मनोज मिश्र

आम आदमी पार्टी (आप) में आया तूफान थमता नहीं दिख रहा है। बुधवार की शाम राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में बहुमत से वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से हटाने का फैसला हुआ था। जिस तरह से उन्हें खुलेआम मतदान कराकर हटाया गया उससे मतदान में हिस्सा न लेने वाले वरिष्ठ नेता मयंक गांधी आहत हैं। कार्यकारणी के बैठक पर अधिकृत प्रवक्ता कुमार विश्वास और पंकज गुप्ता के अलावा किसी के न बोलने की पाबंदी को तोड़ते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर चौंकाने वाली जानकारी दी है।

इससे साबित होता है कि पार्टी संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ होने का दावा करने वाले नेता यह तय करके आए थे कि वे दोनों नेताओं को अपमानित करके पीएसी से बाहर निकालेंगे। अन्यथा दोनें नेताओं के खुद के इस्तीफा देने या बिना अधिकार दिए उन्हें पीएसी में बनाए रखने का विकल्प देने या सभी को इस्तीफा देकर नई पीएसी बनाने का अधिकार पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को सौंपने पर सहमति क्यों नहीं बनाई गई। यह तब हुआ जब यादव और भूषण ने केजरीवाल के संयोजक से इस्तीफे पर मतदान कराने का विरोध किया और सर्वसम्मति से उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया।

पंकज गुप्ता ही नहीं यादव और प्रशांत भूषण को वोट देने वालों का नाम सार्वजनिक होने के बाद यह भी तय माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में उन लोगों पर भी केजरीवाल की बात न मानने के लिए गाज गिराई जा सकती है। केजरीवाल अपना इस्तीफा भेजकर दिन भर सचिवालय में रहे और उनके करीबी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और संजय सिंह उनके नाम पर जोड़तोड़ करते रहे। मयंक गांधी ही नहीं कार्यकारणी के दूसरे सदस्य भी बताते हैं कि जब इस बात पर सहमति सी बनने लगी कि अभी कोई फैसला सार्वजनिक करने के बजाए बाकी विकल्पों पर बात की जाए तो मनीष सिसोदिया बैठक से बाहर निकले और दिल्ली के नेताओं आशुतोष, आशीष खेतान, दिलीप पांडेय से बातचीत की और वापस खुला मतदान करवाने को कहा। उसका संजय सिंह ने समर्थन किया। पक्ष और विपक्ष में मतदान करने वालों का नाम बाकायदा लिखा गया।

यादव और भूषण के अलावा आनंद कुमार, अजीत झा, राकेश सिन्हा, सुभाष वारे, आश्वस्त गुप्ता और क्रिस्तीना ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया। कार्यकारणी में अभी 21 सदस्य हैं। उनके अलावा पांच सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं। चार गैरहाजिर थे जबकि तीन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। उनमें एक कुमार विश्वास थे जो बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। दूसरे मयंक गांधी ने नाराजगी से वोट नहीं किया और तीसरा वोट न करने वाले सदस्य कृष्णकांत बताए जा रहे हैं।

विवाद इसलिए भी कम नहीं हो रहा है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण केवल आप के दो नेताओं के नाम नहीं हैं। पार्टी को खड़ा करने से लेकर उसे देश भर में पहुंचाने का बड़ा काम किया और देश भर में उनकी अपनी पहचान भी है।
विवाद की शुरुआत लोकसभा चुनाव के समय से ही शुरू हो जाने के बावजूद यादव और भूषण का प्रयास मामले को ढकने का था। इन लोगों के प्रयास से जो लोग जुड़े वे वैचारिक रूप से भी केजरीवाल के कई खास लोगों से अलग है।

अब तो यह भी लगने लगा है कि कहीं यह विचारधारा की लड़ाई में न बदल जाए। राजनीतिक सूझबूझ वाले यादव और भूषण के असर से ही कार्यकारणी में उनका बहुमत माना जा रहा था। इसलिए आरोप यह भी लगने लगा है कि कार्यकारणी में मतदान के लिए भी सरकारी प्रलोभन दिए गए। पिछले विधानसभा चुनाव से इस चुनाव में टिकट बांटने की प्रक्रिया बदली गई और हर तरह से संपन्न उम्मीदवारों को टिकट देने का लाभ पार्टी को मिला। जबकि दागदार लोगों को टिकट देने का भारी विरोध हुआ। यह मुद्दा बुधवार को भी प्रशांत भूषण ने उठाया। चुनाव में दो करोड़ रुपए कालाधन का मुद्दा भी उठा। चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने की मांग हुई। पैसे लेकर टिकट देने तक के आरोप लगे।

पार्टी को ज्यादा नुकसान एक-दूसरे पर अविश्वास करने से ही हुआ। इसी कारण सीधे संवाद के बजाए पत्र से संवाद होने लगा। यादव के पत्र के जवाब में मनीष सिसोदिया का पत्र, फिर माफी और कुल मिलाकर यह साबित सा हो गया कि मनीष जो लिख रहे हैं उसमें कहीं न कहीं केजरीवाल की सहमति है। इसीलिए तो इन नेताओं के तमाम प्रयास के बावजूद पार्टी ने दिल्ली से बाहर चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इतना ही नहीं, भाजपा के कुछ नेताओं के कांग्रेस और आप के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाने के प्रयास से डरे आप के नेता 20 मई को उपराज्यपाल को विधानसभा भंग न करने के अनुरोध वाला पत्र दे आए थे। जबकि वे ही सुप्रीम कोर्ट में विधानसभा भंग करवाने का मुकदमा लड़ रहे थे।

असहज स्थिति होने पर उन्होंने दूसरे ही दिन अपनी गलती मान कर विधानसभा भंग करने की मांग कर डाली। बताते हैं कि यह फैसला भी कुछ ही लोगों का था। दिल्ली विधानसभा चुनाव में देश भर के लोग लगे। नतीजे अनुमान से अच्छे आए। लेकिन चुनाव ने आप के नेताओं में खटास बढ़ा दी। अब तो पानी सिर के ऊपर से बहने लगा है। यह भी साफ हो गया कि कल जो कुछ हुआ वह केजरीवाल की सहमति से हुआ। केजरीवाल तो इलाज करवाने के लिए दस दिन के लिए बंगलुरु चले गए। जाहिर है जो कुछ नया होना होगा वह उनके वापस आने के बाद ही होगा। तब तक आप के नेता अपने-अपने स्तर से अभियान चलाते रहेंगे। मयंक गांधी ने कई बातें कह कर आप में तूफान बने रहने के संकेत दे दिए हैं।

आम आदमी पार्टी नई है। लेकिन इसका दिल्ली में जिस तरह से जनाधार बढ़ा है उसे स्थाई बनाने के बजाए सरकार बनने के महीने भर के भीतर ही सतह पर आई लड़ाई ने लाखों समर्थकों को सकते में डाल दिया है। हालात सुधारने के लिए ठोस प्रयास की जरूरत है वह होने के बजाए दूसरे दलों की तरह अपने विरोधियों को निपटाने से पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। केजरीवाल ने 14 फरवरी को रामलीला मैदान में शपथ लेते हुए घमंड न करने की सलाह दी थी। पार्टी में जो चल रहा है उसे कुछ लोगों के घमंड का ही परिणाम माना जा रहा है।