Rajupal Murder Case: पूर्व बसपा विधायक राजूपाल हत्याकांड में लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया। लखनऊ सीबीआई कोर्ट की प्रथम स्पेशल जज कविता मिश्रा ने राजूपाल हत्याकांड में सात आरोपियों को दोषी करार देते हुए 6 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जबकि सातवें को चार साल की सजा सुनाई है। जिन छह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उन सभी पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने फरहान अहमद, इसरार अहमद, रंजीत पाल, जावेद, आबिद गुलशान और अब्दुल कवि को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
राजूपाल की हत्या शादी के नौ दिन बाद कर दी गई थी। राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बना रहा था। बात साल 2003 की है, जब मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी थी। उसी वक्त अतीक की सपा में वापसी हुई थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक ने सपा के टिकट पर फूलपुर से चुनाव लड़ा और सांसद बनकर संसद पहुंचा।
अतीक के सांसद बनने के बाद इलाहाबाद पश्चिम की सीट खाली हो गई थी। अतीक ने अपने भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को मैदान में उतारा, लेकिन वो अपने भाई को जिता पाने सफल नहीं हुआ और राजूपाल ने चार हजार वोटों से जीतकर विधायक बने। बस राजूपाल की यही जीत अतीक को पसंद नहीं आई। उस वक्त अतीक अहमद परिवार के लिए यह एक बड़ा नुकसान था, क्योंकि 2004 के आम चुनावों में अतीक के फूलपुर से लोकसभा सीट जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई थी।
राजू पाल को जिसे कभी अतीक का दाहिना हाथ कहा जाता था। राजू पर भी उस वक्त 25 मुकदमे दर्ज थे। अक्टूबर 2004 में राजू विधायक बने। अगले महीने नवंबर में ही राजू के ऑफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई, लेकिन राजू पाल बच गए। दिसंबर में भी उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई। राजू पाल ने सांसद अतीक से जान का खतरा बताया।
25 जनवरी, 2005 को हुई थी राजूपाल की हत्या
25 जनवरी 2005 को तत्कालीन बसपा विधायक राजू पाल को दिनदहाड़े गोलियों से भून डाला गया था। इस मर्डर ने पूरे शहर को हिंसा की आग में झोंक दिया था। घटना के बाद राजूपाल की पत्नी पूजा पाल ने तत्कालीन सांसद अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ समेत नौ लोगों के खिलाफ प्रयागराज के धूमनगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया था।
विवेचना के बाद पुलिस ने अप्रैल, 2005 में 11 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। इसके बाद विवेचना सीआईडी की अपराध शाखा को सौंप दी गई थी। 2008 में बसपा शासन में अग्रिम विवेचना के दौरान तत्कालीन विवेचक एनएस परिहार ने भी अब्दुल कवि को वांटेड किया, लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी। इस हत्याकांड में फरार आरोपियों ने सेटिंग करके अपनी गिरफ्तारी दी,लेकिन कवि ने सरेंडर नहीं किया। कौशांबी सराय अकिल निवासी अब्दुल कवि पुलिस के लिए एक परेशानी बना रहा। पुलिस और एसटीएफ उस तक नहीं पहुंच पाई। इसके बाद हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इस मामसे की जांच की। सीबीआई ने 17 आरोपियोंं में से केवल 10 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। जिसमें अतीक, अशरफ समेत अब्दुल कवि भी आरोपी बने।