Kerala High Court: केरल हाई कोर्ट ने मंगलवार (1 नवबंर, 2022) को कहा कि इस्लामिक कानून में मुस्लिम महिलाओं के तलाक मांगने के हक को मंजूरी मिली हुई है। जरूरी नहीं कि तलाक की उनकी इच्छा पति की भी इच्छा से मेल ही खाए। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर पति तलाक के लिए राजी नहीं हो तब भी मुस्लिम महिलाएं तलाक मांग सकती हैं और यह हक उनको इस्लामिक कानून में ही मिला हुआ है।
जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सी एस डायस की पीठ ने एक फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका (Review Petition) को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं पति की सहमति के बिना भी ‘खुला’ प्रथा का इस्तेमाल कर सकती हैं। बता दें कि जब मुस्लिम महिला की ओर से तलाक की प्रक्रिया शुरू की जाती है तो इसे ‘खुला’ कहते हैं।
केरल हाई कोर्ट ने समीक्षा याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा लगता है याचिका पुरुषों के वर्चस्व वाली मानसिकता से दी गई है, जो मुस्लिम महिलाओं को मिले अधिकार पचा नहीं पा रहे हैं। जिस अपील से पुनर्विचार याचिका उठी, वह मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के तहत एक मुस्लिम पत्नी को दी गई तलाक की डिक्री को चुनौती देते हुए दायर की गई थी। समीक्षा याचिका में यह तर्क दिया गया था कि यदि एक मुस्लिम पत्नी अपने पति के साथ अपनी शादी को समाप्त करना चाहती है, तो उसे अपने पति से तलाक की मांग करनी होगी और उसके मना करने पर उसे काजी या अदालत का रुख करना होगा।
हालांकि याचिकाकर्ता ने माना कि एक मुस्लिम महिला को अपनी मर्जी से तलाक मांगने का अधिकार है, लेकिन उसने यह भी तर्क दिया कि उसे ‘खुला’ अपनाने का अधिकार नहीं है। दुनिया में कहीं भी एक मुस्लिम पत्नी को एकतरफा विवाह को समाप्त करने की अनुमति नहीं है।