नगर निगम की 13 सीटों पर होने वाले उपचुनाव ने दिल्ली की सियासत को एक बार फिर गर्म कर दिया है। दिल्ली सरकार साल भर से इस चुनाव को टाल रही थी, लेकिन हाई कोर्ट ने उपचुनाव कराने का आदेश दे ही दिया। 15 मई को होने वाले इस चुनाव को दिल्ली के करीब 6.5 लाख मतदाताओं का सैंपल सर्वे माना जा रहा है। चुनाव के नतीजे 19 मई को आने वाले हैं।
हालांकि इससे भी बड़ा राजनीतिक तूफान 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के कारण मिले चुनाव आयोग के कारण बताओ नोटिस से मचा हुआ है। दिल्ली सरकार ने नोटिस का जवाब देने के लिए चुनाव आयोग से छह हफ्ते का समय और मांगा है। मुख्यमंत्री और आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल एक ओर तो निगम उपचुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने संसदीय सचिव के पद को लाभ का पद न मानने का बिल विधानसभा में पास करवा लिया है। चुनाव आयोग इस बिल से सहमत होगा या नहीं, यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन अगर 21 विधायकों की सदस्यता रद्द हुई तो दिल्ली की राजनीति में भूचाल जरूर आ जाएगा।
फिलहाल 272 सीटों वाले निगमों की 13 सीटों पर होने वाले उपचुनाव ने सभी दलों को सक्रिय कर दिया है। 2013 के विधानसभा चुनाव में छह पार्षदों और फरवरी 2015 के विधानसभा चुनाव में सात पार्षदों के विधायक बनने से निगम की 13 सीटें खाली हो गई थीं। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें पूर्वी दिल्ली नगर निगम की दो सीटें-झिलमिल व खिचड़ीपुर, उत्तरी नगर निगम की चार सीटें- वजीरपुर, शालीमार बाग, कमरुद्दीन नगर व बल्लीमरान और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की सात सीटें- मटियाला, भाटी, नानकपुरा, मुनीरका, नवादा, तेखंड व विकास नगर शामिल हैं। 2012 के निगम चुनाव में तीनों निगमों में भाजपा की जीत हुई थी। जिन 13 पार्षदों के विधायक बनने से ये सीटें खाली हुई हैं उनमें छह भाजपा के और सात आप के विधायक हैं।
राजनीतिक दलों के साथ-साथ इन सीटों से विधायक बने नेताओं के लिए भी यह उपचुनाव परीक्षा की घड़ी है क्योंकि इससे यह साबित हो जाएगा कि उनके अपने इलाके में उनकी कितना लोकप्रियता है। आम आदमी पार्टी(आप) और कांग्रेस ने उपचुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं और भाजपा कभी भी उम्मीदवारों की घोषणा कर सकती है।
भाजपा में पार्षद से विधायक बने नेताओं को ही फिर से टिकट देने की चर्चा है। मार्च 2017 में निगमों का आम चुनाव भी होना है, ऐसे में कई नेता दस महीने के लिए चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते। नगर निगम की सीटों का परिसीमन हो रहा है और यह काम जुलाई तक पूरा हो जाएगा। भले ही इसमें कुछ देरी हो, लेकिन यह तो तय है कि निगमों के आम चुनाव नए परिसीमन पर ही होंगे।
तब ये सीटें वजूद में नहीं रहेंगी और इन सीटों का नए सिरे से आरक्षण भी हो जाएगा। इस उपचुनाव का महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि इसका असर निगमों के आम चुनाव पर होगा। अगर आप के 21 विधायकों की सदस्यता चली जाती है तो उन सीटों पर भी उपचुनाव होगा और दिल्ली की राजनीति से सर्वाधिक प्रभावित रहने वाले पंजाब के विधानसभा चुनाव पर इसका ज्यादा असर होगा। इसलिए सभी दल चुनाव में पूरी ताकत झोंकने वाले हैं।
2013 के विधानसभा चुनाव में 2012 में भाजपा के टिकट पर विधायक बने राम किशन सिंघल (शालीमार बाग), अनिल शर्मा (रामकृष्ण पुरम), राजेश गहलौत (मटियाला), महेंद्र नागपाल(वजीरपुर) और जितेंद्र सिंह शंटी (शाहदरा) के अलावा विनोद कुमार बिन्नी (कोंडली) विधायक बने। बिन्नी आप के टिकट पर विधायक तो बने, लेकिन कुछ अनबन के कारण वह बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
इन सभी उम्मीदवारों को 2015 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। यानी अगर पार्टी चाहे तो इन सभी को फिर से निगम का चुनाव लड़ना पड़ सकता है। आप में भी ये सभी नेता दूसरे ही दलों से आए। कमरुद्दीन नगर के पार्षद व नांगलोई के विधायक रघुविंदर शौकीन तो भाजपा से ही आप में आए। उसी तरह बल्लीमरान से पार्षद व विधायक इमरान हुसैन पहले लोक दल के टिकट पर पार्षद बने थे। विकास नगर से पार्षद व विकासपुरी से विधायक महेंद्र यादव, नवादा से पार्षद व उत्तम नगर से विधायक नरेश बालियान और मुनीरका से पार्षद व रामकृष्ण पुरम से विधायक प्रमिला टोकस निर्दलीय थे। ताखंड से पार्षद व तुगलकाबाद से विधायक सहीराम पहलवान बसपा में और भाटी से पार्षद व छतरपुर से विधायक करतार सिंह तंवर भाजपा के पार्षद थे। हालांकि इन सभी नेताओं का अपने इलाके में कितना असर है इसकी परख तो 15 मई के उपचुनाव में ही हो सकेगी।

