Jharkhand News : झारखंड (Jharkhand) में कई गांव ऐसे हैं जहां गांव वालों के पास आधार कार्ड (Aadhaar card) में दर्ज नाम, जन्म तिथि या पते में गलतियां सुधारने के लिए कोई रास्ता ही नहीं हैं। गांवों में ऐसा कोई कैंप या कार्यालय नहीं है जहां उनकी इन समस्याओं का समाधान हो सके। ऐसे में इन लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिसमें पेंशन से लेकर भोजन \ राशन और बैंकिंग सेवाओं से यह लोग वंचित रह जाते हैं।

Aadhaar Card की गड़बड़ी से जेल जाने की नौबत

सितंबर महीने में पश्चिमी सिंहभूम के दोईपाई गांव के 42 वर्षीय बीड़ी मजदूर जीतराई सामंत (Jeetrai Samant) को अदालत में पेश होने एक सामने मिला। लगातार मिले दो नोटिस के बाद जीतराई सामंत के खिलाफ अक्टूबर में मुफस्सिल पुलिस स्टेशन में धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता ग्रामीण बैंक के एक अधिकारी थे। उन्होने आरोप लगाया था कि सितंबर में सामंत को सूचित किया था कि उसका आधार किसी अन्य व्यक्ति के खाता संख्या से जुड़ा हुआ था। यह मामला पैसे की धोखाधड़ी से जुड़ा हुआ था।

इस पूरे मामले को लेकर बीड़ी मजदूर जीतराई सामंत कहते हैं कि 2020 में कोविड लॉकडाउन के दौरान मैं अपने आधार से जुड़े खाते में बची हुई राशि की जांच करने के लिए एक कॉमन सर्विस सेंटर गया था। स्कैनर पर अंगूठा लगाया तो उसमें 1,12,000 रुपए बैलेंस दिखा। मैं तुरंत बैंक गया, जहां प्रबंधक ने मुझे बताया कि यह राशि शायद सरकार द्वारा कोविड राहत के रूप में जमा की गई है। झारखंड की हो जनजाति से ताल्लुक रखने वाले सामंत ने इन पैसों का उपयोग अपने 6 बच्चों के परिवार को पालने के लिए कर लिया।

न्याय की माग कर रहे हैं मजदूर जीतराई सामंत

नोटिस मिलने और मामला दर्ज होने के बाद सामंत ने अब चाईबासा के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर दोषी बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और न्याय की मांग की है। उन्होने एक खत लिखा है, जिसमें वह कहते हैं कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मेरे आधार से मेरे जानकारी के बिना दूसरे किसी का खाता में लिंक कर दिया गया था।

दो साल तक बैंक द्वारा इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गयी। जीतराई सामंत का आधार किसी अन्य व्यक्ति के खाते से कैसे जुड़ा, यह जानने के लिए ग्रामीण बैंक के अधिकारियों संपर्क की कोशिश की गयी लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जीतराई सामंत जैसे कई मामले इस इलाके में दर्ज किए गए हैं। जिनका कोई समाधान नजर नहीं आता है। झारखंड के अधिकांश ग्रामीणों के पास अपना जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य सत्यापन प्रमाण नहीं है। स्थानीय पुलिस का कहना है कि मामले की जांच के बाद अगर इसमें बैंक दोषी पाया जाता है तो बैंक के ऊपर कार्रवाई की जाएगी।