एक मंत्रालय की ओर से दिल्ली निवासियों को सौगात देते हुए योजना शुरू की गई है। इसके लिए आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता जब योजना को समझाने के लिए खड़े हुए तो बेचारे केंद्र की योजना को ही भूल गए। बार-बार सरकार की योजना बताते हुए जानकारी देते रहे पर एक बार भी प्रधानमंत्री का नाम नहीं लिया। पूरे भाषण को मंत्री जी बड़े ध्यान से सुन रहे थे। जब अंत में भाषण की शैली में कोई भी बदलाव नहीं हुआ तब भाजपा के प्रदेश अधिकारियों को कहना पड़ा कि योजना प्रधानमंत्री की है। ताकि आम जनता के बीच सरकारी नीतियों को स्पष्ट तौर पर रखा जा सके।
सहना पड़ता है
दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्तों से लेकर निरीक्षकों तक के फेरबदल से कुछ अधिकारी खुश नजर आ रहे हैं तो कुछ में नाराजगी भी है। बेदिल ने जब इसे कुरेदने की कोशिश की तो नाराजगी साफ तौर पर नजर आने लगी। अधिकारी हैं कि इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहते। पिछले दिनों एक अधिकारी से पुलिस मुख्यालय में बेदिल की अचानक मुलाकात हो गई। बेदिल के मुंह से निकल गया, सर नई तैनाती के बारे में क्या सोचे हैं? जवाब मिला, यार, गजब करते हो, कभी खुशी-कभी गम फिल्म देखे हो न? बस यही मान लो। नौकरी में सब सहना पड़ता है।
मैं हूं न
आजकल भला जमाना आ चला है सहायता लेने वाले छात्र नदारद हैं लेकिन सहायता देने का दावा करने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन बहुत चुस्त हैं। बीते दिनों दिल्ली विवि का ‘कटआफ’ आते ही परिसर के छात्र संगठनों के नेताओं की सक्रियता बढ़ती दिखने लगी। दरअसल सहायता मेज, सहायता नंबर, परामर्श केंद्र आदि अनेक नामों से दिल्ली विवि छात्रसंघ के छात्र नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी है। यह बात अलग है कि जिसकी सहायता का दावा किया जा रहा है वे तो कैंपस से नदारद ही हैं। बेदिल सोचने लगा कि जब पूरी दाखिला प्रक्रिया आनलाइन है तो फिर आखिर माजरा क्या है!
बेदिल के इस कौतुहल को नेतानगरी के एक छात्र ने साफ कर दिया, कहा कि इस बार कहीं छात्रसंघ चुनाव न हो जाए न। क्या है न कि पिछली बार कोरोना के चलते चुनाव नहीं हुए थे। इस बार कई छात्र संगठन इसे संपन्न कराने की मांग भी कर रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘कहीं पे निगाहें तो कहीं पे निशाना’। कुछ ऐसा ही कर रहे हैं छात्र नेता।
मौके पर बदले
बीते दिनों देश की सबसे पुरानी प्रचलित पार्टी में जो कुछ भी घटित हुआ है। उसे लेकर दिल्ली प्रदेश के कुछ पदाधिकारी अपने ही दल के वरिष्ठ नेताओं के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने लगे हैं। एक पदाधिकारी चर्चा कर रहे थे कि बीते दिनों पार्टी के अंदर अचानक से घटित घटनाक्रम को लेकर कुछ नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। वे नेता अपनी अंतरआत्मा में झांके और बताएं कि पार्टी के अंदर जो कुछ घटित हो रहा है उसके लिए वह अपने आप को कहां तक जिम्मेदार मानते हैं। दरअसल प्रदेश के कुछ नेताओं को मलाल है कि कई बार जीत दर्ज करने के बाद भी पार्टी ने उनको जिम्मेदारी नहीं दी, जबकि नए नेताओं को मौका दिया गया।
अब वही नए लोग पार्टी की कार्यप्रणाली और वर्तमान नेतृत्व में सवाल खड़े कर रहे हैं। पुराने और वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर नए लोगों को जब मौका मिल रहा था तो यही नए लोग पार्टी के गुणगान करते नहीं थकते थे। अब पार्टी को कमजोर आंकने के साथ-साथ न जाने क्या-क्या कह रहे हैं।
कागजों का खेल
उत्तर प्रदेश में चुनावी सुगबुगाहट के बीच औद्योगिक महानगर नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों पर मनमानी के आरोपों के इतर एक नया खेल शुरू हो गया है, जिसे अंजाम कर्मचारी दे रहे हैं। प्राधिकरण के विभिन्न विभागों में आबंटियों की काम की फाइल तक गायब होनी शुरू हो गई है। संबंधित विभागों के ‘रिकार्ड रूम’ में तैनात संविदा कर्मी आबंटियों के अलावा अधिकारियों के स्तर से फाइल मांगे जाने पर नहीं मिलने का तर्क दे रहे हैं। कई दिनों तक धक्के खाने के बाद आबंटी के पास केवल दो विकल्प बच रहे हैं। पहला तो यह कि वह फाइल मिलने के इंतजाम में हार-थक कर बैठ जाए और दूसरा फाइल तलाशने वाले संविदा कर्मियों की मांग पूरी करे। प्राधिकरणों में सक्रिय दलाल इसको भली-भांति समझते हैं इसलिए वे बगैर समय गंवाए रिकार्ड रूम या विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों को पहले से खुश कर फाइल लेने में कामयाब हो रहे हैं। बेदिल को पता चला है कि विगत दिनों हुए कर्मचारियों के अंदरूनी तबादलों के चलते ‘रिकार्ड रूम’ में फाइल नहीं मिलने पर अधिकारी भी वहां तैनात कर्मचारियों के खिलाफ कड़ाई नहीं कर पा रहे हैं।
-बेदिल
भाषण की अहमियत
एक मंत्रालय की ओर से दिल्ली निवासियों को सौगात देते हुए योजना शुरू की गई है।
Written by जनसत्ता
नई दिल्ली
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First published on: 04-10-2021 at 06:26 IST