Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार की राजनीति में जाति हमेशा एक अहम भूमिका निभाती रही है। यहां बड़ी जातियों के साथ-साथ कुशवाहा, मल्लाह और मांझी जैसी छोटी जातियां भी अब अपने-अपने नेताओं के साथ राजनीतिक ताकत बन चुकी हैं। लेकिन इस पूरे जातीय समीकरण के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक अलग पहचान रखते हैं।
पिछले दो दशकों में नीतीश कुमार एक कुर्मी नेता से एक ऐसे नेता बन गए हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द जातियों का एक गठबंधन सफलतापूर्वक बुना है। अपनी राजनीति के अंतिम पड़ाव में भी, उनका यह गठबंधन न केवल जीवंत है, बल्कि उनके प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध भी है। इसलिए ऐसे राज्य में जहां आरजेडी के तेजस्वी यादव को यादवों के नेता के रूप में देखा जाता है, लोजपा (आरवी) के चिराग पासवान को दुसाधों के नेता के रूप में और बीजेपी के गिरिराज सिंह और सम्राट चौधरी को क्रमशः भूमिहारों और कुशवाहाओं के नेता के रूप में देखा जाता है, नीतीश की अपील उनके कुर्मी समुदाय से परे है।
नीतीश कुमार ने पिछड़ा वोट बटोरा
कुर्मी आबादी का 3% से भी कम हिस्सा हैं, जबकि आरजेडी का आधार मुस्लिम और यादव हैं। इनकी कुल आबादी 31% है। पटना से बिहार के उत्तर-पूर्व में सीमांचल की ओर बढ़ते हुए – सिकंदरा, जमुई और कटिहार जैसे पड़ावों के साथ – नीतीश ने पिछले दो दशकों में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए अपने लिए जो ठोस पिछड़ा वोट बटोरा है, वह अब भी काफी हद तक उनके प्रति वफादार नजर आता है। यहां तक कि नीतीश की स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी, बाधा बनने के बजाय, इस नेता के प्रति लोगों के लगाव को और मजबूत करती दिख रही हैं, जिन्हें अपना आखिरी चुनाव लड़ते हुए देखा जा रहा है।
चिराग और जीतन राम मांझी गठबंधन का हिस्सा
बारहबीघा निर्वाचन क्षेत्र के गंगटी गांव के ईबीसी धानुक जमादार कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “जो हमको सड़क दिया, बिजली दिया, सुरक्षा दिया, उसको वोट नहीं देंगे तो किसे देंगे।” उनके आस-पास के बाकी लोग, जो धानुक समुदाय से हैं, साथ ही दलितों में पासवान और मांझी समुदाय भी सहमति में सिर हिलाते हैं। जहां धानुक नीतीश के ईबीसी नेटवर्क का हिस्सा हैं, वहीं पासवान और मांझी मुख्यतः एनडीए के साथ इसलिए हैं क्योंकि उनके नेता क्रमशः चिराग और जीतन राम मांझी गठबंधन का हिस्सा हैं।
बारहबीघा में एनडीए के लिए मुकाबला मुश्किल इसलिए भी है क्योंकि जेडीयू के मौजूदा विधायक सुदर्शन कुमार पार्टी का टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। माना जा रहा है कि वे जेडीयू के भूमिहार उम्मीदवार कुमार पुष्पंजय के वोटों में सेंध लगाएंगे, जिससे कांग्रेस के भूमिहार उम्मीदवार त्रिशूल धारी सिंह को जीत हासिल करने का मौका मिल जाएगा।
शुक्रवार शाम राजनीतिक रैलियों के कारण कटिहार जिले के कुसैला में लगे जाम के बीच, अति पिछड़ा वर्ग मंडल समूह से जुड़े श्रीकांत मंडल कहते हैं, “उन्होंने जो किया है, उसके लिए हम नीतीश कुमार को तब तक वोट देंगे जब तक वे जिंदा हैं। हमें जेडीयू या एनडीए के स्थानीय उम्मीदवार की परवाह नहीं है। हम नीतीश बाबू के साथ हैं।”
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अति पिछड़ी जातियों पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए नीतीश ने कई कदम उठाए
उसी समुदाय का एक अन्य व्यक्ति सिर हिलाकर कहता है, “मेरे गांव के ज्यादातर मंडल नीतीश बाबू के साथ हैं।” मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश ने अति पिछड़ी जातियों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। 2006 में, उनके मंत्रिमंडल ने जिला परिषदों, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों में अति पिछड़ी जातियों के लिए 20% आरक्षण को मंजूरी दी। 2010 में, उन्होंने अति पिछड़ी जातियों के लिए एक नई एन्टरप्रोन्योरशिप स्कीम की घोषणा की, जिसके तहत पात्र सदस्यों को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये की मदद दी गई। 2023 के बिहार जाति सर्वेक्षण के पीछे भी उनकी ही भूमिका थी, जिसमें अति पिछड़ी जातियों की आबादी 36% बताई गई थी।
जमुई के कुछ कहारों या चंद्रवंशियों में नीतीश कुमार से थकान के कुछ लक्षण दिखाई दे रहे हैं। तीन ई-रिक्शा चलाने वाले कहार दीपक कुमार शिकायत करते हैं कि इस साल की शुरुआत में पटना में पुलिस ने बिहार लोक सेवा आयोग की नौकरी के उम्मीदवारों पर लाठीचार्ज किया था। वे आगे कहते हैं कि लोग आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को सत्ता में लाना चाहते हैं।
जमुई में आरजेडी को न केवल मुसलमानों और यादवों का, बल्कि अन्य लोगों का भी वोट मिल सकता है, जिससे उसकी शमशाद आलम को बीजेपी की श्रेयसी सिंह पर बढ़त मिल सकती है। राजपूत समुदाय से आने वाली श्रेयसी सिंह, दिवंगत केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी हैं। वह बाकां के एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखते थे।
