संजीव

हरियाणा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सात साल से बगैर संगठन के चल रहा है। इन सात वर्षों में कांग्रेस छह चुनाव हार चुकी है। इसके बावजूद पार्टी के वरिष्ठ नेता वर्चस्व की लड़ाई में उलझे हैं। शीर्ष नेताओं की आपसी लड़ाई के कारण जिलों में सैकड़ों पुराने कांग्रेसी घर बैठ चुके हैं और बहुत से नेताओं ने सक्रियता कम कर दी है।

हरियाणा में वर्ष 2005 के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बतौर मुख्यमंत्री कमान संभाली थी। जिसके बाद हुड्डा के सबसे करीबी फूलचंद मुलाना को 20 जुलाई, 2007 को हरियाणा कांग्रेस का प्रधान बना दिया गया। हुड्डा और मुलाना ने एक सुर में काम करते हुए हरियाणा के सभी जिलों में अध्यक्षों की तैनाती व पार्टी का संगठन खड़ा किया। फूल चंद मुलाना द्वारा खड़ा किया गया संगठन हुड्डा के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी हरियाणा में सक्रिय रहा। इसमें दूसरी बार सत्ता मिलने के बाद मामूली बदलाव किया गया।

इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने 14 फरवरी, 2014 को हरियाणा की कमान अशोक तंवर को सौंपी। ताजपोशी के कुछ दिन बाद ही हुड्डा गुट ने अशोक तंवर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हुड्डा गुट के विधायकों व नेताओं ने तंवर को कभी अध्यक्ष नहीं माना। तंवर ने कई बार कांग्रेस की कार्यकारिणी व जिला अध्यक्षों को तैनात करने का प्रयास किया लेकिन हुड्डा गुट के दबाव के कारण अशोक तंवर कभी भी सूची जारी नहीं कर सके। तंवर के कार्यकाल के दौरान हरियाणा में लोकसभा, विधानसभा, पंचायत व स्थानीय निकाय के चुनाव हुए। बगैर संगठन के मैदान में उतरी कांग्रेस चुनाव हारती रही।

हुड्डा व तंवर गुट के बीच का विवाद कई बार सड़कों पर आया। तंवर पर जानलेवा हमला तक किया गया और आरोप हुड्डा गुट पर लगा। इस जद्दोजहद के बीच हुड्डा गुट हर बार अशोक तंवर की राह में रोड़ा बनता रहा और तंवर पार्टी का संगठन खड़ा नहीं कर सके। कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा गुट को शांत करने के लिए चार सितंबर, 2019 को अशोक तंवर को हटाकर कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस का प्रधान बना दिया।

सैलजा के कार्यभार संभालने तथा राज्यसभा की खाली होने वाली एक सीट हुड्डा गुट के खाते में जाने तक तो सबकुछ सामान्य रहा लेकिन उसके बाद फिर से हुड्डा गुट पहले ही तरह आक्रामक हो गया और सैलजा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सैलजा के कार्यकाल के दौरान विधानसभा चुनाव, बरौदा विधानसभा उपचुनाव तथा निगम व परिषद के चुनाव हुए। इनमें से किसी भी चुनाव में कांग्रेस का संगठन नहीं था। कुमारी सैलजा ने अपने कार्यकाल के दौरान कुछ अहम पदों पर नियुक्तियां तो कीं लेकिन प्रदेश में संगठन का गठन वे नहीं कर सकी हैं।

इसके पीछे भी हुड्डा गुट की दबाव की राजनीति चल रही है। पार्टी सूत्रों की मानें तो सैलजा ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी तथा कैप्टन अजय सिंह यादव जैसे नेताओं को उनके क्षेत्र के अनुसार जिला व प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल किए जाने वाले नेताओं की सूची देने के लिए कई बार कहा। इनमें हुड्डा को रोहतक, झज्जर व सोनीपत जिलों की सूचियां देने के लिए कहा गया।

दूसरे नेताओं ने अपनी-अपनी सूचियां दे दीं लेकिन हुड्डा गुट ने तीन जिलों की सूचियां देने की बजाय करनाल, गुरुग्राम, फरीदाबाद जिले भी मांगे। जिसे लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया। इस विवाद के कारण हुड्डा गुट के विधायक एवं नेता सैलजा को बदलवाने के लिए आलाकमान के दरबार में पहुंचे भी हैं। सैलजा द्वारा दो साल के दौरान केंद्र व राज्य सरकार को घेरने के लिए जो कार्यक्रम दिए उनमें से ज्यादातर में हुड्डा व उनके गुट के विधायक नदारद रहे हैं।

यहां तक की कोरोना काल के दौरान भी दीपेंद्र सिंह हुड्डा व उनकी टीम ने जो कार्य किए हैं वह पार्टी बैनर की बजाय व्यक्तिगत बैनर तले किए हैं। सैलजा के बाद हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की बागडोर संभालने वाले ओम प्रकाश धनखड़ पूरे प्रदेश में अपना संगठन खड़ा कर चुके हैं। जेबीटी भर्ती घोटाले में सजा पूरी करके जेल से बाहर आए ओमप्रकाश चौटाला भी रोजाना संगठन का विस्तार करते हुए सूची जारी कर रहे हैं। इसके उलट सत्ता में आने का सपना संजोये बैठी कांग्रेस के नेता आपसी लड़ाई में उलझे हुए हैं।

पंजाब में अमरिंदर की अनदेखी करके नवजोत सिद्धू को पार्टी की कमान सौंपे जाने के बाद हरियाणा में हुड्डा गुट ने भी अब विरोध का झंडा कुछ नीचे कर लिया है। कुमारी सैलजा द्वारा पार्टी आलाकमान के निर्देश पर फोन टैपिंग के मुद्दे पर किए गए विरोध प्रदर्शन में पहली बार हुड्डा गुट के 22 में से 19 विधायकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। हरियाणा कांग्रेस प्रभारी विवेक बंसल के अनुसार पार्टी में संगठन के गठन को लेकर कुछ देरी जरूर हुई है लेकिन अब सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। नए संगठन में काम करने वाले नेताओं व कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान दिया जाएगा। बहुत जल्द हरियाणा में कांग्रेस का नया संगठन दिखाई देगा।

हरियाणा में वर्ष 2005 के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बतौर मुख्यमंत्री कमान संभाली थी। जिसके बाद हुड्डा के सबसे करीबी फूलचंद मुलाना को 20 जुलाई, 2007 को हरियाणा कांग्रेस का प्रधान बना दिया गया। हुड्डा और मुलाना ने एक सुर में काम करते हुए हरियाणा के सभी जिलों में अध्यक्षों की तैनाती व पार्टी का संगठन खड़ा किया।