रक्षाकर्मियों और नौकरशाहों की रैंक में अंतर को दूर करने की मांग करते हुए सदस्यों ने मंगलवार को कहा कि देश की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान करने वालों के साथ यह भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए बीजू जनता दल के एयू सिंहदेव ने कहा कि सेना में 27 साल तक अपनी सेवाएं देने वाले ब्रिगेडियर की रैंक निदेशक स्तर के उस आइएएस अधिकारी के बराबर होती है जिसकी नौकरी को 12 साल हुए हों। इसी तरह सेना में 34 साल तक सेवाएं देने वाले मेजर जनरल की रैंक 18 साल तक सेवाएं देने वाले संयुक्त सचिव के समकक्ष होती है।
सिंहदेव ने कहा, ‘क्या यह विसंगति समुचित है।’ उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से एक के बाद एक हुए युद्धों में कमांडर इन चीफ की रैंक कमतर हो गई। अमेरिका में रक्षा मंत्रालय और अन्य पश्चिमी देशों में रक्षा मंत्रालय में सैन्य अधिकारियों को लिया जाता है, लेकिन भारत में इसे नौकरशाह चलाते हैं। यह खामी दूर की जानी चाहिए।
बीजद नेता ने कहा कि सांसदों और विधायकों को संसद या विधानसभा में दो तीन साल तक रहने के बाद पेंशन मिलने लगती है, लेकिन एक जवान को पेंशन पूरे 15 साल की नौकरी के बाद मिलती है। यह विसंगति ही है। उन्होंने मांग की कि सेना में 35 साल की उम्र होने के बाद सिपाही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इन सेवानिवृत्त सिपाहियों को अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस बलों में ले लिया जाना चाहिए।
कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि रक्षाकर्मियों और नौकरशाहों की रैंक में अंतर उचित नहीं है और इसे जल्द दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा सरकार ने वारंट आॅफ प्रेसीडेंस जारी किया जिससे सांसदों की रैंक प्रधानमंत्री के निजी सचिव से नीचे हो गई।
उपसभापति पीजे कुरियन ने कहा कि सांसदों को दो या तीन साल बाद ही पेंशन मिलने लगती है, लेकिन जवानों को 14 साल, 364 दिन की सेवा से पहले यह पेंशन नहीं मिलती। उन्होंने कहा, ‘यह सही नहीं है। मैं यह सवाल उठाता हूं।’ कुरियन ने संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से कहा कि वे रक्षा मंत्री को सदन की भावना से अवगत कराएं।