बिहार की राजनीति में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है, अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी। राज्य की कुल आबादी में इस वर्ग की हिस्सेदारी 36.01% है, जो अकेले ही किसी भी दल की किस्मत चमका सकता है।
वर्ष 2023 में हुए जातिगत सर्वेक्षण ने यह स्पष्ट कर दिया कि ओबीसी के साथ मिलकर ईबीसी वर्ग की कुल जनसंख्या बिहार में लगभग 63% है, ऐसे में यह वोट बैंक ‘किंगमेकर’ की भूमिका में आ चुका है। विश्लेषकों का मानना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में ईसीबी मतदाताओं को साधना ही निर्णायक हो सकता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सामाजिक विज्ञान संस्थान (एसएसएस) के शिक्षक विवेक कुमार ने कहा कि इस बात में दो राय नहीं है कि ईबीसी बिहार विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने जा रहा है। लेकिन सवाल ये हैं कि क्या वे अपनी चेतना से मत दे रहे हैं या उन सभी का मतदाता पहचान पत्र बना हुआ है?
विवेक कुमार ने कहा कि हमें ईबीसी में शामिल महिलाओं की विशेष रूप से देखना होगा। महिला परिवार को बिना बताए ‘चुपचाप’ अपनी मर्जी से मतदान कर रही हैं, जो इस चुनाव में बड़ा कारक बनके उभरेगा। इसके अलावा इस वर्ग का युवा भी इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएगा।
यह भी पढ़ें: ‘वो बिहार के अभिभावक हैं, कुछ गलत नहीं कर सकते…’, 20 साल बाद भी नीतीश कुमार क्यों एनडीए के लिए सबसे बेहतर विकल्प हैं?
राज्य की पिछली चुनावी तस्वीर पर नजर डालें तो 2005 में अति पिछड़े वर्ग ने नीतीश कुमार को जबरदस्त समर्थन दिया था, जिससे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 143 सीटों की सफलता मिली। 2010 में यह समर्थन बढ़कर लगभग 70% तक पहुंच गया और एनडीए को 206 सीटें मिलीं। लेकिन 2015 और 2020 के चुनावों तक यह समर्थन घटकर 65–70% रह गया। यही कारण है कि राजद अब इन मतदाताओं में बढ़त हासिल करने की कोशिश में है।
2005 से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मजबूत सामाजिक आधार रहा यह वर्ग अब धीरे-धीरे नए राजनीतिक समीकरणों में खींचता दिख रहा है। राजद, कांग्रेस और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी इस वर्ग में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही हैं।
EBC को आकर्षित करने के लिए महागठबंधन ने क्या किया?
राजद ने तो हाल ही में मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर, अभय कुशवाहा को लोकसभा में पार्टी का नेता और रणविजय साहू को प्रदेश महासचिव बनाकर ‘पिछड़ा कार्ड’ को मजबूत करने का संकेत दिया है। महागठबंधन ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के मुकेश साहनी को उप मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी ईसीबी के मतों को ध्यान में रखते हुए किया है।
EBC में 130 से अधिक उप-जातियां
ईबीसी के भीतर लगभग 130 से अधिक उप-जातियां आती हैं। हालांकि, ईसीबी श्रेणी में किसी भी एक जाति का अकेला हिस्सा तीन फीसद से ज्यादा नहीं है। मुसलिम जातियों में जुलाहा ही एकमात्र ऐसी जाति है, जिसकी मौजूदगी काफी है। यह कुल आबादी का 3.5% है। सात अन्य जातियां- नोनिया, चंद्रवंशी, नाई, बरहाई, धुनिया (मुसलिम), कुम्हार और कुंजरा (मुसलिम) की आबादी दो फीसद से कम है।
इनकी प्रवृत्ति ‘सपोर्ट माडल’ वाली रही है, यानी जिस दल की योजनाओं से लाभ मिले, ये उसी के पक्ष में झुक जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2025 के विधानसभा चुनाव में सत्ता का असली फैसला यही वर्ग करेगा। अगर ईबीसी मतदाता साथ आए तो किसी भी दल के लिए सत्ता का रास्ता आसान हो सकता है, लेकिन अगर ये बिखरे रहे तो मुकाबला पहले से ज्यादा त्रिकोणीय हो जाएगा।
यह भी पढ़ें: सुरक्षित सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला, पिछले चुनाव में बीजेपी का पलड़ा रहा था भारी
