Dhar Bhojshala Survey: मध्य प्रदेश के धार जिले के भोजशाला का ज्ञानवापी की तरह सर्वे किया जाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग शुक्रवार से सर्वेक्षण शुरू करने जा रहा है। सर्वे के दौरान मुख्य रूप से यह बात सामने आ सकती है कि यहां किस तरह के सिंबल हैं। यहां पर किस तरह की वास्तुकला है? साथ ही यह भी साफ हो जाएगा कि इसकी उम्र कितनी है।
कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को भोजशाला में सर्वे करने का आदेश दिया था। यह याचिका हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने दायर की थी। याचिका में मांग की गई है कि मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोका जाए और हिंदुओं को नियमित रूप से पूजा करने का अधिकार दिया जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने एएसआई को सर्वे करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने इससे पहले सभी पक्षों को सुनने के बाद फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हिंदू पक्ष ने किया दावा
खास बात यह है कि भोजशाला विवाद काफी पुराना है। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यह देवी सरस्वती का मंदिर है। सदियों पहले मुसलमानों ने इसकी पवित्रता को भंग करते हुए मस्जिद बनवाई थी। आज भी वहां देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में लिखे श्लोक मौजूद हैं। भोजशाला में रखी हुई देवी सरस्वती की मूर्ति को अंग्रेज अपने साथ लंदन ले गए।
इस दिन तक रिपोर्ट सौंपने का आदेश
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि परिसर की एएसआई जांच की जांच जानी चाहिए। ताकि, यह पता लगाया जा सके कि जमीन के ऊपर और नीचे की संरचना कितनी पुरानी है। साथ ही, उनकी उम्र का भी पता लगाया जा सके। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब सर्वे किया जाए तो दोनों पक्षों मौजूद रहने चाहिए और पूरे सर्वे की वीडियोग्राफी भी की जानी चाहिए। कोर्ट इस मामले में अपनी सुनवाई 29 अप्रैल को करेगा। इससे पहले ही एएसआई को अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है।
क्या है भोजशाला
11वीं शताब्दी में मध्य प्रदेश के धार जिले में परमार वंश का राज हुआ करता था। 1000 से 1055 ईसवी तक राजा भोज धार के शासक हुआ करते थे। वह देवी सरस्वती के बहुत बड़े भक्त थे। 1034 ईस्वी में राजा भोज ने एक महाविद्यालय की स्थापना की थी। यह बाद में भोजशाला के नाम से जाना गया। इस पर हिंदू धर्म के लोग आस्था रखते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने 1305 ईस्वी में भोजशाला को नष्ट कर दिया था। 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। 1875 में खुदाई करने पर यहां से मां सरस्वती की एक मूर्ति निकली थी। इसे बाद में मेजर किंकैड लंदन लेकर चले गए।