संजीव शर्मा
हरियाणा के अंतिम छोर पर बसे मुसलिम बहुल मेवात क्षेत्र के गावों में आज भी महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। लड़कियों को जहां उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए परिजनों के साथ लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है। उन पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। यह हाल स्थिति कहीं और नहीं बल्कि भारत की दूसरी आइटी राजधानी के रूप में विकसित हो चुके गुरुग्राम के गावों की है। मगर अब धीरे-धीरे ही सही, हालात बदल रहे हैं। हाल ही में इस क्षेत्र में हुआ एक घटनाक्रम चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां के सोहना विधानसभा क्षेत्र के गांव खत्रीका में महिलाओं ने करीब 200 साल पुरानी परंपरा तोड़ गांव की चौपाल में अपना कदम रखा। यह संभव हुआ ‘सेल्फी विद डॉटर फांउडेशन’ के निदेशक सुनील जागलान के प्रयासों से। मेवात की दर्जनों मुसलिम महिलाओं को बुर्के की प्रथा में रहकर एंड्रायड फोन तथा कंप्यूटर फ्रेंडली बनाने वाले सुनील जागलान ने इस प्रथा को तोड़ने की घटना को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए यहां के पुरुष प्रतिनिधियों के साथ रोजाना कई-कई घंटे तक बैठकों का आयोजन किया।
सुनील के अनुसार गांव के सरपंच विजयपाल से जब इस बारे में बात की गई, तो उन्हें भी एक बार तो यह फैसला अटपटा लगा लेकिन वह बहुत जल्द इस नए तजुर्बे के लिए मान गए और उन्होंने अपने पंचायत सदस्यों से बातचीत करके इस बारे में सहमति कायम की। इसके बाद जब गांव की महिलाओं को इकट्ठा कर उनके साथ बात की गई। महिलाएं इस अभूतपूर्व घटनाक्रम को लेकर आश्चर्यचकित थीं। क्योंकि इस गांव में पिछले करीब 200 वर्षों से कोई भी महिला चौपाल की सीढ़ियां नहीं चढ़ती थी। गांव की 65 वर्षी महिला संतरा देवी बताती हैं कि वह गांव की चौपाल को बाहर से ही नमस्कार करके निकलती रही हैं, लेकिन वह कभी उसकी सीढ़ियां नहीं चढ़ी। इसे केवल पुरुषों का ही अधिकार समझा जाता है। गांववासी ममता देवी ने बताया कि यह इस गांव के लिए नहीं बल्कि आसपास के गावों के लिए भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। क्योंकि आज यहां वर्षों पुरानी परंपरा टूटी है। बजुर्ग महिला ममता ने बताया कि उन्होंने जीवन में पहली बार महिला-पुरुषों को चौपाल में बैठ कर बातें करते देखा।
गांव के सरपंच विजय पाल यादव बताते हैं कि उनके लिए यह किसी पर्व से कम नहीं था। जिसके चलते बजुर्ग महिला संतरा देवी, ममता व प्रेम देवी ने संयुक्त रूप से रिबन काटकर चौपाल में प्रवेश किया। दिलचस्प बात यह रही की महिलाओं को जब चौपाल में आने के लिए राजी किया गया और उन्हें बताया गया कि अब वह भविष्य में बिना किसी रोक-टोक के चौपाल में चढ़ सकती हैं तो महिलाओं ने बकायदा चौपाल की सीढ़ियों पर चढ़ने से पहले माथा टेका और फिर भीतर प्रवेश किया। विजय कुमार के अनुसार इससे पहले महिलाओं को चौपाल पर बुलाने की किसी की तरह से कोई पहल नहीं की गई। विजयपाल यादव ने कहा कि सुनील जागलान ने इतने विश्वास के साथ इस पुरानी हमारी परंपरा को तुड़वाया कि हमें कोई दुख नहीं हुआ।
लड़कियों के लिए खोले पुस्तकालय
‘सेल्फी विद डॉटर फांउडेशन’ द्वारा भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा गोद लिए गए गुरुग्राम व मेवात के 100 गावों में से 53 गावों में पिछले दो माह के भीतर लाडो पुस्तकालय खोले जा चुके हैं। इन पुस्तकालयों का उदघाटन भी जहां लड़कियों द्वारा किया जाता है वहीं इनका रख-रखाव तथा किताबों की जिमेदारी भी लड़कियों की है।