कांग्रेस विधायक ज्ञान सिंह सोहन पाल पहली बार 1962 में चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन उन्हें पराजय का स्वाद चखना पड़ा था। अब 52 सालों और दस बार जीत हासिल करने के बाद पाल अभी भी एक और चुनावी जीत हासिल करने के लिए लालायित हैं। अपने प्रशंसकों के बीच ‘चाचा’ के नाम से जाने जाने वाले 91 वर्षीय पाल इस विधानसभा चुनाव में सबसे बुजुर्ग उम्मीदवार हैं। उन्होंने आइआइटी शहर खड़गपुर से लगातार कई बार जीत हासिल की है। पाल ने बताया,‘खड़गपुर में हर कोई मुझे व्यक्तिगत रूप से जानता है और मैं भी उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं।’
खड़गपुर में मुस्लिम और मलयाली मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा रहता है, जो परंपरागत रूप से उनके मतदाता रहे हैं। कांग्रेस के अजेय प्रत्याशी को राजनीतिक सीमाओं से परे नेताओं के बीच काफी सम्मान प्राप्त है। वह पहली बार विधानसभा के लिए 1969 में जीते थे।
सिद्धार्थ शंकर रे कैबिनेट में पूर्व परिवहन मंत्री रहे पाल इस बार वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन के एक प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। उनका मुकाबला तृणमूल कांग्रेस के रामप्रकाश तिवारी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से है। तृणकां और भाजपा दोनों इस बार इस सीट पर जीत दर्ज करने को लेकर आशांवित हैं।
घोष ने बताया,‘मैं इस जिले का बेटा हूं। खड़गपुर में ज्यादा विकास देखने को नहीं मिला। हम इसे बदलना चाहते हैं और खड़गपुर में विकास की एक नई इबारत लिखना चाहते हैं।’ दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए माकपा और कांग्रेस के बीच के गठबंधन को ‘सिद्धांतहीन’ करार दिया है।
पश्चिम मिदनापुर जिले के तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया,‘राजनीति में भावनाओं का कोई स्थान नहीं है। खड़गपुर के लोग कांग्रेस और माकपा के सिद्धांतहीन गठबंधन को परास्त कर देंगे। कांग्रेस पहले परास्त हो चुकी है और माकपा के साथ गठबंधन से उसे वोट नहीं मिलेगा। वह वोट हमें मिल जाएगा।’
पाल उन गिने-चुने कांग्रेसियों में शामिल हैं जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ मंच साझा किया है। उन्होंने बताया,‘मैं अपने पूरे जीवनकाल में खड़गपुर के लोगों के साथ रहा हूं। ऐसे में मैं इस बार भी चुनाव जीतने को लेकर आश्वस्त हूं। खड़गपुर मेरा जीवन है, मेरा परिवार है।’