देश में कोरोनावायरस संक्रमण के चलते लगे लॉकडाउन का सबसे बुरा प्रभाव गरीबों और प्रवासी मजदूर वर्ग पर पड़ा है। अब झारखंड से एक रिपोर्ट सामने आई है। इसमें एक सर्वे के आधार पर कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान करीब 48 फीसदी लोगों को पूरे दो महीने का राशन नहीं पहुंच सका, जबकि झारखंड सरकार ने इसका वादा किया था। सर्वे में कहा गया है कि ऐसे 1255 परिवारों की जांच हुई, जहां महिलाएं गर्भवती हैं या हाल ही में मां बनीं हैं और जिन्हें आंगनवाड़ी सपोर्ट की जरूरत है। इसमें पाया गया कि कुल में सिर्फ 1086 परिवारों तक ही फायदे पहुंच सके। इनमें एक-तिहाई परिवारों को तो न्यूट्रिशनल सपोर्ट भी नहीं दिया गया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मिड-डे मील स्कीम की के लिए योग्य करीब 1767 परिवारों का सर्वे हुआ। इनमें 20 फीदी को लॉकडाउन के दौरान कोई फायदा नहीं मिला। यह रिपोर्ट झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत आने वाले सोशल ऑडिट यूनिट ने तैयार की है, ताकि सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करने में पारदर्शिता और जवाबदेही लागू की जा सके।
बताया गया है कि ये ऑडिट राज्य के 23 जिलों और 254 ब्लॉक में किया गया। इसके लिए 27 अप्रैल से 7 मई तक का समय लगा और तीन तरह के खाद्य सुरक्षा योजनाओं (पीडीएडस, आईसीडीएस-आंगनवाड़ी केंद्र और मिड-डे मील प्लान) के तहत आने वाले 4428 परिवारों को सर्वे में शामिल किया गया।
यह रिपोर्ट गुरुवार को ग्रामीण विकास विभाग को सौंपी गई। यह ऑडिट इसलिए और अहम हो जाता है, क्योंकि पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत आने वाले परिवारों का यह अपनी तरह का पहला सर्वे है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोनावायरस महामाारी के अलावा प्रवासी मजदूरों और अन्य समुदायों के लिए भूख बड़ा मुद्दा रही है। इसमें यह भी माना गया है कि झारखंड की बड़ी आबादी गरीबी से प्रभावित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन परिवारों पर सर्वे हुआ, उनमें 2062 को दो और इससे ज्यादा महीनों तक तय सीमा में राशन मिला। हालांकि, 1898 परिवार (करीब 48 फीसदी) को मानकों के अनुसार राशन नहीं मिला। ऑडिट में यह भी पाया गया कि जमतारा के 91.9 फीसदी, पलामू के 73.4 फीदी और दुमका के 65.2 फीसदी परिवारों को दो महीने तक राशन की सही मात्रा नहीं दी गई।