उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस रावतों की नाराजगी के कारण बीते हफ्ते बेहद परेशान रहे। चुनाव के ऐन मौके पर दोनों रावतों यानी हरक सिंह और हरीश ने अपने दलों के चुनाव अभियान को काफी प्रभावित किया। कांग्रेस के हरीश रावत ने पार्टी के आला नेताओं का सहयोग ना मिलने और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पद को छोड़ कर राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया तो कांग्रेस में देहरादून से लेकर दिल्ली तक हलचल मच गई। भाजपा में इस घटना से खुशी का माहौल देखने को मिला। देहरादून में राहुल गांधी की रैली में उमड़ी भीड़ के बाद जिस तरह से कांग्रेस के पक्ष में राज्य में राजनीतिक माहौल बना था वह हरीश की नाराजगी के कारण रसातल में पहुंच गया।

बीते शुक्रवार की दोपहर में जब दिल्ली में राहुल गांधी के यहां राज्य के बड़े कांग्रेसी नेताओं की बैठक में समझौता वार्ता हो रही थी उसी दिन देहरादून में कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं हरीश रावत और प्रीतम सिंह के समर्थकों के बीच कांग्रेस प्रदेश मुख्यालय में खुलेआम मार पिटाई हो रही थी। इन सब घटनाओं से भाजपा के नेता बेहद खुश नजर आ रहे थे। लेकिन उनकी यह खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई क्योंकि कुछ ही घंटों बाद राज्य के सचिवालय में सत्तारूढ़ भाजपा की पुष्कर सिंह धामी सरकार की कैबिनेट की बैठक में भाजपा के तेजतर्रार नेता कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। इससे भाजपा खुद गहरे राजनीतिक संकट में फंस गई।

इसके बाद भाजपा हरक सिंह को मनाने में लग गई। हरक सिंह अपना मोबाइल बंद करके अज्ञातवास में चले गए। उधर कांग्रेसी नेता इस घटनाक्रम से बेहद खुश नजर आए। इसके बाद भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सरकारी आवास की ओर रात के अंधेरे में जाते हुए नजर आए। मुख्यमंत्री आवास में उन्हें मनाने में मुख्यमंत्री धामी को छह घंटे लग गए। हरक सिंह मुख्यमंत्री से अपने विधानसभा क्षेत्र कोटद्वार के लिए प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज के लिए पांच करोड़ रुपए की बजाय 25 करोड़ रुपए जारी करवाने और जल्दी ही मेडिकल कॉलेज का निर्माण शुरू कराने की बात मनवाने में कामयाब रहे।

हरक सिंह रावत को मनाने के लिए सरकार और शासन को जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने के मानकों को पलटना पड़ा। सरकारी नियमों के अनुसार एक जिले में एक मेडिकल कॉलेज ही खोला जा सकता है। पौड़ी जिले के श्रीनगर में पहले से ही मेडिकल कॉलेज खुला हुआ है जिस कारण सरकारी अधिकारी पौड़ी जिले के कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज मानकों के अनुसार खोलने की अनुमति नहीं दे रहे थे। जब शुक्रवार को धामी मंत्रिमंडल की बैठक में यह प्रस्ताव नहीं आया तो हरक सिंह आगबबूला हो गए और उन्होंने मंत्रिमंडल की बैठक का बहिष्कार करने और इस्तीफा देने की घोषणा कर डाली। आखिरकार हरक भाजपा आलाकमान को अपने दबाव में लेने में कामयाब रहे क्योंकि दो दिन बाद 26 दिसंबर से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को उत्तराखंड में दो दिन के लिए चुनाव समीक्षा के लिए बैठकें करनी थी।

हरीश ने कहा, सोनिया गांधी तय करेंगी मुख्यमंत्री

जिस समय उत्तराखंड में भाजपा में रावत कांड चल रहा था, उस समय दिल्ली में कांग्रेस के हरीश रावत कांड का समापन होने के बाद वे गाजे-बाजे के साथ दिल्ली से देहरादून लौट रहे थे और हरिद्वार की सीमा में उनके समर्थक विजय मुद्रा में हरीश रावत का स्वागत करने में लगे थे। रावत को आखिरकार यह भी कहना पड़ा कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस राज्य में चुनाव लड़ेगी और मुख्यमंत्री दिल्ली में उनकी नेता सोनिया गांधी तय करेंगी।

इस तरह कांग्रेस आलाकमान ने हरीश रावत की मुख्यमंत्री का चेहरा उन्हें घोषित करने की मांग को नहीं माना और भाजपा के हरक सिंह रावत की तरह हरीश रावत कांग्रेस आलाकमान पर अपना पूरा दबाव बनाने में नाकाम रहे। उन्हें थोड़ी बहुत सफलता यह मिली कि वे पार्टी के केंद्रीय प्रभारी देवेंद्र यादव पर पहरेदारी के लिए पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कुलदीप कुमार को उत्तराखंड में लाने में सफल रहे और आखिरकार हरीश रावत को कहना पड़ा कि मैं सोनिया जी से आग्रह करूंगा कि कांग्रेस के सत्ता मे आने पर वे राज्य को एक प्यारा सा मुख्यमंत्री दें।

इस तरह रावत ने यह स्वीकार कर लिया कि वे कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री बनने वाले नहीं है जिससे रावत समर्थकों में बेचैनी है और विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे के बाद क्या राजनीतिक गुल भीतरखाने खिलाते हैं यह तो आने वाला वक्त बताएगा। फिलहाल देखने में आया है कि दिल्ली से लौटने पर हरीश रावत के रोड शो में हरिद्वार की नारसन सीमा से लेकर देहरादून कांग्रेस मुख्यालय तक पार्टी में उनके विरोधी गुट प्रीतम सिंह-रणजीत रावत-किशोर उपाध्याय का एक भी समर्थक शामिल नहीं हुआ। उनके साथ केवल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ही दिखाई दिए और पार्टी हाईकमान का यह फरमान काम नहीं आया कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में सबको साथ लेकर चुनाव अभियान में जुटेगी।