हाल ही में बेंगलुरु के बेगुर झील के अंदर कृत्रिम रूप से निर्मित शिव प्रतिमा का कुछ लोगों ने बिना अनुमति के अनावरण कर दिया। इसको लेकर वहां हंगामा शुरू हो गया। यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां भी इसे गंभीर लापरवाही मानी गई। हाईकोर्ट ने कहा कि जिस प्रतिमा के अनावरण पर रोक लगाई गई थी, उसका बिना सूचना के कैसे अनावरण कर लिया गया।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को आयुक्त को निर्देश दिया कि वे व्यक्तिगत रूप से मामले की जांच करें, जिसके निर्माण पर अदालत ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि, “खुले तौर पर अदालत के आदेशों की अवहेलना की जा रही है, यह सरासर अराजकता है, राज्य सरकार इसमें पक्षकार नहीं हो सकती है और इसमें तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।” मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की खंडपीठ ने कहा कि, “बेगुर झील द्वीप पर बीबीएमपी द्वारा स्थापित शिव मूर्ति के अनावरण की घटना अदालत के संज्ञान में आई है।”
कोर्ट ने कहा, “हम एजीए को निर्देश देते हैं कि मेमो की एक प्रति पुलिस आयुक्त बेंगलुरु को भेजें। वे व्यक्तिगत रूप से मामले को देखेंगे और कानून के अनुसार कार्रवाई शुरू करेंगे।” बीबीएमपी की ओर से पेश अधिवक्ता एसएच प्रशांत ने अदालत को बताया कि बुधवार रात 11 बजकर 45 मिनट पर प्रतिमा को फिर से ढक दिया गया है। राज्य सरकार के वकील ने अदालत को सूचित किया कि व्यक्तियों द्वारा की गई अपील के वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिए गए हैं। राज्य ने कहा कि वे इसे देखेंगे और उचित कार्रवाई करेंगे, लेकिन किसी को आपराधिक कानून को लागू करना होगा।
कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि खुले तौर पर आदेशों की अवहेलना की जाती है। इसलिए राज्य को खुद ही कार्रवाई करनी चाहिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि, “बीबीएमपी का कहना है कि फिर से द्वीप पर झंडे हटाकर यथास्थिति बहाल कर दी गई है। यदि कोई इस अदालत द्वारा पारित आदेशों से व्यथित है तो उसके पास वैधानिक उपचार उपलब्ध हैं। जो अंतरिम आदेशों से पीड़ित हैं अदालत में वह चुनौती दे सकता है या अदालत में हस्तक्षेप के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है ताकि आदेशों को संशोधित करने की मांग की जा सके।”
पीठ ने कहा कि, “इस अदालत द्वारा समय-समय पर पारित आदेशों को देखने पर यह स्पष्ट हो जाएगा कि सभी आदेश यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि शहर के भीतर मौजूदा झीलों की रक्षा की जाए और जो झीलें समय बीतने के साथ गायब हो गई हैं उन्हें बहाल किया जाए और उनका कायाकल्प किया जाए। इस मुद्दे के बारे में बेगुर झील मूर्तियों को स्थापित करने के लिए कृत्रिम द्वीप बनाने की बीबीएमपी की कार्रवाई के बारे में है। इसमें शामिल मुद्दा एक कानूनी मुद्दा है, क्या झील के बीच में एक द्वीप का निर्माण किया जा सकता है। याचिकाओं के इस समूह में कोई धार्मिक मुद्दा शामिल नहीं है।”

