दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को आम आदमी पार्टी सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि क्या सम विषम वाहन योजना को एक सप्ताह तक जारी रखना पर्याप्त नहीं होगा। एक जनवरी से शुरू यह योजना 15 जनवरी तक निर्धारित है। हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ के पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि उसके पास लोगों के आवागमन के लिए पर्याप्त सार्वजनिक वाहन नहीं हैं जिससे बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
अदालत ने कहा, ‘क्या ये छह दिन आपके लिए पर्याप्त नहीं हैं? हमने सरकार को यह योजना एक सप्ताह चलाने की अनुमति दी थी, जिस दौरान उन्हें दिल्ली में प्रदूषण के स्तर से जुड़े आंकड़े एकत्र करने होंगे।’ हाई कोर्ट ने हालांकि इस मामले की सुनवाई की तारीख जनवरी निर्धारित कर दी, तब तक उसने सरकार को यह निर्देश लेने के लिए कहा कि क्या यह पायलट परियोजना 15 दिनों की बजाए सिर्फ एक सप्ताह तक चलाई जा सकती है।
हाई कोर्ट ने सरकार से एक जनवरी से सात जनवरी के बीच प्रदूषण के स्तर में आए बदलाव का आंकड़ा उपलब्ध कराने को भी कहा। पीठ ने कहा, ‘इन छह दिनों में आप प्रदूषण के स्तर का आंकड़ा इकट्ठा करें, हम समझते हैं कि यह आपके लिए पर्याप्त है। आपको काफी संख्या में लोगों को हो रही असुविधा के बारे में सोचना चाहिए। इसमें बुनियादी कठिनाई है।’ इसमें कहा गया है कि अदालत नीतियों में हस्तक्षेप नहीं करती है लेकिन सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए कि लोग असुविधा के कारण उसका दरवाजा खटखटा रहे हैं।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘आपको (अदालत) इसके बारे में सोचना चाहिए। आपकी स्थिति रिपोर्ट अस्पष्ट है और इसमें काफी कुछ सामने नहीं आ रहा है। पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं है। क्या यह वास्तव में 15 दिनों के लिए जरूरी है?’
अदालत ने सरकार से यह भी जानना चाहा कि राष्ट्रीय राजधानी में कितनी संख्या में कैब डीजल और कितने सीएनजी चलित हैं और इनके प्रदूषण का स्तर क्या है। हाई कोर्ट का यह निर्देश वकीलों समेत विभिन्न लोगों की ओर से दायर याचिकाओं पर सामने आया जिसमें 28 दिसंबर 2015 की आप सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी जो सम विषम वाहन व्यवस्था से संबंधित थी।
दिल्ली हाई कोर्ट बार संघ के अध्यक्ष राजीव खोसला की ओर से दाखिल एक याचिका में अधिसूचना को रद्द किए जाने की मांग करते हुए दिल्ली सरकार से इस बारे में स्पष्टीकरण देने की मांग की गई है कि उसे मोटर वाहन अधिनियम में जरूरी संशोधन किए बिना योजना का उल्लंघन करने वालों पर दो हजार रुपए का जुर्माना लगाने का क्या अधिकार है। याचिकाकर्ताओं का विरोध करते हुए वरिष्ठ स्थायी वकील राहुल मेहरा ने कहा, ‘योजना केवल 15 दिन के लिए है और जनता को हो रही असुविधाओं से राज्य सरकार भी उतनी ही दुखी है।’
योजना से महिलाओं और दोपहिया वाहनों को छूट क्यों दी गई है, अदालत के इस सवाल का जवाब देते हुए दिल्ली सरकार ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वह महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और दोपहिया वाहनों पर सम-विषम योजना लागू करने से होगा यह कि अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन के चलते परिवहन व्यवस्था ठप हो जाएगी।
दिल्ली सरकार के वकील ने कहा, ‘मोटर कारों को उनके रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर एक दिन छोड़ कर सड़कों पर चलने की इजाजत होने से सार्वजनिक परिवहन के साधनों (मेट्रो और बसों) में भीड़ बढ़ने की संभावना है।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए महिला सुरक्षा से कोई समझौता नहीं हो, यह सुनिश्चित करने के लिए महिला चालकों वाले वाहनों को छूट दी गई है।’
आप सरकार के स्थायी वकील मेहरा ने बच्चों और नवजातों में सांस संबंधी समस्याओं की बात रेखांकित करते हुए कहा, ‘हम दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर में हैं।’ इस पर मुख्य न्यायाधीश ने बीच में कहा, ‘फिलहाल आप जनता को अधिक असुविधा दे रहे हैं।’
मुख्य न्यायाधीश की बात का जवाब देते हुए मेहरा ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार जो भी कर रही है, जनता के हित में कर रही है। उन्होंने कहा, ‘हमें अगली पीढ़ी के भविष्य को ध्यान में रखना होगा। पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन पर विचार कर रही है। हमें भी कदम बढ़ाना होगा। भारत के प्रधान न्यायाधीश और इस अदालत के कुछ न्यायाधीश भी योजना का समर्थन कर रहे हैं।’
पीठ ने वरिष्ठ नागरिकों को दी गई छूट पर और कार-पूलिंग की व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा किया और दलील दी कि इस प्रणाली को सुरक्षित नहीं कहा जा सकता और दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में इसका दुरुपयोग हो सकता है। अदालत ने दिल्ली सरकार से हलफनामा दाखिल कर सार्वजनिक परिहवन के साधनों में विकलांग लोगों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं का उल्लेख करने को कहा।
* पीठ ने कहा, ‘इन छह दिनों में आप प्रदूषण के स्तर का आंकड़ा इकट्ठा करें, हम समझते हैं कि यह आपके लिए पर्याप्त है। आपको काफी संख्या में लोगों को हो रही असुविधा के बारे में सोचना चाहिए। इसमें बुनियादी कठिनाई है।’
* हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत नीतियों में हस्तक्षेप नहीं करती है लेकिन सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए कि लोग असुविधा के कारण उसका दरवाजा खटखटा रहे हैं।