का भी ऐसा ही हाल रहा, जिसने ये चुनाव 30 सीट पर लड़ा था। वहीं, 56 सीट पर उम्मीदवार खड़े करने वाली सीपीआई के हाथ सिर्फ एक सीट आई।
वर्ष 2015 में माले 98 पर लड़ी, पर मिली सिर्फ तीन सीटें। सीपीएम ने 43 सीट पर चुनावी ताल ठोंकी, पर खाता भी न खोल पाई और 98 सीटों पर दावेदार पेश करने वाली सीपीआई का स्कोर भी इस बार शून्य रहा। यानी तीन चुनाव में तीनों दलों को कुल मिलाकर 13 सीट ही आईं।
हालांकि, पत्रकारों से बातचीत में भाकपा माले पोलित ब्यूरो के मेंबर धीरेंद्र झा ने बताया- गरीबों, मजदूरों, किसानों और युवाओं की हम लगातार आवाज उठाते आए हैं। वो अलग बात है कि हम चुनाव में पीछे रह गए। पर भविष्य में हमारी स्थिति इससे अच्छी होगी।
वहीं, विस चुनाव में RJD के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ वाम दलों के प्रस्तावित गठबंधन से अलग राज्य का प्रमुख वाम दल सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) अब अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि RJD द्वारा करीब आठ सीटों की पेशकश के बाद सीपीआई-एमएल इस फैसले पर अमल करने का मन बना चुका है। पार्टी ने लालू के दल से 53 सीटें मांगी थी।
पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्च ने इस बाबत मीडिया से कहा- हमें कम सीटें दी जा रही हैं। हम इसे कबूल नहीं करेंगे। राजद से हमने इसके प्रस्ताव पर फिर से सोचने के लिए कहा है। हालांकि, हम 53 से अधिक सीटों पर अलग लड़ने के लिए राजी हैं। राजद की तरफ से अगर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया आई, तब हम सोंचेंगे कि हमें क्या करना है।