केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि खुले स्थानों पर शराब पीने को तब तक गुनाह नहीं माना जा सकता है, जब तक वहां किसी तरह की असामान्य हरकत न हो रही हो। अगर आम लोगों को उससे कोई समस्या या परेशानी नहीं हो रही है या पीने वाला कोई परेशानी नहीं खड़ा कर रहा है या वह कोई ऐसी हरकत नहीं कर रहा है जिससे किसी को दिक्कत हो, तो ऐसा करना गलत नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल मुंह से गंध आने की वजह से किसी को यह नहीं कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति नशे में है या किसी शराब के प्रभाव में है।”
इसको लेकर याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही कार्यवाही को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति सोफी थॉमस ने यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता पर केरल पुलिस अधिनियम की धारा 118 (ए) के तहत कथित तौर पर एक पुलिस स्टेशन में शराब के नशे में पेश होने पर मामला दर्ज किया गया था। उसे एक अपराधी की पहचान करने के लिए बुलाया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आई.वी. प्रमोद, के.वी. शशिधरन और सायरा सौरज ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक ग्राम सहायक है और उसे शाम 7:00 बजे स्टेशन पर बुलाया गया था। उनका मामला यह है कि पुलिस अधिकारियों ने उसके खिलाफ केवल इसलिए अपराध दर्ज किया, क्योंकि वह आरोपी की पहचान करने में विफल रहा, और आरोप लगाया कि यह उसके खिलाफ झूठा मामला था। इस आधार पर उन्होंने चार्जशीट रद्द करने की मांग की।
पुलिस अधिकारी की याचिका खारिज
उधर, केरल उच्च न्यायालय ने 1994 में जासूसी के एक मामले में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को गलत तरीके से फंसाने वाले पुलिस के एक पूर्व अधिकारी की याचिका सोमवार को खारिज कर दी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि नारायणन ने उनके खिलाफ दर्ज मामले में सीबीआई की जांच को प्रभावित किया था।
केरल पुलिस के पूर्व अधिकारी एस विजयन ने आरोप लगाया था कि नारायणन ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के तत्कालीन जांच अधिकारियों के साथ करोड़ों रुपए का भूमि सौदा कर एजेंसी की जांच को प्रभावित किया था। न्यायमू्र्ति आर नारायण पिशारदी ने विजयन की याचिका खारिज कर दी। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है।
विजयन और केरल के 17 अन्य पूर्व पुलिस एवं इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारियों के खिलाफ 1994 में नारायणन और कुछ अन्य को कथित तौर पर झूठे तरीके से फंसाने के आरोप में सीबीआई की जांच जारी है।
