Kanwar Yatra Name Plate Controversy: कांवड़ यात्रा के दौरान उसके रूट पर दुकानदारों को नाम डिस्प्ले करने के यूपी सरकार के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाई गई रोक जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान नाम डिस्प्ले करने के निर्देश पर लगाई गई रोक को जारी रखा। कोर्ट ने कहा कि नाम डिस्पले करने को लेकर किसी को भी बाध्य नहीं किया जा सकता है।

मुजफ्फरनगर पुलिस ने सबसे पहले निर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लगाई गई रोक का भी कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। कुछ स्ट्रीट वेंडर्स के सिवा लगभग सभी खाने-पीने की दुकानों पर नए नेमप्लेट लगे हुए हैं। इन पर जानकारी लिखी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि पुलिस यह तय करने के लिए वापस आई कि नेमप्लेट लगी हुई हैं। कम से कम कुछ ढाबों ने भ्रम की स्थिति के बजाय सावधानी बरतते हुए बंद कर दिए हैं।

वसीम अहमद के ढाबे पर पिछले साल की गई तोड़फोड़

50 साल के वसीम अहमद ढाबा मालिकों की आशंकाओं से बिल्कुल राजी नजर आते हैं। पिछले साल तक वह हरिद्वार के बाईपास रोड पर चहल-पहल वाला गणपति टूरिस्ट ढाबा चलाते थे। उनके को-ऑनर भी हिंदू थे। इसी वजह से उसका नाम हिंदू रखा गया था। वह बताते हैं कि उनके सभी कर्मचारी भी हिंदू ही थे। 9 सालों तक किसी भी परेशानी का सामना नहीं किया था। लेकिन साल 2023 में राइट विंग के कार्यकर्ताओं के एक ग्रुप ने ढाबे में तोड़फोड़ की। उन पर आरोप लगाया कि वह कांवड़ियों को अशुद्ध खाना परोस रहे हैं।

अहमद ने अपना ढाबा फिर कभी नहीं खोला है। उनका मानना है कि मालिकों को नाम डिस्पले करने का आदेश उसी घटना से जुड़ा हुआ है। अपने ढाबे के बाहर ग्राहकों की गाड़ियों की लाइन दिखाने के लिए अपने फोन पर वीडियो निकालते हुए अहमद ने कहा कि यह सब मेरे साथ शुरू हुआ। अगर प्रशासन ने उस समय कार्रवाई की होती और कानूनी बातों का पक्ष लिया होता, तो हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता। आज यह एक फैशन बन गया है कि अगर आपको मशहूर होना है, तो मुसलमान को निशाना बनाओ।

सरकार के आदेश ने डाला असर

मुजफ्फरनगर के चरथावल के 30 साल के मांगा कुमार मुजफ्फरनगर बाईपास और बझेड़ी रोड के चौराहे पर फलों का एक छोटा सा ठेला लगाते हैं। उन्होंने कहा कि जब ऐसा कोई सख्त आदेश आता है, तो यह सभी तरह के लोगों पर असर डालता है। मैं दलित हूं। अगर यह जारी रहा, तो कुछ लोग मुझसे केले और अमरूद खरीदना बंद कर देंगे। इस सबका कोई समापन नहीं है। कुमार ने कहा कि उन्होंने सिक्योरिटी को चुना है। मैंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में सुना है, लेकिन पुलिस के बारे में आप कभी नहीं जान सकते। वे कभी भी लाठी लेकर आ सकते हैं।

ग्राहकों में भी बना हुआ है डर

बझेड़ी गांव की तरफ जाने वाली सड़क पर शिकंजी बेचने वाले प्रदीप कुमार कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से पुलिस का आना-जाना कम हो गया है, लेकिन डर बना हुआ है। ग्राहक भी किसी अनहोनी के डर से दूर रहते हैं। इसलिए कई लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दी हैं। क्या कोई उनके बारे में बात कर रहा है? करीब 10 किलोमीटर दूर मीनाक्षी चौक पर ऐसे भी कई सारे ढाबे हैं, जहां पर मासाहांरी खाने परोसने वालों के होर्डिंग्स पर भी काले कपड़े लपटे हुए हैं। ये भीड़ भरे उन ढाबों से बिल्कुल अलग हैं जो भगवा कपड़े पहनकर कांवड़ियों को खाना परोसते हैं।

