चर्चा आम हैं कि ‘हम करें तो ठीक और आप करें तो गलत’ ! दरअसल दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने अन्य राज्यों के अपने समकक्षों के साथ वीडियो-कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से एक बैठक कर उनके यहां से पुरानी और बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र वाली बसें नहीं भेजने की नसीहत दे डाली ।

बात यहीं नहीं रूकी। उनसे आठ साल से अधिक पुरानी बसें दिल्ली नहीं भेजने का आग्रह किया है। प्रदूषण बढने का हवाला दिया गया। लेकिन यह नसीहत देते समय अधिकारी यह भूल गए कि दिल्ली में परिवहन निगम की हजारों बसें 12 साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं और लाल-हरे रंग में सड़कों पर रेंग रहीं है।

यह अलग बात है कि ये सीएनजी चालित हैं, लेकिन यहां यह भी याद रखना होगा कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में क्रमश: 10 साल और 15 साल से कम पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों के परिचालन की अनुमति दी है। किसी ने ठीक ही कहा- अगर पड़ोसी राज्यों ने दिल्ली सरकार के फैसले को तत्काल अमल में ले लिया तो संभव है कि दिल्ली से अन्य राज्यों का आवागमन ही न चरमरा जाए! क्योंकि दिल्ली सरकार की अंतरराज्यीय बस सेवा की हालत वैसे ही चरमरा चुकी है और नई बसें खरीदना बस सपना ही है।

बड़ी-बड़ी बातें

दिल्ली पुलिस की लाइसेंसिग इकाई अत्याधुनिक तकनीकों से लैस है। यहां हथियार रखने वाले को जो लाइसेंस दिया जाता है उसे डिजीलाक में रखने का बंदोबस्त किया गया है। ज्यादातर मामले का निबटारा आनलाइन हो रहा है। ‘ईज आफ डूर्इंग’ को प्राथमिकता और कम से कम दफ्तर आने और लाइन में खड़े होने का बंदोबस्त किया गया है। लेकिन लाइसेंसिग इकाई के इन दावों का असर दिखता नहीं है।

वह भी तब जब दिल्ली के उपराज्यपाल साइबर जागरूकता दिवस पर दिल्ली पुलिस के साइबर उदय 2.0 की शुरुआत पर पहुंचे थे। यहां बेदिल को दावों के बीच सालों से दफ्तर के चक्कर काट रहे लोग मिल गए जिनके लिए इस पुख्ता बंदोबस्त के कोई मायने नहीं दिखे।

टूट गया भ्रम

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के नामी दो औद्योगिक विकास प्राधिकरण नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ऊंचे पद पर बैठे अधिकारियों को मंत्री स्तर से निलंबित किए जाने के मामले चर्चा में रहे थे। अधिकारियों के पक्ष और विपक्ष में लोगों ने जमकर तर्क भी दिए थे। निलंबन की खबर मीडिया में भी खासी चर्चा में रही।

अब एक-एक कर उन अधिकारियों को जांच में निष्पक्ष साबित कर दोबारा प्राधिकरणों में भी ज्यादा अधिकारों के साथ तैनाती अपने आप में काफी कुछ बयां कर रहा है। नेता नगरी में पैठ रखने वाले ताकतवर पदों पर बैठे अधिकारियों के निलंबन पर जो लोग भ्रष्टाचार पर हमले को लेकर संतुष्ट हुए थे वे ज्यादा ताकत के साथ फिर मिली तैनाती के बाद सदमे में हैं। उनका एक सुशासन वाली सरकार को लेकर भ्रम टूट सा गया है।

नियम हुए पराए

अकसर देखा जाता है कि जिनके कंधों पर नियम-कानून बनाने की जिम्मेदारी होती है वही नियमों की अनदेखी करने में हमेशा आगे रहते हैं। बीते दिनों एक ऐसा ही वाकया राजधानी में दिखा, जब सत्ता पर काबिज पार्टी के कई विधायकों और जनप्रतिनिधियों ने दशहरा के मौके पर विरोध जताने के लिए कूड़े के रावण का दहन किया। हैरानी की बात यह है कि एक जगह नहीं कई जगह किया गया।

ऐसा करते वक्त विधायक और नेता जी शायद भूल गए थे कि राजधानी में बढ़ते प्रदूषण की वजह से ‘ग्रैप’ लागू किया गया है। पर कहते हैं सत्ता के नशे में नियमों की अनदेखी करना कोई मुश्किल काम नहीं। हालांकि विपक्ष के प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाने पर उनको अपने किए पर शर्म आई लेकिन दिखी नहीं।

कंस और कृष्ण

चुनाव के बीच में देवी-देवताओं को लाना नई बात नहीं है, लेकिन नई तरह की राजनीति का दावा करने वाले भी अपने फायदे के लिए इनकी शरण में जाने से नहीं बचते हैं। भगवान श्रीराम के बाद अब गुजरात की राजनीति में श्रीकृष्ण को चर्चा में लाए हैं दिल्ली आम आदमी पार्टी के संयोजक। उन्होंने दावा कर दिया कि उनका जन्म श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुआ है और उनको बदनाम करने के लिए आसुरी शक्तियां एकजुट हो गई हैं।

उन्होंने यह तक कह दिया कि उन्हें यहां कंस की औलादों का सफाया करने के लिए भेजा गया है। अब मामला किसी धर्म का है तो एक पार्टी ने इस पर अपना जवाब तैयार कर लिया। उन्होंने 1968 का कैलेंडर ही जारी कर दिया। उन्होंने संयोजक के बयान को झूठा बता दिया। अपने नेता का बचाव करने के लिए एक अन्य नेता भी उतर आए और उन्होंने कैलेंडर जारी करने वाली पार्टी पर तंज कर दिया कि कंस की औलाद परेशान हैं कि कैसे जन्माष्टमी की तारीख बदली जाए।
-बेदिल