सुमन भटनागर

हरियाणा की सियासत में लंबी पारी खेल चुके और पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके ओम प्रकाश चौटाला करीब साढ़े नौ साल जेल में काटने के बाद अब रिहा होने ही वाले हैं। रिहाई के बाद वह अपनी नई सियासी पारी खेलने की शुरुआत करेंगे। माना जा रहा है कि इसकी शुरुआत अगले कुछ महीनों में होने वाले ऐलनाबाद के उपचुनाव से होगी।

इस विधानसभा सीट पर 2019 में चौटाला के बेटे अभय चौटाला ने जीत का परचम लहराया था लेकिन जनवरी 2021 में आंदोलनकारी किसानों के समर्थन में उन्होंने अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया था। सालों बाद पिंजरे से बाहर आने के बाद अब चौटाला की नई उड़ान के लिए ऐलनाबाद का आसमान खाली है जहां से अभय चौटाला का फिर से चुनावी मैदान में उतरना तय है। इस सीट की जीत हार से केंद्र सरकार में उपप्रधानमंत्री बनने के बाद देवीलाल ने अपनी सियासी विरासत का ताज ओमप्रकाश चौटाला के सिर पर रख दिया था। इनेलो सुप्रीमों होने के नाते पार्टी में उनका पूरा वर्चस्व रहा। वैसे वह कई बार मुख्यमंत्री बने लेकिन सरकार के पांच साल का कार्यकाल 2000 से 2005 का ही पूरा किया। 1990 में एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें केवल पांच दिनों के भीतर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी।

2013 में जीबीटी भर्ती घोटाले में 10 साल की सजा होने के बाद इनेलो को एक बड़ा झटका लगा और चौ. देवी लाल के खून पसीने से बने इनेलो के आशियाने का तिनका तिनका बिखरना शुरू हो गया े दिसंबर 2018 में दुष्यंत चौटाला के जजपा नए दल का गठन करने के बाद इनेलो में एक और बिखराव की शुरुआत हुई। इनेलो के कई दिग्गज दुष्यंत के पाले में आ गए और और इनेलो जिसका कभी डंका बजता था हाशिए के कगार पर पहुँचने लगा।

2019 के विधानसभा चुनाव में इनेलो केवल ऐलनाबाद एक सीट ले पाया और उसका वोट प्रतिशत भी मायूस करने वाला था। इस चुनाव में भाजपा को 36.49, कांग्रेस को 28.08, जजपा को 14.80 व इनेलो को केवल 2.45 फीसदी वोट मिला। इसके बाद हुए बरोदा उपचुनाव व नगर निगमों के चेयरमेन के चुनावों में इनेलो को बड़ा सदमा पहुंचा। इसके बावजूद अभय चौटाला ने हिम्मत नहीं हारी और किसान आंदोलन से जुड़ कर एक बार फिर गांवों में अपनी बिखरी ताकत को नए बटोरने में लगे रहे हैं।

माना जा रहा है कि चौटाला के बाहर आने के बाद इनेलो को ही नहीं अभय को एक नई ऊर्जा मिलेगी। हरियाणा विधानसभा चुनाव तो अभी काफी दूर हैं, इसके लिए अभी से बड़े चौटाला व अभय चौटाला को जम कर पसीना बहाना पड़ेगा। किसान आंदोलन के चलते जजपा से किसानों की जो नाराजगी बढ़ी है जिसे चौटाला भुना सकते हैं। वैसे दुष्यंत को अपने दादा के सियासी दाँव पेचों का अंदाजा है जिसके लिए उसे सतर्क रहना पड़ेगा।