Pulwama Attack: जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक का नाम देश विरोधी हरकतों के चलते अक्सर चर्चा में रहता है। यासीन पर कश्मीर में अलगाव और आतंक फैलाने का आरोप लगातार लगते रहे हैं। उनका नाम उस समय सबसे ज्यादा चर्चा में आया था जब उन्होंने भारत के मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद के साथ मंच साझा किया था। फिलहाल यासीन को पुलवामा हमले के बाद शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया है। पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 शहीद हुए थे।
आतंकी हाफिज सईद के साथ किया था मंच साझा- बता दें कि भारत की संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में अलगाववादी यासीन मालिक ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद में 24 घंटे का अनशन किया था। इस अनशन में देश का मोस्ट वांटेड आतंकी हाफिज सईद भी पहुंचा था। गौरतलब है कि हाफिज मुंबई हमले (26/11) का मास्टरमाइंड है। हाफिज के साथ यासीन की फोटो अख़बारों में छपने के बाद देश में हंगामा खड़ा हो गया था। यासीन ने आतंकी अफजल को दोषी मानने से इंकार करते हुए कहा था कि भारत ने लोगों को खुश करने के लिए एक बेगुनाह को फांसी पर चढ़ा दिया।
वायुसेना कर्मियों की हत्या में शामिल होने का आरोप- बता दें कि 25 जनवरी 1990 को जम्मू एवं कश्मीर के रावलपुरा में स्वाड्रन लीडर रवि खन्ना और उनके तीन साथियों की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद यासीन मलिक ने आतंकियों का बचाव करते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि वायुसेना कर्मी निर्दोष नहीं थे। वे दुश्मन के एजेंट थे। इस मामले में उसे गिफ्तार कर जेल भेजा गया था। लेकिन मेडिकल आधार पर उसे जमानत मिल गई थी।
टेरर फंडिंग मामले में हुई कार्रवाई- बता दें कि फरवरी 2018 में यासीन पर टेरर फंडिंग मामले में एनआईए (NIA) भी शिकंजा कस चुका है। आपको बता दें कि जम्मू कश्मीर में यासीन को श्रीनगर में उनके ऑफिस से हिरासत में लिया गया था। हालांकि बाद में उन्हें 5 दिन बाद रिहा कर दिया गया था।
22 जनवरी 2019 को फिर गिरफ्तार- बताया जा रहा है कि अनुच्छेद 35-ए पर सुप्रीम कोर्ट में 26 फरवरी के आस-पास सुनवाई हो सकती है। इसी वजह से एहतियातन यासीन को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन जानकार केंद्र सरकार की इस कार्रवाई को पुलवामा हमले के बाद अलगाववादियों पर एक्शन के तौर पर देख रहे हैं।
सरकार ने यासीन मलिक की सुरक्षा ली वापस- पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार ने यासीन समेत कट्टरपंथी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कई नेताओं की सुरक्षा वापस ली थी। जिसके बाद यासीन ने कहा था कि मेरे पास पिछले 30 सालों से कोई सुरक्षा नहीं है। ऐसे में जब सुरक्षा मिली ही नहीं तो वे किस वापसी की बात कर रहे हैं। ये सरकार की तरफ से बिल्कुल बेईमानी है।