सर्दियों में राजधानी की हवा खराब न हो, इस दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं। दस साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल युक्त वाहनों को एक जुलाई से ईंधन नहीं देने का फैसला पहले ही लिया जा चुका है। इस कड़ी में अब दिल्ली सरकार भीड़ वाली सड़कों से गुजरने वाले वाहनों पर भीड़भाड़ (कंजेशन)कर लगाने की तैयारी कर रही है।

पहले चरण में शहर की भीड़भाड़ वाली 250 जगहों को चिह्नित किया गया है। दिल्ली के परिवहन मंत्री पंकज कुमार सिंह ने बताया कि अभी इस पर अंतिम निर्णय होना बाकी है। किस तरीके से इस योजना को लागू किया जाएगा, इस पर अभी कार्ययोजना तैयार की जाएगी। विभागों के साथ बातचीत करके इसको लेकर एक विस्तृत योजना तैयार की जा रही। इसके बाद ही आगे की कोई कार्यवाही की जाएगी।

प्रदूषण को देखते हुए लिया जा सकता है निर्णय

दिल्ली सरकार के सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता में पर्यावरण विभाग की अहम बैठक आयोजित की गई। इसमें प्रदूषक के बड़े कारकों में शामिल वाहन उत्सर्जन को कम करने के मसले पर भी चर्चा की गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि दिल्ली के सीमा क्षेत्र (बार्डर एरिया) पर वाहनों की लगने वाली लंबी कतार और भीड़भाड़ को रोकने के साथ साथ स्थिति पर बारीकी नजर रखने को परिवहन विभाग और दिल्ली नगर निगम की प्रवर्तन टीमों को तैनात किया जाएगा। यह टीम सीमा क्षेत्र पर अतिक्रमण को भी किस तरह से हटाया जाए, इस पर काम करेंगी।

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सूत्र बताते हैं कि परिवहन विभाग को निर्देश दिए हैं कि वह वाहनों की भीड़भाड़ वाले और जाम वाले इलाकों में भीड़ कर वसूल करने वाले निर्णय की कार्ययोजना को लागू करने पर काम करें। यह निर्धारित चरम समय (पीक आवर्स) के दौरान ही लागू किया जाएगा। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि दिल्ली यातायात पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वह इस पूरे मामले पर हर माह कार्रवाई रपट भी सबमिट करेंगी।

पहले भी लिया जा चुका है ऐसा निर्णय

यह कर केवल दिल्ली की इन चुनिंदा सड़कों पर ही लगाया जाएगा। बताया जाता है कि मोटर वाहन अधिनियम में इस तरह का कर लगाने का प्रावधान भी है। बताया जाता है कि इस भीड़भाड़ कर से दोपहिया वाहन और इलेक्ट्रिक वाहनों को बाहर रखा जाएगा और इससे जो राजस्व मिलेगा, उसको परिवहन प्रणाली को दुरुस्त करने का काम किया जाएगा। वर्तमान में दिल्ली में 13 सीमा क्षेत्र हैं।

भीड़ कर लगाने का निर्णय पहली बार नहीं लिया जा रहा है। इससे पहले भी दिल्ली की कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में भी 2009 में इस तरह का निर्णय लिया गया था, जिसको लागू नहीं किया सका। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) योजना बोर्ड ने भी साल 2018 में इस शुल्क को लगाने की योजना बनाई थी। लेकिन यह लागू नहीं हो पाया था। केंद्र सरकार का आवासन एवं शहरी विकास मंत्रालय की एक संसदीय कमेटी भी इसको लागू करने की पूर्व में सिफारिश कर चुकी थी। बावजूद इसके यह अभी तक अधर में ही लटका है।