कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कार्यक्रम आयोजित करने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। आदेश जारी होने के बाद ही कयास लगने लगे कि नियम की आड़ में आरएसएस की शाखाओं, पथ संचालन और झंडा वंदन जैसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने की तैयारी है। मामला तूल पकड़ने के बाद अब कांग्रेस के ही एक विधायक ने अपनी सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अपनी सरकार से नाराज कांग्रेस विधायक?
मीडिया से बातचीत में कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री राजन्ना ने कहा, “क्या अब नमाज पढ़ने के लिए भी लोगों को सरकार से अनुमति लेनी पड़ेगी? क्या उनसे पूछा जाएगा कि उन्होंने पहले अनुमति ली थी या नहीं?” राजन्ना ने कहा कि कानून बनाना आसान होता है, लेकिन उन्हें लागू करना उतना ही मुश्किल। कागजों पर कड़े नियम बन सकते हैं, लेकिन अगर वे जमीन पर लागू न हो सकें तो केवल किताबों तक सीमित रह जाते हैं।
इस बीच, मंत्री प्रियंक खड़गे के बयान पर भी विवाद जारी है। भाजपा ने आरोप लगाया था कि खड़गे आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं। हालांकि राजन्ना ने सफाई देते हुए कहा कि प्रियंक खड़गे ने प्रतिबंध की बात नहीं कही, बल्कि केवल इतना सुझाव दिया था कि किसी भी संगठन को सार्वजनिक स्थान पर कार्यक्रम करने से पहले अनुमति लेनी चाहिए।
बीजेपी ने कांग्रेस को कैसे घेरा?
सरकार के इस आदेश के खिलाफ भाजपा सड़क पर उतर आई है। विपक्ष के नेता आर अशोक ने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे आरएसएस की शाखाएं पहले की तरह जारी रखें और सरकार की किसी भी कार्रवाई से डरें नहीं। भाजपा नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं से यह तक कह दिया कि वे अपने मोबाइल की रिंगटोन में “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” सेट कर लें।
कर्नाटक में पुराना है ये विवाद
कर्नाटक की राजनीति में इस तरह के टकराव पहले भी देखे जा चुके हैं। कुछ वर्ष पहले भी राज्य में आरएसएस की शाखाओं और जुलूस पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया गया था, जिसके बाद बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था। अब फिर वैसी ही एक और बहस राज्य में छिड़ चुकी है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को मिल रहा है।