कुढ़नी की हार का बारीकी से जदयू विश्लेषण करेगा। हरेक बूथ की जानकारी ली जाएगी। एक सीट पर चुनाव हारने से किसी दल का आकलन नहीं किया जाता। वहीं राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह ने कहा कि कुढ़नी उपचुनाव में हार की वजह परंपरागत वोटों का बिखराव है। भाजपा ने धन बल पर जीत हासिल की है। भाजपा ने हमें हराया है, ऐसी कोई बात नहीं है।

लेकिन अंदरूनी विश्लेषण करने पर जाहिर होता है कि निषाद वोटों पर पकड़ महागठबंधन और भाजपा दोनों की ढीली हुई है। जदयू उम्मीदवार की पराजय निषाद वोट न मिलना है। वहीं वीआईपी के मुकेश साहनी के उम्मीदवार की जमानत जब्त होने के बाद भी वे खुश हैं। और मिठायां बांट रहे हैं। उनकी सोच है कि उनके मतों का बिखराब नहीं हुआ। इससे वीआईपी का आधार और मजबूत हुआ है। यह जाहिर होता है कि महगठबंधन और भाजपा निषाद वोटों की अनदेखी करने से नतीजा नुकसान का हो सकता है।

हालांकि पूर्व राजद विधायक अनिल साहनी भी किसी साहनी को उम्मीदवार न बनाए जाने से नाखुश हैं। इनको अयोग्य करार दिया गया और इनकी वजह से ही उपचुनाव हुआ है। इन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए। इस पर नीतीश कुमार ने जबाव दिया कि इनके पिता को और इनको राज्यसभा किसने भेजा? उन पर आरोप थे, इसलिए दोबारा उम्मीदवार नहीं बनाया।

खैर नेताओं की बयानबाजी चलती रहती है। लेकिन मतदान में किसी दल से बेरुखी बड़ा झटका साबित होता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है। कुढ़नी उपचुनाव में वोटों की गिनती में एनडीए उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता को 76732 मत हासिल हुए। वहीं महागठबंधन के मनोज कुमार को 73074 वोट मिले। मसलन 3658 मतों से जदयू उम्मीदवार की पराजय हुई। इन मतों में साहनी समाज का वोट नहीं है। उनकी नाराजगी ने दोनों दलों से दूरी बनाए रखी।

निषाद जाति के मत यहां तकरीबन 22 हजार है। इस उपचुनाव में 57.9 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। लेकिन निषाद मतदाताओं ने 19 हजार से ज्यादा यानी 86 फीसदी मतदान किया। जो साहनी उम्मीदवारों को मिले वोट बताते हैं। इसमें मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी के उम्मीदवार को 10 हजार वोट मिले। निर्दलीय उम्मीदवार शेखर साहनी को 3716, संजय कुमार (साहनी) को 4250 और उपेंद्र साहनी को 1090 वोट मिले।

इससे एक बात जाहिर हुई कि निषाद वोटरों ने अपने वजूद और सम्मान की खातिर ये एक जुट हुए। भले ही जीत एनडीए की हुई हो। मगर आगे के लिए इनलोगों ने संकेत दिया कि निषाद जाति की अनदेखी बर्दास्त के बाहर है। उपचुनाव में बड़े अंतर की जीत को इनलोगों ने रोक दिया। इससे इनलोगों ने अपनी अहमियत भी दोनों बड़े गठबंधन को समझा दिया। और बता दिया कि इस जाति की अनदेखी आगे भी नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि अभी जदयू और राजद का विश्लेषण चल रहा है। इनका आकलन अभी आना बाकी है।