मनोज कुमार मिश्र
देश के जिन राज्यों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का सबसे ज्यादा काम है, उसमें केरल प्रमुख है। यह भी अजीब है कि जिन राज्यों में आरएसएस समर्थित भाजपा सबसे कमजोर है, उसमें केरल भी शामिल है। यह तथ्य ज्यादा चौंकाने वाले हैं कि पहले संघ से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं की हिंसक लड़ाई हिंदुओं का धर्मांतरण के आरोप के के कारण चर्च के संगठनों से होती रही है लेकिन सालों से यह लड़ाई वाम संगठनों से होने लगी है। इतना ही नहीं जब मतदान का समय आता है तो सालों से ज्यादातर हिंदू वोट वाम दलों को ही मिलते हैं।
केरल में दल दो गुटों में बंटे हुए हैं और दोनों का बारी-बारी से शासन होता रहा है। माकपा की अगुआई वाले एलडीएफ और कांग्रेस की अगुआई वाले यूडीएफ को ही केरल में सत्ता का दावेदार माना जाता है। भाजपा सालों से केरल के चुनाव में अपनी जगह बनाने के लिए प्रयास कर रहा है। इस बार भाजपा ने ‘मेट्रो मैन’ के नाम से मशहूर बेहद कर्मठ और ईमानदार 88 साल के ई श्रीधरन को चुनाव की कमान सौंपी है। वे पलक्कड़ सीट से विधानसभा चुनाव भी लड़ रहे हैं। उनके अलावा भाजपा के 115 उम्मीदवारों की सूची में राज्यसभा के दो सदस्य-पूर्व केन्द्रीय मंत्री के जे अलफोंस और सुरेश गोपी के नाम शामिल हैं। भाजपा ने मेघालय के पूर्व राज्यपाल रहे के राजशेखरन को भी विधानसभा का उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने 25 सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी है।
मुस्लिम लीग पहले से उदारवादी मुसलमानों की पार्टी मानी जाती थी, इसलिए दोनों ही फ्रंट उसे साथ लाने में लगे रहते थे। सालों माना जाता था कि ईसाई मतदाताओं यानी चर्च का कांग्रेस को समर्थन मिलता है। धन-बल से मजबूत केरल के चर्चों के बूते कांग्रेस सत्ता में आती रही है। ईसाई समाज को केरल की सरकार के साथ के साथ केन्द्र की कांग्रेस सरकार का संरक्षण मिलता रहता था। तब आबादी में अनुपात ईसाई समाज और मुसलमान समाज का लगभग बराबर रहता था। मुसलिम समाज के लोग आम तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर होते थे। अब समय बदल गया। दुनिया के तमाम मुसलिम देशों में बड़ी तादद में केरल के मुसलिम काम करते हैं। केरल में मुसलिम लीग के उदारवादी चेहरे से उलट पीएफआई (पापुलर फ्रंट आफ इंडिया) के लोगों का कट्टरपंथी चेहरा सामने आने लगा। ईसाई भी उनसे आतंकित होने लगे।
केरल की आबादी में करीब 56 फीसद हिंदू, 26 फीसद मुसलमान और 18 फीसद ईसाई हैं। हिंदुओं में बहुमत कमजोर कही जाने वाली जातियों का है, जिनके बड़े वर्ग में माता अमृतानंदमयी (अम्मा) का बड़ा प्रभाव है। वे किसी भी राजनीतिक दल का खुलेआम समर्थन नहीं करती हैं लेकिन उनके कार्यक्रमों में लगातार भाजपा और संघ के शीर्ष नेता शामिल होते रहे हैं। इसका भी लाभ उन्हें चुनाव में मिल सकता है।
केरल विधानसभा में भाजपा का एक विधायक है इसलिए यह कहना कि भाजपा वहां सरकार बनाने वाली है, अतिशयोक्ति होगी लेकिन श्रीधरन का पिछला रिकार्ड, केरल के हालात, पीएफआइ जैसे अतिवादी संगठनों के कारनामें और ईसाई समाज में फैला असुरक्षा का वातावरण केरल के चुनाव को दिलचस्प बनाए हुए हैं। पूरी तरह से साक्षर और विकसित केरल राज्य में विभिन्न समाज की सुरक्षा, संरक्षण के साथ-साथ विकास सबसे प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
सबरीमाला मुद्दे पर चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री पीनराई विजयन अपने बयान के लिए माफी मांगी लेकिन वह मुद्दा केरल की हिंदू महिलाओं के लिए महत्त्वपूर्ण बन गया है। कांग्रेस में रमेश चैनितल्ला और ओमन चांडी की दावेदारी ज्यादा मानी जा रही है। भाजपा ने भी ई श्रीधरन को भी अभी तक मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।