फरमान अली ने अपनी शीरमाल की दुकान खोल रखी है। उन्होंने कहा कि वह ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि कांवड़िए उनके नाम के बजाय उनकी दुकान पर आएंगे। उन्होंने कहा कि पिछले साल तक बहुत सारे लोग उनकी दुकान पर आते थे। उन्होंने कहा कि वह अपनी दुकान करीब 17 सालों से चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिक्री पहले के मुकाबले दस गुना कम हो गई है। अली ने कहा कि पहले में करीब 100 शीरमाल बेच देता है। अब केवल 10 ही बिक पाती हैं। पिछले साल तक मैं कांवड़ यात्रा के दौरान शाकाहारी खाना और नाश्ता बेचने के लिए एक ढाबा भी चलाता था। लेकिन अब कौन लड़ाई करने की हिम्मत करेगा।

कुछ ने अपने होर्डिंग्स से नाम नहीं हटाया

अली कहते हैं कि उन्होंने अपनी दुकान के होर्डिंग से अपना नाम नहीं हटाया है क्योंकि किसी ने उन्हें कुछ नहीं बताया है। फिर भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्होंने कहा कि लोगों में कोई भी नफरत नहीं है। यह उनके बीच में फैलाई जा रही है। इन सबको सरकार का समर्थन मिला हुआ है। मिठाई की दुकान चलाने वाले हामिद अख्तर भी इस बात की पुष्टि करते हैं। उनका कहना है कि कांवड़ यात्रा में आने वाले ग्राहकों की संख्या में किसी भी तरह की कोई गिरावट नहीं आई है। उन्होंने कहा कि मैं बचपन से कांवड़ यात्रा देखता आ रहा हूं।

यहां तक ​​कि जब मैं टोपी पहनता हूं, तब भी लोग मेरी दुकान पर आते हैं। यह सिर्फ और सिर्फ राजनीति है। हालांकि, अख्तर ने अपनी नेमप्लेट नहीं हटाई है। चिप्स और कोल्ड ड्रिंक्स की दुकान चलाने वाले गुलबहार कहते हैं कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 22 जुलाई के आदेश के बाद नेम प्लेट हटा दी थी, लेकिन पुलिस आई और मुझसे कहा कि इसे वापस लगा दो। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने मुझे वार्निंग दी कि मेरी दुकान बंद कर दी जाएगी।

मुजफ्फरनगर के जिला मजिस्ट्रेट अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने कहा कि मामला अभी कोर्ट के विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कर रहे हैं। जब उनसे सवाल किया गया कि दुकानदार अब अपनी नेमप्लेट हटा सकते हैं तो उन्होंने कहा कि मैं इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं कर सकता हूं। एसपी सिटी सत्यनारायण प्रजापत कहते हैं कि उनका आदेश लागू है। कांवड़ यात्रा वाले रूट पर नेम प्लेट लगानी होगी। जो दुकाने रास्ते में नहीं पडती है वह इन्हें हटा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में पूछे जाने पर प्रजापत ने कहा कि मैं इस मामले पर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं कर सकता हूं।

भगवान शिव हमें भेदभाव करने के लिए नहीं कहते- नीरज माहौर

काफी कोशिशों के बाद भी मुजफ्फरनगर के एसएसपी अभिषेक सिंह से संपर्क नहीं हो सका। सरकारी कर्मचारी रवींद्र कुमार कहते हैं कि यह उनकी करीब 28वीं कांवड़ यात्रा है और वह प्रशासन के द्वारा उठाए गए कदम से बिल्कुल सहमत हैं। लेकिन दूसरे लोगों का कहना है कि यह कदम कोई ज्यादा जरूरी नहीं था और इसकी वजह से ढाबों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं उनके रेट भी काफी बढ़ गए हैं।

फरीदाबाद से हरिद्वार तक पैदल यात्रा कर रहे नीरज माहौर ने कहा कि भोले तो कहीं भी खा लेते हैं। मैं 2012 से कांवड़ यात्रा कर रहा हूं और मैंने कभी किसी मुस्लिम को अशुद्ध खाना परोसते नहीं देखा। भगवान शिव हमें भेदभाव करने के लिए नहीं कहते। यह बहुत गलत कदम है।

सतबीर गुर्जर ढोल बजाकर अपना गुजारा करते हैं। वह अपने पिता की बीमारी ठीक होने की उम्मीद में दिल्ली के रमेश नगर से हरिद्वार से वापस पैदल जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं अपने पिता के साथ कांवड़ यात्रा पर जाता था। अब वे बहुत बीमार हैं। अगर मैं इसके लिए भोले बाबा से प्रार्थना कर रहा हूं, तो मैं किसी भेदभाव के बारे में कैसे सोच सकता हूं। मुस्लिम मालिक वैसे भी कांवड़ यात्रा के दौरान मांसाहारी भोजन बेचना बंद कर देते हैं। बता दें कि हरिद्वार में कांवड़ यात्रा मार्ग पर एक मस्जिद और मजार को पर्दे से कवर कर दिया गया इससे संबंधित खबर के लिए यहां पर क्लिक करें…