कमलनाथ का राजनीतिक सफर कैसे और क्यों शुरू हुआ, इस सवाल के जवाब में अधिकांश लोग यही कहेंगे कि संजय गांधी की नजदीकी के चलते ऐसा हुआ है। यह जानकारी सही तो है पर पूरी नहीं। पूरी जानकारी के पहले थोड़ा सा रिकैप मध्यप्रदेश की राजनीति से लेते हैं।

मध्यप्रदेश में 2003 से 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। इससे पहले एक दशक तक दो पारियों में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार रही। 2018 चुनावी वर्ष था और यह माना जा रहा था कि एक बार फिर राज्य में भाजपा ही लौटेगी। इसकी वजह भी बहुत स्पष्ट थी, दरअसल कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई गुटबाजी से ही नहीं निपट पा रही थी। ऐसे में चुनाव में उससे किसी करिश्मे की उम्मीद न तो जनता को थी और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं को। लेकिन चुनाव से सात महीने पहले ही पार्टी ने हमेशा केंद्रीय राजनीति में सक्रिय रहे अपने नेता कमलनाथ को राज्य में पार्टी का प्रभार सौंपा। सात महीने की मेहनत से कमलनाथ ने रणनीति के साथ-साथ लोकलुभावन नीतियों के चलते बेहद लोकप्रिय शिवराज सिंह चौहान को चुनाव में हार का स्वाद चखा दिया।

यह काम उन्होंने तब किया था जब मध्य प्रदेश कांग्रेस गुटबाज़ी के चलते लगभग पंगु हो चली थी। कमलनाथ को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने टीवी कार्यक्रम में कहा था, ‘कमलनाथ की यही खासियत रही है, वो सबको साथ लेकर चलना जानते हैं और रिजल्ट देना जानते हैं।’ चाहे दिग्विजय सिंह रहे हों या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों के बीच कमलनाथ ने तालमेल बनाते हुए सबको एकजुट रखा और नतीजा सत्ता के रूप में सामने आया था। 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी थी।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद उनके शव के साथ कमल नाथ (ऊपर), राजीव गांधी के साथ (नीचे) और सेल्फी लेते। (दाईं ओर)

ऐसे शुरू हुई राजनीतिक यात्रा: संजय गांधी की शुरुआती पढ़ाई देहरादून के दून स्कूल से हुई थी। उनकी क्लास में ही पढ़ते थे कमलनाथ, जो उनके बेस्ट फ्रेंड भी थे। स्कूल से शुरू हुई यह दोस्ती आज तक कायम है। आज भी कमलनाथ के भोपाल और छिंदवाड़ा स्थित दफ्तर और घर में संजय गांधी की तस्वीर देखी जा सकती है। संजय गांधी के स्कूल बडी रहे कमलनाथ ने पढ़ाई के बाद यूथ कांग्रेस ज्वॉइन कर ली। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन का आगाज हुआ था। कमलनाथ को लगभग हर जगह संजय गांधी के साथ देखा जा सकता था। या यूं कहें कि वो संजय के साथ परछाई की रहते थे।

इतना ही नहीं जब इमरजेंसी के बाद जब संजय गांधी गिरफ्तार किए गए तो उनको कोई मुश्किल नहीं हो, इसका ख्याल रखने के लिए जज के साथ बदतमीजी करके कमलनाथ तिहाड़ जेल भी पहुंच गए थे। इन वजहों से वे इंदिरा गांधी की गुड बुक में आ गए थे।

1980 में पहली बार कांग्रेस ने उन्हें मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से लोकसभा का टिकट दिया था। उनके चुनाव प्रचार में इंदिरा गांधी ने अपने भाषण में कहा था, “मैं नहीं चाहती कि आप लोग कांग्रेस नेता कमलनाथ को वोट दीजिए। मैं चाहती हूं कि आप मेरे तीसरे बेटे कमलनाथ को वोट दें।” यहीं से यह नारा शुरू हुआ था, “इंदिरा के दो हाथ- संजय गांधी और कमलनाथ।”

80 के दशक में आदिवासी और लगभग नामालूम से छिंदवाड़ा से जीतने के बाद कमलनाथ ने इस जिले की तस्वीर ही बदल दी। यहां से नौ बार सांसद बनने के साथ उन्होंने यहां स्कूल-कॉलेज और आईटी पार्क बनवाए हैं। स्थानीय लोगों को रोजगार और काम धंधा मिले, इसके लिए उन्होंने वेस्टर्न कोलफील्ड्स और हिंदुस्तान यूनीलिवर जैसी कंपनियां खुलवाईं। साथ में क्लॉथ मेकिंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी उनकी ही देन हैं।

कुछ समय के लिए हाशिए पर भी गए: संजय गांधी की मौत और उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से कमलनाथ के राजनीतिक करियर पर भी असर पड़ा। लेकिन वे कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति प्रतिबद्ध बने रहे, जो आज भी कायम है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों में उनका नाम भी आया था लेकिन उनकी भूमिका सज्जन कुमार या जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं की तरह स्पष्ट नहीं हो सकी।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कमलनाथ, राजीव गांधी के विश्वस्त भी रहे। कांग्रेस पार्टी के भीतर उनकी स्वीकार्यता कभी प्रभावित नहीं हुई। यही वजह रही कि 1991 में पहली बार केंद्रीय मंत्री बनाए गए कमलनाथ, हर बार केंद्र की सरकार में मंत्री बनाए गए। 1991-96 में उन्हें पहली बार केंद्र सरकार में स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद यूपीए-1 तथा यूपीए-2 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।

निजी जीवन: कानपुर में जन्मे और पश्चिम बंगाल में कारोबार करने वाले व्यापारी परिवार से आने वाले कमलनाथ खुद भी एक बिजनेस टायकून हैं। उनका कारोबार रियल एस्टेट्स, एविएशन, हॉस्पिटलिटी और शिक्षा तक फैला है। देश के शीर्ष प्रबंधन संस्थान आईएमटी गाजियाबाद के डायरेक्टर सहित करीब 23 कंपनियों के बोर्ड में कमलनाथ शामिल हैं। ये कारोबार उनके दो बेटे नकुलनाथ और बकुलनाथ संभालते हैं।