सिंधिया घराना हमेशा ही चर्चा में रहा है। चाहे बात आजादी के पहले की हो या फिर बाद की, किसी न किसी वजह से यह परिवार सुर्खियों में बना रहा है। मौजूदा केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया अपने राजनीतिक जीवन में खूब चर्चित रहे। चाहे वो कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का उनका फैसला रहा हो या फिर, पार्टी से बगावत करने अलग राजनीतिक दल बनाना।

आज हम आपको माधवराव सिंधिया का ऐसा ही एक किस्सा बता रहे हैं। दरअसल ग्वालियर राजघराना आजादी से पहले एक स्वतंत्र रियासत था। तब के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादा जी उस जमाने के सबसे अमीर लोगों में से एक थे। ग्वालियर राज्य और इसके राजा के चर्चे सात समुंदर पार ब्रिटेन में भी होते थे।

तुम राजा तो मैं शाह: माधवराव सिंधिया उनके एकलौते बेटे थे। एक बार माधवराव किसी काम से लंदन गए और वहां गलत तरीके से गाड़ी चलाने की वजह से पुलिस ने उनका चालान काट दिया। बचने के लिए माधवराव ने अपना परिचय ग्वालियर के महाराजा के रूप में दिया, लेकिन वह दांव उलटा ही पड़ गया। असल में पुलिसवाले ने ग्वालियर के शासक के बारे में सुन तो रखा था लेकिन उसे यह भरोसा नहीं हुआ कि एक राजा इस साधारण तरीके से पेश आएगा। उसे लगा कि माधवराव झूठ बोल रहे हैं। उसने भी मजाकिया लहजे में कहा कि अगर तुम ग्वालियर के राजा हो तो मैं भी ईरान का शाह हूं, चलो अब चुपचाप चालान कटवाओ और जुर्माना भरो। आखिरकार सिंधिया को चालान की रकम भरने के बाद ही जाने दिया गया।

नहीं मिला लाइसेंस: वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्यप्रदेश में ऐसा ही एक और किस्सा दर्ज है। यह घटना माधवराव सिंधिया के पिता जीवाजीराव सिंधिया और दादा माधाव महाराज की जिंदगी से जुड़ी हुई है। यह तो हम आपको बता ही चुके हैं कि सिंधिया परिवार आजादी से पहले की सबसे अमीर रियासतों में से एक थी। उनका रुतबा भी इतना बड़ा था कि अन्य रियासत और अंग्रेज उन्हें 21 तोपों की सलामी देते थे। माधव महाराज को अपनी रियासत से इतना अधिक लगाव था कि उन्होंने ग्वालियर में सिंधिया रेलवे की शुरुआत की थी। पिता माधव महाराज रियासत में रेलगाड़ी लेकर आए थे और पुत्र जीवाजीराव उनसे एक कदम आगे बढ़ते हुए हवाई जहाज लाए थे।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेज सरकार ने अपने काफी विमानों को बेच दिया था। उन्हीं विमानों में से चार को जीवाजीराव ने खरीद लिया था। हवाई जहाज के इस बेड़े में एक डकोटा था, और तीन इससे छोटे थे। टाइगर माथ नाम का भी एक विमान था जो ट्रेनिंग के काम आता था।

अब रियासत में हवाई जहाज तो आ गया था, लेकिन इसके देखरेख और उड़ाने वाला कोई नहीं था। तो सिंधिया ने इसके लिए ब्रिटिश वायु सेना के रिटायर कैप्टन रॉबर्ट्स को ग्वालियर बुला लिया। कई बार महाराज जीवाजीराव और महारानी विजयाराजे इन विमानों से सफर भी करते थे। धीरे-धीरे जीवाजी राव ने विमान उड़ाना भी सीख लिया था, लेकिन उनकी पत्नी यानी विजयाराजे सिंधिया को जीवाजी का हवाई जहाज उड़ाना पसंद नहीं था, वो इससे डरती थीं।

इसलिए विजयाराजे ने एक नियम बना दिया कि महाराज बिना कैप्टन रॉबर्ट्स के विमान को नहीं उड़ाएंगे। अब इसका नतीजा ये हुआ कि एक अच्छा पायलट होने के बावजूद महाराज जीवाजीराव विमान उड़ाने के लिए लाइसेंस हासिल नहीं कर पाए। क्योंकि विमान के लाइसेंस के लिए अकेले उड़ान भरकर दिखाना होता है। महारानी के नियम के अनुसार महाराज ना कभी अकेले विमान उड़ा पाए, ना ही उन्हें कभी लाइसेंस मिला।